‘एक था जाँस्कर’… वो भी तो कभी देख जो मंज़र में नहीं है

पत्रकार पंकज शुक्‍ला से अनौपचारिक संवाद में खुली विचार की पंखुड़ियां

चिन्‍मय मिश्र द्वारा की गई किताब ‘एक था जाँस्कर’ की समीक्षा पढ़ें: भारत की प्राचीनतम बसाहट की अनूठी गाथा

1 thought on “‘एक था जाँस्कर’… वो भी तो कभी देख जो मंज़र में नहीं है”

  1. शशि तिवारी

    किताब नहीं पढ़ी पर यह साक्षात्कार / आत्मीय सा वार्तालाप एक समृद्ध खजाने की तरह है। लेखन – प्रक्रिया जानने की तह में कितनी परतें खुली हैं।
    एक लेखक यहां स्वयं बतौर पाठक उपस्थित है इसलिए यह ज्यादा स्वाभाविक रूप से संभव हुआ है।

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