अगर आप अपने ही साक्षी नहीं है तो आप दूसरे की दृष्टि और उस दृश्य के ही भीतर कैद हैं
राघवेंद्र तेलंग, सुपरिचित कवि,लेखक,विज्ञानवेत्ता
विराट का संस्पर्श बंधन मुक्त कर देता हैविराट के संस्पर्श से द्रव्य यानी मैटर का लोप हो जाता है, इस भाव-स्वरूप को विस्तार से पहले कहा जा चुका है। स्पेस हटते ही च्वाइस यानी विकल्प का भी नाश हो जाता है। अब ‘सब स्वीकार है’ का भाव आपमें अपने आप उदित होता है। सब स्वीकार है का भाव आते ही आप भी प्रकृति जैसे उसी के अनुरूप हो जाते हैं। यही नैसर्गिक.प्राकृतिक होना है, सर्वशक्तिमान होना है। अब घड़े का आवरण विराट के माध्यम में घुल गया। अब बूंद और समुद्र मिल गए क्योंकि बीच का स्पेस जाता रहा। बीच का यह स्पेस अहम से भरा हुआ था। जो खाली रहता है उसकी आलवेज एवेलेबल यानी सदा उपयोगी की स्थिति रहती है, जो इस स्पेस को घेरता है वह क्षणिक रूप से कीमती है। बाद में जाकर वही कीमती अनुपयोगी हो जाता है, व्यर्थ हो जाता है, जब उस स्पेस को कोई और आकर घेर लेता है। इस स्थिति में यानी स्पेस में बने रहने से यानी निर्विकल्प अवस्था में फिर आपकी दुनिया मनचाही हो जाती है। अब आप वैसा ही सोचा करते हैं जैसा हुआ है या जैसा माध्यम है। ऐसा इसलिए क्योंकि माध्यम और आप अब एक ही हैं। तभी तो आप जैसा सोचते हैं वैसा हो जाता है।
असल बात पकड़ें तो ऐसे कहें कि जब हम कुछ सोचते ही नहीं तो जो जैसा घट रहा है वह स्वीकार है। वही मनमुताबिक है एक तरह से क्योंकि यहां मन नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस स्थिति को अ-मन रहकर जो पाया है। द्वैत की सुरंग में से होकर बाहर खुले में अब उन्मुक्त अद्वैत अपनी बाहें फैलाता है। विचार से निर्विचार की यात्रा सफलतापूर्वक सम्पन्न होते ही प्रकृति अपने सारे रहस्य उस पात्र में भी उड़ेल देती है जो सर्वस्व त्याग कर प्रकृति का हो जाता है।
बस, अब आप अन्य सभी प्राकृतिक जीवों की ही तरह एक प्राकृतिक जीव सिद्ध हुए हैं। लेकिन एक मामूली-सा परंतु बेहद महत्वपूर्ण फर्क है यहां। और वह यह कि यह नया-सा प्राकृतिक जीव यानी यह मानव अपने प्राकृतिक होने के बोध की शक्ति से अब जाकर हुआ परिचित है। हां! वह शक्ति जिसके सदुपयोग से इस धरा का संवर्धन, विकास, संरक्षण किया जा सकता है। विराट जीवन चक्र को चलाने वाली इस विराट ऊर्जा की बुद्धि मानव मेधा में जब प्रविष्ट करती है तब ही वह धरती की असल संतान कहलाने के योग्य हो जाता है। यह धरती की गोद हरी होने का संकेत है। अहं की अग्नि में भस्म होकर एक ध्वनि फिर जन्मती है जिसकी आवाज़ में अहं ब्रह्मास्मि का सार छुपा होता है। खंड-खंड में देखने वाली दृष्टि अब संपूर्णता में समष्टि को देखती है। यह साल्यूशन के करीब पहुंच जाने की बात है। यह मानव में मोजैक आई के निर्माण की सूचना है। जो लगता तो है कि इवोल्यूशन से बनी है पर दरअसल यह इतने सालों बाद ही विराट द्वारा अता होती है।
ये आंख उसकी दी हुई आंख है। इसकी सलामती की रोज दुआ करो। सदा उसके ध्यान में इसे बंद रखकर। बचा रखो अपने घर के अंदर एक घर अपने लिए। यानी अपने लिए भी एक स्पेस। फिर खुद उस स्पेस में सरक जाओ ठीक उस वक़्त जब विराट का वह स्पेस आपको लेने आए। यह इसलिए भी जरूरी है कि अंतत: उसे देखकर जो जाना है जो तुम्हें यहां लाया है। आखिरी वक़्त में उसकी एक झलक देखने भर के लिए उस एक आंख को बचा रखो।
नई आंख ऐसे ही नहीं जन्मती,वह जब अता होती है न! तो अनंत को जानने की प्यास भी लेकर आती है। नई आंख मिलती ही उसे देखने के लिए है। आइए, इसके क्वांटम विषयक पहलुओं को छूने की कोशिश करते हैं। ध्यान से समझें तो लाइट पार्टिकल अनंत की यात्रा पर है। अनंत ऊर्जा निर्भर हो अपने शून्य के साथ यात्रारत। इसीलिए वह ऊर्जा कण अपने देखे जाने के प्रति कांशस है क्योंकि ऐसे में वह अनंत के प्रति डेविएट होता है, परमात्मा से विमुख होता है। परमात्मा तक पहुंचने के लिए अनंत ऊर्जा चाहिए। एक जरा से अंश की ऊर्जा की कमी से भी यात्रा प्रभावित होती है। अर्थात देखे जाने से अनंत के यात्री प्रकाश कण के टारगेट में बाधा आती है, इसीलिए वह बिना ऊर्जा गंवाए परावर्तित हो जाता है। इसीलिए यह यात्री ड्यूएल बिहेवियर के जरिए लुढ़कता हुआ ब्लैक होल के एर्गोस्फीयर तक जाकर रूक जाता है, जहां उसके दोहरे व्यवहार का तिलिस्म टूट जाता है, यहां आकर वह अपना अस्तित्व समर्पित करता है, विलीन होता है।
आप समझ ही गए होंगे कि यह क्वांटम जीनो इफेक्ट गलतियों का सुधारक है। किसी गलती को अगर आब्जर्व न करो तो वह अनंत काल तक होती रहेगी। अत: आब्जर्वर के आब्जर्व करते ही घटना होना रूक जाती है। सीधी तरह कहें तो बाहर घटती हुई हर तरंगित चीज या दृश्य आप में ही तैरता होता है और किसी चीज या दृश्य को बिना उसके साथ बहे ठहरकर ऑब्जर्व करने से वह घटना होना रुक जाती है। इसीलिए साक्षी के पैदा होने का इतना महत्व है। साक्षी यूनिवर्स का ड्रायवर है। क्वांटम जीनो इफेक्ट से साक्षी का जन्म होता है।
घटना के कर्ता को देख लिया तो मानो घटना ने तुम्हें देख लिया। क्वांटम जीनो इफेक्ट के अनुसार हर होती हुई घटना देख लिए जाने की घटना से रुक जाती है। किसी को घूरने से, ताड़ लेने, उसकी निगरानी करने से वह बदल जाता है, यात्री मुड़ जाता है। ऐसा हर उस कांशस घटना के साथ होता है जिसमें कांशस घटना का कर्ता ऑर्गेनिक हो। उसे देखने वाला ऑर्गेनिक होगा तो यह प्रभाव घटेगा, फिर भले ही उसके और घटना के बीच किसी यंत्र की उपस्थिति हो। इसीलिए, कोई भी कांशस घटना अकेले में या अंधेरे में ही घटना पसंद करती है। यानी अंधेरे में स्पेस की आंखें अल्ट्रावायलेट होती है। वहां भी घटना स्पेस की अल्ट्रावायलेट जोन की शक्ति से लैस रहती है। यानी जीरो स्पंदन विस्फोट या मिलन के पहले के वातावरण में ही स्वयं पैदा हुई आंख ही असल आंख है। वहां घटित घटना ही वास्तव में अपने असली रूप यानी स्थितप्रज्ञ रूप में है। आंख ही आंख को जन्म दे सकती है।
किसी के भी द्वारा देख लिए जाने के कारण आप तरंगित स्वभाव की अपनी प्राकृतिक स्थिति से बदलकर तत्क्षण जड़ कण के भाव में आ जाते हैं, इस तरह पहले और बाद में दो दृश्य काम करते हैं। अगर आप अपने ही साक्षी नहीं है तो आप दूसरे की दृष्टि और उस दृश्य के ही भीतर कैद हैं। और अगर आप अपने ही दृष्टा हैं तो आप जड़ और तरंग के दृश्य में आवागमन कर सकते हैं, खेल सकते हैं। ऐसे में आप फिर खिलाड़ी हो जाते हैं। इस तरह खिलाड़ी बन कर सब से खेल सकते हैं, खिला सकते हैं, खेल सिखा सकते हैं। इस दु:ख के संसार से छूट सकते हैं और चाहे जब सुख का चुनाव कर सकते हैं। इसीलिए मेरे शहर के ओशो ने कहा है कि सदैव खुश रहना है तो दु:ख में आनंद खोजो।
तरंगित प्रकाश कण जो कि लुढ़कता हुआ आनंद की अपनी यात्रा में चला जा रहा है, उसकी यात्रा में बाधा न डालें। उसमें विचलन या डिवीजन का गुण भला हो भी कैसे सकता है वह तो सरल रैखिक प्रवृत्ति और प्रकृति का है। यह माया के संसार का रचयिता है तो नियंत्रणकर्ता भी तो है। ब्लैक होल के एर्गोस्फीयर की परिधि पर यह जब टूटता है तो इसकी बनाई हुई दुनिया मध्य स्थिति में आ जाती है। और फिर इस कण के भीतर के सभी कण एक बिंदु रूपी विराट खुले वृत्त के सभी केंद्र बिंदुओं की ही तरह एक केंद्र बिंदु बन जाते हैं। इसे निर्वाण का स्थान भी कह सकते हैं।
कॉस्मिक उर्जा पदार्थ के रूप में आने से पहले प्लाज़्मा, गैस, द्रव फिर ठोस की अवस्थाओं से गुजरती है। इसी तरह वापस अपने ठिकाने यानी कॉस्मास में जाने के लिए यह उर्जा एक उम्र के समय काल के बाद पुन: प्रतिक्रम की चार अवस्थाओं से गुज़रती हुई विलीन हो जाती है। विराट सूक्ष्म से यहां स्थूल की दुनिया में आए हुए हम सब अभी एक अवस्था की व्यवस्था के अंतर्गत अपनी उपस्थिति दे रहे हैं।
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