झूठ सफेद ही क्यों होता है? कॉरपेट रेड ही क्यों होता है? फीता शाही भी लाल ही क्यों? सहमति वाली झंडी हरी ही क्यों होती है और शांति के लिए सफेद झंडा ही क्यों?
- टॉक थ्रू टीम फोटो: गिरीश शर्मा
आज होली है और हम खुशरंग हो कर कह रहे हैं, रंग मुबारक। मन के रंग खिले रहें और हरियाली बनी रहे। होली पर तो रंग की बात होती है लेकिन रंग किसी एक दिन थोड़े ही हमें प्रभावित करते हैं। रंग तो हर रंग में हम पर छाए रहते हैं। हमें कुछ रंग पसंद हैं, कुछ नहीं। जो रंग हमें पसंद हैं, हम इन्हीं का बार-बार, खूब-खूब प्रयोग करते हैं। मेरा वाला ब्लू, मेरा वाला पिंक टाइप। कई लोग जानते हैं, कई नहीं भी जानते कि रंगों का अपना गुणधर्म, विज्ञान, अध्यात्म, प्रभाव और महत्व होता है। रंग उपस्थित हो कर भी अनुपस्थित होते हैं और जहां नहीं हैं वहां भी होते हैं। वैसे, जिस दुनिया को सफेद और काले रंग में बांट दिया गया है, उसी दुनिया को यह जानने की जरूरत है कि काला और सफेद तो रंग होता ही नहीं है। जहां सारे रंग अवशोषित कर लिए गए हैं, वहां काला है और जहां सभी रंगों को परावर्तित कर दिया जाता है, वहां होगा धवल, श्वेत, सफेद।
हमारी भाषा में रंग कई-कई रूपों में उपस्थित है। रंगों से जुड़ी कई कहावतें, मुहावरें हमें व्यक्त होने में सहायता करते हैं। रंग हमारे नीरस और बेजान जीवन में उल्लास ही नहीं खिलाते हैं बल्कि यह हमारी भाषा को भी अधिक रोचक, मजेदार और प्रभावी बनाते हैं। कलर थेरेपी, साहित्य में रंगों के प्रतीकवाद, विज्ञान के शोध, रंगों का आध्यात्मिक दृष्टिकोण जैसे अनेक फलक हैं जहां रंग भरपूर ताकत से उपस्थित हैं।
रंग बदलना, रंग दिखाना, गिरगिट की तरह रंग बदलना, रंग जमाना, रंगा सियार होना, रंग मे भंग पड़ना, रंग उड़ना, लाल पीला होना, तबीयत हरी होना…
गौर करेंगे तो पाएंगे तो इंसानी स्वभाव को दिखाने के लिए सर्वाधिक प्रयोग रंग का ही हुआ है। जैसे,
अपना असली रंग दिखाना, रंग उड़ना, रंगीन मिजाज, रंगे हाथ पकड़ना, लाल-पीला होना, सफेद झूठ बोलना, रंग में रंग जाना…
रंगों के संदर्भ के देखते हैं तो पाते हैं कि हर रंग का अपना स्वभाव भी है और भाषा भी। जैसा रंग, वैसा उसका असर भी। ये जानते, समझते हैं तब यूं ही सोचा कि झूठ सफेद ही क्यों होता है? कॉरपेट रेड ही क्यों होता है? फीताशाही लाल ही क्यों? और गर काम में अनावश्यक देरी करने वाली प्रणाली लालफीता शाही है तो फिर किसी खास अवसर को महत्व देने के लिए ‘रेड लेटर डे’ क्यों कहते हैं? ‘रेड फ्लेग’ ही क्यों और सहमति वाली झंडी हरी ही क्यों होती है और शांति के लिए सफेद झंडा ही क्यों? सर्दी गुलाबी क्यों होती है और अवसर स्वर्णिम ही क्यों होते हैं?
इंटरनेट की दुनिया नीली है तो इससे बाहर गौर करवाने के लिए लाल रंग का आधिक्य है। खतरे का संकेत लाल, कोहरे में ठीक से दिखाई देने वाला लाल, शादी का जोड़ा लाल…
इस बात से याद आया हम भारत में दुल्हन के जोड़े को लाल में शुभ मानते तो पश्चिम में सफेद। जबकि हम सफेद को शोक के वक्त पहनना मुनासिब समझते। कई संस्कृतियों में लाल रंग को बुराई और शैतान का प्रतीक भी माना जाता था। है न कितना दिलचस्प मामला?
वैसे आपदा को बताने या जोश बढ़ाने वाले काम में लाल रंग को अपनाने का वैज्ञानिक कारण भी है। विज्ञान कहता है कि प्रकाश सात रंगों से मिलकर बना होता है, और लाल रंग की तरंगदैर्ध्य सबसे ज्यादा होती है, इसलिए यह सबसे ज्यादा दिखता है। दूर से भी दिखाई देता है और लोगों का ध्यान खींचता है, इसलिए खतरे के संकेत को मिला लाल रंग।
थोड़ा और पड़ताल करें तो हम पाते हैं कि हमारी आखें तीन मूल रंगों लाल, हरा और नीला को पहचानने में सबसे अधिक समर्थ होती हैं। इंद्रधनुष के साथ रंगों में से हर रंग का अपनी एक वेव लेंथ होता है। हरे रंग की वेव लैंथ का स्थान सात रंगों बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल के क्रम में बीच में आता है। यही एक कारण है कि हमारी आंखों को हरा रंग अधिक ग्राह्य लगता है।

लाल, हरे के बाद अब बात नीले की। आकाश का विस्तार नीला और समंदर का रंग भी नीला। यह सब भी प्रकाश के प्रकीर्णन की वजह से हैं। जब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है तो वायु के कण नीले और बैंगनी रंग की प्रकाश तरंगों को अधिक बिखेरते हैं, जबकि अन्य रंग सीधे गुजर जाते हैं। इस घटना को रेले स्कैटरिंग (Rayleigh scattering) कहा जाता है। इस कारण आकाश में नीला रंग अधिक दिखाई देता है। सवाल उठ सकता है, नीला और बैंगनी रंग को अधिक बिखराता है तो बैंगनी रंग क्यों दिखाई नहीं देता? विज्ञान ही इसका जवाब देता है। बैंगनी रंग की तरंग दैर्ध्य नीले रंग से भी छोटी होती है, लेकिन सूर्य के प्रकाश में बैंगनी रंग की मात्रा कम होती है, इसलिए नीला रंग अधिक दिखाई देता है।
हमारा आकाश नीला है और समंदर भी। पानी लाल रंग की प्रकाश तरंगों को सबसे अधिक अवशोषित करता है, जबकि नीला रंग कम अवशोषित होता है और इसलिए पानी नीला अधिक दिखाई देता है।
रंगों की इस बात में होली को लेकर बुने गए कुछ वाक्य याद आते हैं। जैसे, हो ली यानी हम किसी के हो लिए। फिर, गुजरे की बात। जैसे, जो बीत गया तो बीत गया। हो ली बात। अब आज की सोचो। एक अर्थ, पवित्रता यानी holiness।
रंगों की इतनी बात चली तो साहित्य का रंग याद आ रहा है। अंजुम लुधियानवी ने क्या खूब कहा है:
रंग ही से फ़रेब खाते रहें, ख़ुशबुएँ आज़माना भूल गए
… आइए हम भी रंगों से फरेब खाने की जगह खुशबुओं को आजमाएं…
अज़ीज़ नबील ने भी तो कहा है:
सैकड़ों रंगों की बारिश हो चुकेगी उस के बाद
इत्र में भीगी हुई शामों का मंज़र आएगा।
बहुत ख़ूब! रंगों से सराबोर🌿🙏