न कड़वी निंबोली, न खजूर जैसी दूरी, फिर भी मिले नहीं सिन्नी जैसी खिन्नी

सुरेंद्र दांगी, स्‍तंभकार

खिन्‍नी खाई है? आज की जेन जी पीढ़ी से यह सवाल करना कई सवालों को आमद देने जैसा होगा क्‍योंकि इस सवाल के जवाब के पहले वे सवाल करेंगे, ये खिन्‍नी आखिर है क्‍या? क्‍या कोई फल है, सब्‍जी या मिठाई कोई? या उनके आगे यदि खिरनी रख दो वे इसे निंबोली समझने की चूक करेंगे। वे जब इसकी मिठास से वाकिफ होंगे तो हैरत में पड़ जाएंगे और जो वे इसका पेड़ देख लें तो हैरत आसमान छू लेगी क्‍योंकि अधिकांश यह जानते हैं कि इसके जैसा फल देने वाला खजूर तो पंथी को छाया देता नहीं है लेकिन खिन्‍नी का पेड़? खिन्‍नी का पेड़ तो बांहें फैलाया छाया देने को सदैव तत्‍पर दिखाई देता है। खिन्नी के वृक्ष 50-60 फीट से भी ऊंचे और बहुत विशाल आकार के होते हैं। यह प्रकृति का आश्चर्य ही है कि इतने विशाल वृक्ष में नीम की निबोली से दिखाई देने वाले छोटे पीले फल लगते हैं। दूर से देखने पर लगता है जैसे ‘बूंदी’ (एक मिठाई) बेची जा रही है। स्थानीय बोली में बूंदी को ‘सिन्नी’ भी कहते हैं। सो बेचने वाले ‘सिन्नी जैसी मीठी खिन्नी’ ले लो की आवाज लगाकर इसे बेचते हैं।

अपने मीठे अनूठे स्वाद,पौष्टिकता और औषधीय गुणों के कारण जनप्रिय खिन्नी अब दुर्लभ फलों की श्रेणी में आ गई है। कभी शिवपुरी कस्बे से बहुतायत में खिन्नी आसपास बिकने आती थी। हाथ ठेलों में ढ़ेर लगाकर बेचने वाले दुकानदार इसे “शिवपुरी की मेवा” कहकर बेचने के लिए हाँक लगाया करते थे। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से उनकी संख्या घट गई है सो खिन्नी की आवक भी कम हो गई है। खिन्नी के चाहने वाले इसे आज भी हाथों-हाथ लेते हैं। वृक्षों की संख्या ही कम नहीं हुई है इसके चाहने वाले भी घटते जा रहे हैं। नई पीढ़ी को अब इसमें विशेष रुचि नहीं है।

आज की जेन-जी पीढ़ी तो उसकी तरफ आंख उठाकर भी देखना नहीं चाहती क्योंकि बाजार ने षड्यंत्रपूर्वक उसकी रुचियों को ही बदल डाला है। हम क्या खाएं क्या पहनें अब हम तय नहीं करते बल्कि बाजार तय करता है। दुकानों में देशी-विदेशी कंपनियों के खट्टे-मीठे, तीखे, चरपरे स्वाद के उत्पादों से बाजार अटा पड़ा है। नई पीढ़ी के सामने अब स्वाद के ढेरों विकल्प मौजूद हैं। आपने गौर किया होगा कि हमारी ये पीढ़ी पारंपरिक भारतीय मिठाइयों और व्यंजनों से भी दूर होती जा रही है। लगातार होते विज्ञापनों का आक्रमण उसे उसकी जड़ों से काटता जा रहा है। इसलिये खिन्नी, खजूर, बेर, मकोय, करौंदा, तेंदू, अचार जैसे देसज फलों से भी उसकी दूरियां बढ़ गई हैं। जंगलों के लगातार कटते जाने से इनकी उपलब्धता में भी भारी कमी हुई है।

खिन्नी का वृक्ष हमारे देश में मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु आदि प्रदेशों के साथ ही दुनिया के अनेकों देशों में पाया जाता है। खिन्नी बहुत विशाल आकार का सैकड़ों वर्षों तक जीवित रहने वाला बहुउपयोगी वृक्ष है। इसकी लकड़ी बहुत मजबूत और टिकाऊ होती है। जिससे खिड़की, दरवाजे, फर्नीचर, कृषि उपकरण आदि बनाए जाते हैं। इसके अनगिनित औषधीय उपयोग हैं। पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी यह बहुत उपयोगी है। यह एक बहुत बड़ा छतनार वृक्ष है जो अपनी घनी छाया के कारण तापक्रम को भी नियंत्रित करता है। कभी-कभी गुण भी विनाश का कारण बन जाते हैं खिरनी वृक्ष इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। इसकी उपयोगिता के चलते हम मनुष्यों की कुल्हाड़ी इस पर खूब चली है। कभी गांव-गांव में सहजता से पाया जाने वाला यह वृक्ष अब दुर्लभ वृक्षों की श्रेणी में आ गया है। संस्कृत में इसे क्षीरणी कहते हैं। इसके पत्तों और फलों को तोड़ने पर दूध निकलता है। इसलिए इसका यह नाम क्षीरणी है। क्षीर यानी दूध, क्षीरणी यानी दूध वाली, दूधयुक्त। यह क्षीरणी ही खिरनी और फिर बोल-चाल की भाषा में ‘खिन्नी’ हो गया है।

खिन्नी के पेड़ पर सितंबर-दिसंबर के महीनों में सुगंधित सफेद फूल आते हैं जो कि अप्रैल-जून तक फलों में बदल जाते हैं। शुरुआत में हरे-कच्चे दिखने वाले फल भीषण गर्मी का साथ पाकर पीले-जरद स्वादिष्ट मीठे गुणकारी पौष्टिक फलों में बदल जाते हैं। बरसात का मौसम आते ही इसके फलों में कीड़े लग जाते हैं। खिन्नी के फलों का सितंबर में शुरू हुआ जीवनचक्र जुलाई के महीने में समाप्त हो जाता है। फलों का जीवनचक्र भले ही 9-10 माह का हो लेकिन खिन्नी के वृक्ष सैकड़ों वर्षों तक जीवित रहते हैं। हजारों वर्ष की उम्र के खिन्नी वृक्ष भी धरती पर हैं।

अपने औषधीय गुणों और अपनी पौष्टिकता के कारण राजाओं को भी प्रिय और ‘राजफल’ की उपाधि से सुशोभित खिन्नी का वृक्ष पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी बहुत उपयोगी है। बैशाख-जेठ की तपती दोपहरी में इसकी शीतल घनी छाया की ठंडक को महसूस करना भी एक विरल अनुभव है। सर्वगुण सम्पन्न बहुउपयोगी खिन्नी वृक्ष को आज संरक्षण की बहुत आवश्यकता है। नए पौधों का रोपण और पुराने पौधों का संरक्षण किया जाना बहुत आवश्यक है। निरंतर बढ़ते तापमान से धधकती धरती और आग उगलते आसमान से सब कुछ स्वाहा होने का समय बहुत नजदीक आता जा रहा है। इससे बचने का एकमात्र उपाय धरती पर हरियाली बढ़ाना ही है और इसके लिये खिन्नी, खिरनी, क्षीरणी का वृक्ष बहुत ही उम्दा रहेगा।

इस बरसात में खिन्नी का एक पौधा अवश्य रोपियेगा।

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