अभी तो खुश्क पैरों पे मुझे रिमझिम भी लिखनी है…

  • आशीष दशोत्‍तर

साहित्‍यकार एवं स्‍तंभकार

फोटो: गिरीश शर्मा

आम ज़िंदगी को हसीन बनाने की चाहत

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5 thoughts on “अभी तो खुश्क पैरों पे मुझे रिमझिम भी लिखनी है…”

  1. विष्णु बैरागी

    मुझे उर्दू का ज्ञान बिल्कुल नहीं है। इसलिए, बहुत कुछ, शब्दशः समझ नहीं पड़ता किन्तु पढ़ते हुए बराबर लगता रहा कि बात मुझ तक पहुँच रही है।
    आशीष का लिखा, मुझे पढ़ना ही पड़ता है। मजबूरी है। लेकिन अधिकांशतः मुझे तृप्ति नहीं मिलती। किन्तु इस आलेख में आशीष का घनत्व अनुभव होता है। मेरे तईं यह बहुत बड़ी खुशी और तसल्ली है।
    यह आलेख पढ़वाने के लिए धन्यवाद।

    1. Dr Abhay Pathak

      मैने आपकी आसानी के लिए गूगल से यह जाना कि
      बाहम का अर्थ है – आपस में, परस्पर, एक दूसरे के साथ

      1. दुष्यन्त व्यास

        नक्श लालपुरी का शेर और आशीष का तर्जुमा फिर एक नफासत के साथ व्याख्या सोने पर सुहागा।
        बात कहना बहुत आसान है पर रूह तक बात पहुंच जाय ,एक तस्वीर ज़हन में उभरे यही कहने का तरीका आशीष की खासियत है। बहुत शानदार

  2. Mahavir Prasad Verma

    बहुत ही उम्दा शेयर हैं, आशीष जी।
    बहुत ही खूब लिखा है ।आज आपके इस आलेख को पढ़के मन को तृप्ति हुई ।बहुत अच्छा लगा। आप ऐसे ही निरंतर लिखते रहे।

  3. दुष्यन्त व्यास

    नक्श लायलपुरी का शेर और आशीष का तर्जुमा फिर एक नफासत के साथ व्याख्या सोने पर सुहागा।
    बात कहना बहुत आसान है पर रूह तक बात पहुंच जाय ,एक तस्वीर ज़हन में उभरे यही कहने का तरीका आशीष की खासियत है। बहुत शानदार

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