कुछ अहसास खजाने के तौर पर अपने लिए बचाए रखना चाहिए
राघवेंद्र तेलंग, सुपरिचित कवि,लेखक,विज्ञानवेत्ता
फोटो: हेमंत सिन्हा
चलो आज प्रेम की बातें करते हैं। प्रेम पत्र शब्द की याद करके प्रेम विषय की शुरूआत करते हैं। प्रेम पत्र पढ़ने जैसे कुछ शब्द लिखते हैं। ऐसा कुछ जिसे पढ़कर तुम भी प्रेम पत्र लिखना चाहोगे! मगर सुनो! लिखने के पहले हाथ खाली कर स्वच्छ करने होंगे। घबराओ मत! मेरा इशारा अछूतनुमां पवित्र होने से नहीं है। जो लेट गो नहीं जानता यानी इवैक्युएट होना नहीं जानता वह वैक्यूम की अक्षय पात्रता और इमेंस पावर के बारे में नहीं जानता। कुछ अहसास खजाने के तौर पर अपने लिए बचाए रखना चाहिए,क्या इस बात का तुम्हें खयाल आया!
अगर आपने जिंदगी में अपने लिए कुछ गोपन नहीं रखा, सहेजा नहीं तो आपने निश्चित ही प्रेम भी नहीं किया। यानी आपके हिस्से में का कोई एक खिला हुआ गुलाब ही नहीं हुआ। यानी आपने अपने हिस्से में आए वसंत के मौसम को पहचाना ही नहीं! इस दुनिया में फूल जैसा कोई एक जिसे किसी के मन की एक किताब में सूखने का मौका मिला हो, बड़ा खुशनसीब है! यह शाख से टूटे उन गुलाबों की बात है जो फिर यादों में महकने चले जाते हैं। यदि आपके साथ ऐसा नहीं है तो आप के भीतर मिट्टी की गंध ही नहीं उतरी,वहां न तो बारिश हुई,न ही कभी आपकी सौंधी महक किसी के अंदर सांसों में घुली।
अपनी जानी हुई
भाषा की किताब के पन्ने
उलटता-पुलटता हूं
उसमें कहीं यह नहीं मिलता कि
जो मैं तुमसे कहना चाहता हूं
कैसे कहूं
किन शब्दों में कहूं
क्या यह
भाषा के मौन शब्दों का अर्थ है
या मौन की भी कोई अलग भाषा होती है
या प्रेम संभव है बिना भाषा के ही! (कविता ‘सीमा’)
हम सब चाहत के प्लेटफार्म पर एक साथ खड़े होने की शर्त को चाहे-अनचाहे पूरा करते ही हैं। यह प्लेटफॉर्म एक हिलती हुई चादर के समान है। कभी लय में मालूम पड़ती है तो कभी बिना लय के मगर रहती है तरंगित हर वक्त हमेशा। लोग इस तल पर रहते-जीते हुए विचार की यात्रा में लगातार बने रहते हैं। हम या तो एक-दूसरे को देखते हुए चाहत के तहत मिलन की कामना करते हैं या फिर एक-दूसरे की अनुपस्थिति में चाहत की वजह से मिलन की कामना करते हैं। कुल मिलाकर एक सतह पर मिलन के विचार का स्पंदन तरंगित चादर की सतह में यात्रा करता रहता है।
ऊर्जा का एक मूलभूत गुण होता है कि वह अपनी ताकत को हर समय समेटे हुए,बिना व्यर्थ में खर्च करते हुए सबसे छोटे रास्ते को अख़्तियार किए यात्रारत रहती है। इस बीच उसके रास्ते में अनुकूल सुचालक आ जाए तो वह उसमें ठहर जाती है या फिर गुज़र भी जाती है। तो जब एक ही तल या सतह पर किन्हीं दो कणों में एक ही ऊर्जा के दो अलग-अलग आवृत्ति के कंपन तैरते हैं तो ऊर्जा संरक्षण के निहित बोध-गुण के कारण वे उस तरंगित तल की लयात्मकता की सहायता से अपने बीच एक समंजित होने वाली आवृत्ति की ओर कंपायमान बने रहकर अग्रसर रहते हैं। ऐसा तब तक ही जारी रहता है जब तक कणों के भीतर मिलन ऊर्जा की तरंग की आवृत्ति में से अतिरिक्त ऊर्जा कंपन तल या सतह में न उतर आए। जैसे ही यह सममिलन संपन्न होता है दोनों कण का समय परिचय एक हो जाता है। आप समझ रहे होंगे कि यह विषय क्या है और क्या यह साइंटिफिक बात भी है।
आगे जो कुछ मैं कहने जा रहा हूं उससे थोड़ी बात बनेगी। मैंने शुरू में ही कहा कि चाहत या लगाव के प्लेटफार्म पर दो लोग एक-दूसरे के मिलन की आशा में जी रहे हैं तो इसका एक अर्थ यह भी है कि यूनिवर्स में कोई तो ऐसी प्रक्रिया है जिसके जरिए दूर-दूर के दो एक जैसे ऐसे कण जिनमें मिलन की समान इच्छा हो कभी मिल सकते हैं या उनके बीच मिलन विचार का संचार संभव है। यह बिल्कुल संभव है बशर्ते दोनों लोग विशिष्ट समय-काल में मिलन की इच्छा का विचार पैदा करने और उसे साझा करने में विश्वास करते हों। यह आह्वान करने और विचार के माध्यम से दो लोगों का एक-दूसरे को छूकर आने से जुड़ी बात है। यह बात अविश्वसनीय भले लग रही हो पर यह बात चूंकि अनुभूति की बात है इसलिए इसके भौतिक प्रमाण देना संभव नहीं। बहुत सारी विश्वसनीयताएं अभौतिक की अनुभूति से संबद्ध होती हैं। एक ही दरवाजा बाहर से बाहर की ओर खुल सकता है तो उसे अंदर से अंदर की ओर खुलने वाला भी बनाया जा सकता है।
ऐसे एक-सी आवृत्ति के दो साम्य लोग जब मिलते हैं तो महसूस करने के स्तर पर उन्हें लगता है कि वे पहले भी कभी मिल चुके हैं,यह उनके तात्कालिक रूप से प्रकट वाक्य से जाहिर होता है जब कहने में आता है कि हम पहले मिल चुके हैं शायद। या फिर उनकी मिल जाने की सुखद अनुभूति चाहत के इस वाक्य में झलकेगी कि ऊपर वाले ने हमको मिला ही दिया। कहने का मतलब अभिव्यक्त विचारों में तर्क न दिखकर अनुभूतिजन्य भावना झलकेगी। यही प्यार है,सच्चा और दिव्य प्रेम। जो ब्रह्मांड में विसरित एक ऐसे सार्वभौमिक माध्यम का परिचायक है जिसे हमने प्रारंभ में चाहत या लगाव कहा और सब तरफ मौजूद माध्यम की यह तरंग सृष्टि के तल,सतह,चादर में समाई हुई है,घुली हुई है। इस चादर को कबीर ने बुना है तो तुलसी ने इसमें तरंग घोली है। कृष्ण इसे अपने संगीत से तरंगित रखे हुए हैं। राधाएं तभी तो कभी निराश नहीं होतीं उन्हें रूक्मिणियों पर तरस आता है कि उन्होंने बांसुरी की धुन को समझने-बूझने में कभी रूचि नहीं दिखाई। एक ही तल पर खड़े दूर के दो लोग चुटकी बजाते ही एक-दूसरे से मिल जाते हैं तो इसे समय का एक अपेक्षा के कारण रूकना नहीं सिकुड़ जाना कहेंगे, वह भी मिलन की चाहत के चलते। समय उनका साथी हो जाता है जो एक-दूसरे के सच्चे साथी होते हैं।
ये बातें राधा-कृष्ण की बातें जो ठहरीं, बांसुरी के सुरों की जो ठहरीं। इन्हें समझना तर्क और संदेह के चाकू से चीर-फाड़ करने वालों के बस की बात नहीं। ये दिल दा मामला है और विशुद्ध साइंटिफिक भी। प्रेम का विज्ञान ही एक ऐसा साइंस है जिसमें शक या संदेह का कोई स्थान नहीं,जबकि इस दुनिया का साइंस अपना पहला कदम ही शक को मानता है। अभौतिक अनुभूति की दुनिया में प्रेम में विश्वास करने वालों का स्वागत है। यह प्रेम के घर का दरवाजा है अंदर से अंदर की ओर ही खुलेगा।
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Hamesha ki tarah bahut sundar 🌟