तस्‍वीर संग जिसका जन्‍मदिन मनाया था वह 40 साल बाद यूं मिला …

मनीष माथुर, सामाजिक कार्यकर्ता

माना कैंप (रायपुर): 1975–1977

माना कैंप की स्‍मृतियों के बीच उन लोगों का जिक्र करना बेहद आत्‍मीय है जो मेरी याद में 4 दशक बाद अब भी जीवित हैं।

कर्नल अय्यर अंकल: माना कैंप असल में कैम्प्‍स समूह का मुख्यालय था, जहां से माना–भाटा, भाटा–पार आदि कैम्प्स का भी प्रबंधन होता। अतः वहां तीन कैम्प्‍स कमांडेंट तैनात थे, दो सिविल–सर्विसेज के तथा एक रिटायर्ड कर्नल साहब। अय्यर अंकल और पापा दोस्त भी बने और हमारा पारिवारिक परिचय और आना-जाना शुरू हुआ। एक दिन खबर मिली की कर्नल अंकल का तबादला तवा कैंप में हो गया है। वे जाने के पहले सपत्नीक हमारे घर रात्रि-भोज हेतु आए। बताया गया की फिलहाल सिर्फ कर्नल अंकल ही तवा जाएंगे और आंटी माना में ही रूकेंगी। तवा होशंगाबाद जिले में अवस्थित तीन कैम्प्‍स का समूह था जो क्रमशः सोहागपुर, डोलरिया तथा टिमरनी में बिखरे हुए थे। इनका प्रबंधन तब सोहागपुर से होता था।

एक बार सुबह अय्यर आंटी का फ़ोन आया। उन्होंने मम्मी को बताया कि उनके पुत्र की आज वर्षगांठ है और बच्चों को बर्थ डे पार्टी के लिए भेज दीजिएगा। शाम चार बजे केक कटेगा। उन दिनों इस तरह के मामले मम्मियां आपस में ही सलटाती थीं और बच्चों की राय (उन्हें जाना है या नहीं) जानने का प्रचलन नहीं था। बड़ी दीदी बड़ी थीं और उनकी बोर्ड परीक्षा भी थी उन्हें, और छोटा भाई छोटा था इस कारण उसे, जाने से छूट मिली, और बाकी चार को संदेश।

हमारे घर में तब बर्थ डे केक अथवा पार्टी का प्रचलन नहीं था। पर जन्‍म दिवस मनाया अवश्य जाता था। बड़ा सरल तरीका था। सुबह उठ नहा-धो कर, बर्थ डे बेबी मां की गोद में बैठ जाता और मां उसे संभाल कर रखे गए चांदी के एक गिलास से दूध पिलाती। शायद तिलक आदि भी लगाया जाता और जातक की पसंद अनुसार व्यंजन बनाए अथवा मंगाए जाते।

मेरे लिए वो निमंत्रण रोमांचकारी था। एक तो आंटी बहुत प्यार से बातें करतीं, और फौजी अफसरों के घरों की एक अलग छटां होती थी। उनका बैठक का कमरा, चमचमाती फोटो, अलग-अलग प्रांतों की सजावटी वस्तुओं, हथियार आदि से सजा था। दूसरा, केक तब कस्बाई जनता के लिए, एक नापैद वस्तु थी, जिसका कटना हम फिल्मों में ही देखते थे। उस समय तक हम उन भैया से भी नहीं मिले थे, जिनके बर्थ डे पार्टी के लिए हम जा रहे थे।

वह एक फौजी अफसर के घर से निमंत्रण का प्रभाव था, या उस समय लगे आपातकाल का कि सारे बच्चे ठीक 4 बजे वहां उपस्थित थे। आंटी ने सभी अतिथि बच्चों का स्वागत किया। अंदर birthday cake सजा हुआ था और टेबल पर अन्य खाने-पीने की चीज़ें रखी थीं।

मैंने पूछ ही लिया, कि भैया कहां है, जिनकी शान में यह आयोजन हो रहा है? आंटी ने मुस्कुराते हुए, एक पर्दा हटाया और एक 3×2 की फ्रेम की हुई फोटो प्रकट हुई। चित्र में एक किशोरवय का चेहरा मुस्करा रहा था। आंटी ने परिचय कराया, “ये है विनायक… इसका ही birthday है। अभी NDA में ट्रेनिंग पर है और उसका आना संभव नहीं। पर बेटे का birthday तो आज ही है, इसलिए हम उसके चित्र के सामने खड़े होकर, Happy birthday गाएंगे।

थोड़ा अजीब लगा पर अब सोचता हूं कि एक मां अपने बच्चों का कितना ध्यान रखती है और उसके विशेष दिन को उसी तरह मनाना चाहती है, मानो वह सशरीर वहां उपस्थित हो।

केक पर मोमबत्तियां जलाई गईं। बच्चों ने मिलकर बुझाई और समवेत स्वर में हैप्पी बर्थडे गाया। पार्टी शानदार रही। हम उस स्वादिष्ट केक का स्वाद लिए अपने – अपने घर जेब में पॉपिन्स और चिक्क्लेट्स भरे लौटे।

कुछ दिनों से पापा के ऑफिस में, कुछ तनाव का माहौल था। ऑफिस से घर लौट कर भी वो ट्रंक-काल्स पर व्यस्त रहते। पता चला, ‘तवा-कैम्प’ में शरणार्थियों ने अपने पुनर्वास के विरोध में उग्र प्रदर्शन किए हैं। और हिंसक प्रदर्शन की तैयारियां की जा रही हैं। एक दिन एक बड़े समूह ने कैम्प्स कमांडेंट के ऑफिस की ओर कूच किया। तय व्यूह रचना अनुसार, जुलूस में, सबसे आगे बच्चे, फिर महिलाएं और अंत में पुरुषों ने जगह ली। प्रांगण में पत्थरों की बरसात प्रारंभ हुई। फिर तोड़-फोड़, नारेबाजी।
एक फौजी अफसर दुश्मन से तो लड़ना जानता था पर अब अपने ही देश में शरण लिए लोगों पर, जिसमें बच्चे और महिलाएं आगे हैं, वो कैसे लाठी चार्ज या अश्रु गैस के गोले छोड़ने का आदेश देता? भारतीय सेना की परंपराओं का पालन करते हुए, वे उस जुलूस के नेता को बातचीत के लिए बुलाने स्वयं आगे बढे। भीड़ ने उन्हें घेर लिया तथा लाठी और धारदार हथियारों से उन पर हमला कर दिया। वे बुरी तरह घायल हुए। वायु मार्ग से उन्हें इलाज़ के लिए सेना द्वारा, दिल्ली भेजा गया। उन्हें सिर से ले कर कंधे तक 56 टांकें आए। काफी प्रयासों से ही उनकी जान बची। उन्होंने संभवतः सेवा निवृत्ति ले ली। कालांतर में उस परिवार से संपर्क टूट गया।

अक्टूबर 2023: भोपाल

अपनी सुबह की सैर एवं खेल के बाद हम 8 मित्र रोज की तरह कॉलोनी के मंदिर के बाहर पड़ी बैंचों पर बैठे बतिया रहे थे। हमारे दल के सबसे वरिष्ठ एवं वाचाल सदस्य तिवारी जी ने बताया कि कल रात कॉलोनी में रह रहे एक रिटायर्ड ब्रिगेडियर साहब ने एक चोर को पकड़ा। चोर उनके पड़ोस के सूने घर में चोरी की नियत से घुसा। पड़ोस में हुई खटर-पटर से वे नींद से जागे। बाहर आकर उस चोर को ललकारा और भाग कर उसे पकड़ लिया। लोहे का छड़ लिए जवां चोर ने रिटायर्ड ब्रिगेडियर की पकड़ से छूटने के बहुतेरे प्रयास किए। सुरक्षाकर्मियों के आने तक वो उनकी पकड़ से छूट नहीं पाया और पुलिस को प्यारा हुआ।

हम उनके साहस और कमिटमेंट के बारे में बात कर ही रहे थे तभी ब्रिगेडियर की कार मंदिर के सामने रुकी। तिवारीजी ने बताया, मंदिर आना उनका दैनिक कार्य है। हम सब को उन्हें धन्यवाद कहने की इच्‍छा जागी। तिवारी जी ने परिचय करवाया। उन्हें इस साहस के लिए बधाई दी गई। बातचीत शुरू हुई। वे बोले, “साहस की तो बात ही ना करो। मेरे पिता तो रिटायरमेंट के बाद भी एक हिंसक भीड़ से भिड़े थे। हमारी सेना की ट्रेनिंग, हमारे दिल से डर शब्द ही मिटा देती है। वैसे ये बहुत पुरानी बात है और भोपाल के पडोसी जिले होशंगाबाद में ये घटना घटी थी”।

मैं चौंका, होशंगाबाद? वे बोले, “हां, वे ‘तवा कैंप’ के कमांडेंट थे। कर्नल अय्यर।”

जिस व्यक्ति की अनुपस्थिति में मैंने उसका जन्मदिन मनाते हुए Happy birthday गाया था, आज वे साढ़े चार दशक बाद एक सेवानिवृत ब्रिगेडियर के रूप में मेरे सामने खडे थे और सौभाग्य से हमारे पडोसी भी निकले। मालूम पड़ा कि कर्नल अंकल और आंटी का निधन हो चुका है। पड़ोस में पिछले एक दशक से आसपास रहते हुए भी, मुझे अंकल और आंटी से मिलने का सौभाग्य ना मिला।

हम गले मिले। दुनिया गोल है।

इस तरह मैं जिया-1:  आखिर मैं साबित कर पाया कि ‘मर्द को दर्द नहीं होता’

इस तरह मैं जिया-2: लगता था ड्राइवर से अच्छी जिंदगी किसी की नहीं…

इस तरह मैं जिया-3: हम लखपति होते-होते बाल-बाल बचे…

इस तरह मैं जिया-4: एक बैरियर बनाओ और आने-जाने वालों से टैक्स वसूलो

इस तरह मैं जिया-5: वाह भइया, पुरौनी का तो डाला ही नहीं!

इस तरह मैं जिया-6: पानी भर कर छागल को खिड़की के बाहर लटकाया…

इस तरह मैं जिया-7: पानी भरे खेत, घास के गुच्छे, झुके लोग… मैं मंत्रमुग्‍ध देखता रहा

इस तरह मैं जिया-8 : मेरे प्रेम करने के सपने उस घटना के साथ चूर-चूर हो गए

इस तरह मैं जिया-9 : हमने मान लिया, वो आंखें बंद कर सपने देख रहे हैं

इस तरह मैं जिया-10 : हमारे लिए ये एक बड़ा सदमा था …

इस तरह मैं जिया-11: संगीत की तरह सुनाई देती साइकिल के टायरों की आवाज

इस तरह मैं जिया-12: मैसेज साफ था, जान-पैचान होने का मतलब यह नहीं कि तू घुस्ताई चला आएगा

इस तरह मैं जिया-13 : एक चाय की प्याली और ‘दीमाग खोराब से ठोंडा’ हो जाता

2 thoughts on “तस्‍वीर संग जिसका जन्‍मदिन मनाया था वह 40 साल बाद यूं मिला …

  1. आप बरसों बाद मिले,वैसे ही यह संस्मरण पढ़ने वालों को याद रह जाएगा बरसों तक।

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