हे मेरे मरण, आ और मुझसे बात कर

  • सोनल

लेखक साहित्‍यकार हैं।

हे मेरे जीवन की अंतिम साध
हे मेरे जीवन की अंतिम साथ
हे मेरे मरण! आ और मुझसे बात कर!
मैं जन्म भर तेरे लिए जागता रहा, जन्म भर तेरे लिए ही
सुख दुख का भार अपने कंधों पर उठाकर घूमता रहा हूं
हे मेरे मरण, आ और मुझसे बात कर
जो कुछ मैं हूं- जो कुछ मेरा है
मेरी आशा अनजाने में तेरे प्यार से आकर्षित
तेरी दिशा में ही बढ़ रही है
मेरे चित्त में वरमाला बन चुकी
तू कब वर का सुंदर वेश पहन, शांत मुस्कान के साथ आएगा
उस दिन से मेरा कोई घर नहीं होगा
रात्रि के एकांत में पति के साथ पतिव्रता की भेंट होगी
तब मैं तू का भेद नहीं रहेगा
हे मेरे मरण, आ और मुझसे बात कर!

मुझे कविता याद आती है:

जाने के दिन मैं यही बात कहता जाऊं कि
जो कुछ मैंने देख पाया उसकी उपमा नहीं थी
इस प्रकाश में सरोवर के कमल का मधुर मधु मैंने चखा है
मैं उसे पीकर धन हुआ हूं
विश्व के क्रीड़ागृह में मैंने कितने खेल खेले हैं
दोनों नेत्रों से मैंनें अमित सौंदर्य का पान किया है
जिसका स्पर्श संभव है उसने मेरे शरीर में समाकर
मेरे प्राणों को पुलकित किया है
अब यहीं मेरा अंत करना चाहते हैं तो कर दें
जाने के दिन में यही घोषित करूं कि
जो कुछ मैंने देखा व पाया है वह अतुल्य है।

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