इश्‍क मेरा: जहां सफर ही मंजिल है

पूजा सिंह, स्‍वतंत्र पत्रकार

हम सबके जीवन में कोई न कोई ऐसी चीज होती है जो हमें मुक्त करती है। मैं जिस मुक्ति की बात कर रही हूं उसके लिए हिंदी में ठीक-ठीक कोई शब्द कम से कम मुझे नहीं मिला हां, अंग्रेजी में उसके लिए एक सटीक शब्द जरूर है- लिबरेट (Liberate)। लिबरेट करने या होने का अर्थ है किसी तरह की जकड़न से मुक्त करना या मुक्त होना। ऐसा कुछ जो हमें तय सामाजिक मानकों, पारंपरिक व्यवहारों से आजाद करता हो। ऐसा होना खुशी देता है। आजाद होने की खुशी, मनचाहा काम कर पाने की खुशी।

जीवन में कई ऐसी चीजें होती हैं जो हमें प्यारी होती हैं, जिनके साथ यह मुक्त करने वाला भाव जुड़ा होता है। मुझे मेरी मोटरसाइकिल (आरई मीटियर 350) से वही प्रेम है। वह मेरे लिए केवल मशीन नहीं बल्कि एक भावना है। वह मुझे समझती है। जब कभी मैं उदास होती हूं तो वह मुझे आवाज देती है-मानो कह रही हो, ‘चलो दोस्त लॉन्ग ड्राइव पर चलते हैं।’ मुझे उससे और उसे मुझसे गहरा इश्क है। उसके पहिये मेरे लिए पंख हैं। मैं उनके दम पर उड़ान भरती हूं। जब मैं उसका इग्नीशन ऑन करती हूं तो कानों में मानो एक संगीत सा बजता है। जब वह एक धड़क के साथ चलती है तो ऐसा लगता है मानो किसी ने अपने घोड़े को ऐड़ लगाई हो।

मोटरसाइकिल की बात हो और महान क्रांतिकारी अर्नेस्तो चे ग्वेरा की याद न आये यह नामुमकिन है। चिकित्सा शास्त्र की अपनी शिक्षा के दौरान महज 23 वर्ष की उम्र में चे ग्वेरा ने लैटिन अमेरिका के हालात को समझने के लिए अपनी मोटरसाइकिल ‘ला पेदरोसा’ (द माइटी वन यानी शक्तिशाली) पर एक लंबी यात्रा आरंभ की। उन्होंने लैटिन अमेरिका के अलग-अलग इलाकों में करीब 4500 किलोमीटर की दूरी तय की। अपने इस सफर पर उन्होंने गरीबी, भुखमरी और नाइंसाफी का जो मंजर देखा, उसे अपनी डायरी में दर्ज किया। यह मोटर साइकिल यात्रा क्रांति के पथ पर उनके सफर का प्रस्थान बिंदु बना। यह डायरी उनके निधन के बाद ‘मोटर साइकिल डायरीज’ के नाम से प्रकाशित हुई।

चे ग्वेरा का जिक्र करने का उद्देश्य इतना भर है कि अगर आप संवेदनाओं से भरे हुए हैं और परिवर्तन के आकांक्षी हैं तो मोटरसाइकिल केवल सफ़र का जरिया भर नहीं है। वह मनोरंजन का माध्यम नहीं है। बल्कि वह तो एक टूल है जिसके जरिये आप अपने आसपास की दुनिया को देख सकते हैं, समझ सकते हैं।

मोटरसाइकिल यथास्थिति वादियों के लिए नहीं है। अक्सर कोई न कोई मिल ही जाता है जो बताता है कि मोटरसाइकिल चलाना जोखिम भरा है। इसमें दुर्घटनाओं की आशंका अधिक है। हर साल न जाने कितने लोग मारे जाते हैं। ऐसी बातें करने वाले लोग वास्तव में बहुत कैलकुलेटिव होते हैं जिनकी जिंदगी ही शायद गुणा-भाग पर चल रही है।

मुझ जैसे लोगों के लिए तो मोटरसाइकिल स्वतंत्रता का प्रतीक है- सड़क पर दोपहियों में भागती एक मशीन और उस पर सवार मैं। भला इसकी तुलना किसी और चीज से हो सकती है? अगर तुलना ही करनी हो तो मैं कहूंगी मोटरसाइकिल पर एकाग्र चला जा रहा शख्स मुझे ध्यानस्थ भिक्षु या योगी सा लगता है। मोटरसाइकिल चलाते हुए आप कार चालक की तरह कैजुअल नहीं हो सकते। एक पल के लिए भी आप अपना ध्यान कहीं और नहीं लगा सकते। आप न तो फोन इस्तेमाल कर सकते हैं, न कुछ खा सकते हैं और न ही किसी से बात कर सकते हैं। यह संपूर्ण एकाग्रता की मांग करता है- एक किस्म का समर्पण। आपको खुद को अपनी मशीन के हवाले करना होता है बिना शर्त। प्यार का उच्चतम बिंदु यही तो है।

यह एक किस्म की थेरेपी है। कल्पना कीजिए आप अपनी मोटरसाइकिल पर चले जा रहे हैं। हर किस्म की बाधाओं और ध्यान बंटाने वाली चीजों से परे। यह एकांतिक सफर आपको आवश्यक भावनात्मक गुंजाइश देता है ताकि आप अपने मन की बात सुन सकें।

शुरुआत में जब मैंने मोटरसाइकिल चलना आरंभ किया था तो कई लोग मुझे कुतूहल से देखते थे। धीरे-धीरे उन आंखों में कुतूहल की जगह प्रशंसा ने ले ली। कुछ लोग राह चलते रोक कर भी सराह देते हैं। कुछ महिलाओं ने मुझे रोककर कहा- हम अपनी बेटियों को आपके बारे में बताते हैं। अजनबियों का यह प्यार शक्ति देता है और मैं जानती हूं कि इस प्यार की वजह मेरी मोटरसाइकिल और उसके प्रति मेरा प्रेम ही है।

फरवरी के इस महीने में सोशल मीडिया से बाजार और पास पड़ोस से लेकर सुदूर इलाकों तक प्रेम के रंग बिखरे हुए हैं। बसंतोत्सव और वैलेंटाइंस डे दोनों इसी महीने जो पड़ते हैं। प्रेम पगे इस महीने में मैं भी अपनी इस साथिन से अपने प्रेम का इजहार करना चाहती हूं। एक दूसरे के बिन हम अधूरे हैं। एक दूसरे के साथ हमें बहुत लंबा सफर तय करना है।

अहमद फ़राज़ का एक शेर याद आता है:

किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफर में रहा।

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