40 साल गुजरे, गंगा मैली की मैली, 18 साल और …

जे.पी.सिंह, वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ

केंद्र सरकार ने 2014 से प्रमुख नमामि गंगे कार्यक्रम में लगभग 40,000 करोड़ रुपए का निवेश किया है, लेकिन गंगा मैली की मैली है। जिस गति से काम हो रहा है उससे अगले 20 साल में भी गंगा साफ़ हो जाए तो बहुत बड़ी बात होगी। राष्ट्रीय नदी को साफ करने के तीन दशकों के प्रयासों के बाद नदी की स्थिति दु:खद है। इसका पानी नहाने लायक भी नहीं है। यह हम नहीं कहते, खुद सरकार कह रही है। अगस्त 2018 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) को प्रस्तुत किए गए गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता के मानचित्र के अनुसार 70 निगरानी स्टेशनों में से केवल पांच में पीने के लिए और सात में नहाने के लिए उपयुक्त पानी था।

गंगा को साफ करने की पहल 1986 में गंगा एक्शन प्लान के साथ शुरू हुई। 2014 तक 4,000 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए जा चुके थे लेकिन नदी गंदी बनी हुई है। इसलिए जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने मई 2015 के मध्य में नमामि गंगे की शुरुआत की, तो एक नई आशा जगी। यह अब तक की सबसे बड़ी पहल थी। तब 20,000 करोड़ रुपये से अधिक आवंटित किए गए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे अपना व्यक्तिगत एजेंडा बनाया और एक समय सीमा तय करते हुए कहा गया, 2019 तक गंगा साफ हो जाएगी। फिर इस लक्ष्‍य को 2020 तक बढ़ा दिया गया और अब कहा जा रहा है कि गंगा को साफ़ करने में कम से कम 18 साल लगेंगे।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) और राज्य सरकार द्वारा नमामि गंगे कार्यक्रम चलाया जा रहा है। नमामि गंगे परियोजना की शुरुआत गंगा और उसकी सहायक नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए जून, 2014 में शुरू की गई थी। राष्ट्रीय गंगा परिषद (एनजीसी) बनाई गई और इसे अत्यधिक महत्व देने के लिए प्रधानमंत्री को इसका प्रमुख बनाया गया। इस परिषद ने राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीआरबीए) का स्थान लिया। एनजीसी में पांच गंगा बेसिन राज्यों-उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश (यूपी), बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों के अलावा कई केंद्रीय मंत्री शामिल किए गए और तय किया गया कि हर साल इसकी एक बार बैठक होनी थी।

जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत गतिविधियों में तालमेल बैठाने के लिए 10 अन्य मंत्रालयों के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयूएस) पर हस्ताक्षर किए। सरकार ने कहा कि वह कार्यक्रम को लागू करने के लिए शहरी स्थानीय निकायों और पंचायती राज संस्थानों जैसे जमीनी स्तर के संस्थानों को शामिल करेगी। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री विश्वेश्वर टुडू ने बीते फरवरी माह में राज्य सभा में लिखित उत्तर में बताया था कि केंद्र सरकार द्वारा एनएमसीजी (नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा) को वित्तीय वर्ष 2014-15 से 31 जनवरी, 2023 तक 14084.72 करोड़ रिलीज किए जा चुके हैं। वहीं 31 दिसंबर, 2022 तक 32,912.40 करोड़ की लागत से कुल 409 प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया गया जिनमें से 232 प्रोजेक्ट को पूरा कर चालू कर दिया गया है।

अब 2026 तक के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम की जरूरत और प्रसार को देखते हुए सरकार ने 22,500 करोड़ रुपये के बजट परिव्यय के साथ नमामि गंगे मिशन-2 को मंजूरी दे दी है, जिसमें मौजूदा देनदारियों (11,225 करोड़ रुपये) और मौजूदा देनदारियों के लिए नई परियोजनाएं/ व हस्तक्षेप (11,275 करोड़ रुपये) शामिल हैं। वित्तवर्ष 2014-15 से 31 जनवरी, 2023 तक सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमजीसी) को कुल 14,084.72 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं, जिसमें से 13,607.18 करोड़ रुपये एनएमजीसी द्वारा राज्य सरकारों, राज्य को जारी किए गए हैं। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और गंगा कायाकल्प से संबंधित परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए अन्य एजेंसियां कार्य कर रही हैं।

जल शक्ति मंत्रालय के एक लिखित उत्तर के अनुसार, नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत, अपशिष्ट जल उपचार, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, रिवर फ्रंट प्रबंधन (घाट और श्मशान घाट विकास), ई-प्रवाह, जैसे हस्तक्षेपों का एक व्यापक सेट, गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के कायाकल्प के लिए वनीकरण, जैव विविधता संरक्षण और जनभागीदारी आदि पर काम किया गया है। अब तक, 31 दिसंबर, 2022 तक 32,912.40 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से कुल 409 परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जिनमें से 232 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और उन्हें चालू कर दिया गया है। मंत्रालय ने बताया कि अधिकांश परियोजनाएं सीवेज इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण से संबंधित हैं, क्योंकि अनुपचारित घरेलू या औद्योगिक अपशिष्ट जल नदी में प्रदूषण का मुख्य कारण है।

5,269.87 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) क्षमता के निर्माण और पुनर्वास के लिए 26,673.06 करोड़ रुपये की लागत से कुल 177 सीवरेज बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शुरू की गई हैं और लगभग 5,213.49 किलोमीटर सीवरेज नेटवर्क बिछाया गया है। इनमें से 99 सीवरेज परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, जिसके परिणामस्वरूप 2,043.05 एमएलडी एसटीपी क्षमता का निर्माण और पुनर्वास और 4,260.95 किलोमीटर सीवरेज नेटवर्क बिछाया गया है। सीवेज उपचार अवसंरचना के निरंतर संचालन को बनाए रखने के लिए हाइब्रिड वार्षिकी आधारित पीपीपी मोड को भी अपनाया गया है।

इतने कामों के बाद भी हकीकत यह है कि बहुप्रचारित नमामि गंगे कार्यक्रम पर लगभग 40,000 करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद गंगा अभी भी अंधेरी है। स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों दोनों का कहना है कि नदी ज्‍यादा साफ नहीं हुई है। सीवेज उपचार संयंत्र ठीक से कार्य नहीं कर रहे हैं। रेत खनन, ड्रेजिंग और अनियमित और अनुशासनहीन पर्यटन जैसी गतिविधियां नदी पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं ।

भारत की सबसे लंबी नदियों में से एक गंगा एक अनुमान के अनुसार लगभग 400 मिलियन की आबादी को प्रभावित करती है। 2020 के सरकारी अनुमान के अनुसार , गंगा के किनारे के 97 शहरों से 2,953 मिलियन लीटर सीवेज उत्पन्न होता है और प्रतिदिन गंगा की मुख्य धारा में प्रवाहित होता है। इन्‍हीं कारणों को देखते हुए 1980 के दशक के मध्य से गंगा सफाई कार्यक्रम आरंभ किए गए ताकि सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट नदी में न मिल सकें। पहली गंगा कार्य योजना के तहत राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण गठित किया गया। प्राधिकरण ने ही ‘मिशन स्वच्छ गंगा’ शुरू किया। केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय गंगा परिषद का गठन करने के बाद 2016 में प्राधिकरण को भंग कर दिया गया था।

संयुक्त राष्ट्र ने 2022 में नमामि गंगे परियोजना को दुनिया की दस ‘अग्रणी’ पहलों में से एक कहा जो प्राकृतिक दुनिया को सफलतापूर्वक बहाल कर रही हैं, लेकिन द वायर साइंस की रिपोर्ट बताती है कि संयुक्त राष्ट्र ने सूची तैयार करने के लिए उपयोग किए गए मानदंडों के बारे में विवरण प्रदान नहीं किया है। इस परियोजना में बड़ी मात्रा में करदाताओं का पैसा लगा है लेकिन नदी और उसके प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली कई गतिविधियां बेरोकटोक और अनियमित रूप से जारी हैं। केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना जैसी नदी जोड़ो परियोजनाएँ गंगा के प्रवाह के लिए विनाशकारी होंगी क्योंकि इससे नदी में पानी का प्रवाह कम हो जाएगा। केन और बेतवा दोनों नदियां यूपी-मध्य प्रदेश सीमा पर यमुना में मिलती हैं, जो उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा में मिल जाती हैं।

नदी के मुख्य भाग की सफाई पर ध्यान देने से छोटी सहायक नदियों और नालों की स्थिति से ध्यान हट गया है जो गंगा में मिलती हैं। बिहार और पश्चिम बंगाल. बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के स्कूल ऑफ अर्थ एंड एनवायर्नमेंटल साइंसेज के प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता ने 2023 में डाउन टू अर्थ को बताया था कि भारत का नदी सफाई अभियान विफल हो गया है क्योंकि देश ने केवल प्रमुख नदियों पर ध्यान केंद्रित किया है।

प्रमुख औद्योगिक नगर कानपुर के चमड़े कपड़े और अन्य उद्योगों के अपशिष्टों के प्रभाव तले वहां गंगा का जल काला हो जाता है। गंगोत्री से लेकर वाराणसी तक गंगा नदी में 1611 नदियां और नाले मिलते हैं तथा केवल वाराणसी के विभिन्न घाटों पर लगभग 40,000 लाशों का दाह संस्कार होता है। गंगा पर प्रदूषण का हमला मैदानी भाग में उतरते ही हरिद्वार से शुरू हो जाता है और फिर सागर में मिलने तक इसके 2525 किमी. लंबे बहाव मार्ग के दोनों ओर बसे शहरों का मल, कूड़ा-कचरा इसे अपने में समेटना पड़ता है। शहरी मल के अतिरिक्त उद्योगों से निकले व्यर्थ पदार्थ, रसायन, अधजली लाशें, राख आदि गंगा में मिलते रहते हैं जो इसे दूषित करते हैं।

औद्योगिक अपशिष्ट और मल ऐसे 29 शहरों से आकर गंगा में गिरता है, जिनकी आबादी 1 लाख से ऊपर है। ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि ऐसे शहरों में से केवल 15 शहरों में ही स्वच्छ मल निपटान की व्यवस्था है। इस समस्या का मूल कारक है गंगा के किनारे बसे शहरों का अंधाधुंध विकास, आबादी का विस्फोट और आधुनिक विकास। इनका मलजल और फैक्ट्रियों का कचरा जो बिना उपचारित किए ही सीधे गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है। यही कारण है किन पीने लायक पानी है न नहाने लायक है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 24 अप्रैल 24 को उत्तर प्रदेश में गंगा और उसकी सहायक नदियों में दूषित जल को लेकर टिप्पणी की है। 22 जिलों की इन नदियों में खराब पानी के साफ होने की प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में अंतर पाया गया है। वहीं 12 जिलों में नदी के पानी को शुद्ध करने की सुविधा ही मौजूद नहीं है।

एनजीटी भारत में एक स्वतंत्र न्यायिक निकाय है जिसे विशेष रूप से पर्यावरणीय मुद्दों और विवादों को संबोधित करने के लिए स्थापित किया गया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तराखंड समेत कई राज्यों में गंगा नदी के प्रदूषण को लेकर चिंता जताई है। एनजीटी ने गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रदूषण कम करने के मामले पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए अधिकारियों से जल्द से जल्द उपाय करने के लिए कहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यून की पीठ ने कहा जिला कासगंज को छोड़कर सभी 23 जिलों में दूषित जल शोधन में व्यापक अंतर है। इसे अभी भी सत्यापित किया जाना बाकी है। एनजीटी ने 16 अप्रैल के आदेश में कहा था, बलिया, ललितपुर, गोंडा, हमीरपुर, हाथरस, जालौन, मऊ, अंबेडकर नगर, शाहजहांपुर, अमेठी, हरदोई और गाजीपुर में सीवेज शोधन की कोई सुविधा मौजूद नहीं है।

गंगा के प्रदूषण में सबसे अधिक योगदान देने वाले वाराणसी, प्रयागराज, फर्रुखाबाद, कानपुर, उन्नाव और मिर्जापुर जिलों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। एनजीटी ने कहा कि गंगा की प्रदूषित सहायक नदियां काली (पूर्व और पश्चिम), कृष्णा, हिंडन, बेतवा, सहजवाल, बिशुई, मनहरण, रामगंगा, अरिल, पश्चिम और पूर्व बेगुल, किच्छा, करवन, पहुज, तमसा, सरयू, गर्रा, सई, खन्नौत और गोमती हैं। गंगा नदी में प्रदूषण से जुड़े मुद्दों से निपटने में संबद्ध अधिकारियों के ढुलमुल रवैए से खिन्न राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने कहा है कि इन पहलुओं पर कोई काम नहीं करना चाहता।

कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार से पूछा था कि स्वच्छ गंगा परियोजना कब पूरी होगी? सुप्रीम कोर्ट को जवाब में राष्ट्रीय प्रशासन ने कहा कि इस परियोजना को पूरा होने में 18 सालों का समय लगेगा। इस परियोजना की लंबाई और चौड़ाई को देखते हुए यह कोई असामान्य लक्ष्य नहीं है। यह परियोजना लगभग पूरे देश को कवर करती है क्योंकि यह पूरे उत्तर भारत के साथ उत्तर पश्चिम उत्तराखण्ड और पूर्व में पश्चिम बंगाल तक फैली है। नमामि गंगे परियोजना का सबसे बड़ा मुद्दा नदी की लंबाई है। यह 2,500 किमी. की दूरी कवर करने के साथ ही 29 बड़े शहर, 48 कस्बे और 23 छोटे शहर कवर करती है। इससे अलावा नदी का भारी प्रदूषण स्तर और औद्योगिक इकाईयों का अपशिष्ट और कचरा और आम जनता के द्वारा डाला गया कचरा भी एक मुद्दा है।

भारत के पांच राज्य उत्तराखण्ड, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार गंगा नदी के पथ में आते हैं। इसके अलावा सहायक नदियों के कारण यह हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और दिल्ली के कुछ हिस्सों को भी छूता है। इसलिए स्वच्छ गंगा परियोजना इन क्षेत्रों को भी अपने अंतर्गत लेती है। बीजेपी के घोषणा पत्र के अनुसार 2022 में गंगा को साफ हो जाना था। 2019 में बीजेपी ने इसे मील के पत्थर के रुप में लिखा था कि जब देश आज़ादी का 75 वां वर्ष मना रहा होगा तब गंगा साफ हो चुकी होगी लेकिन अमृत महोत्सव के दौरान गंगा की सफाई को कितनी बार याद किया गया?

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