नागनाथ की पेंटिंग्स में सुनिए साइलेंस का म्यूज़िक

नागनाथ जी के चित्र संग्रह देखकर ऑर्गेनिक फीलिंग्स पैदा होती हैं। ये चित्र एक सुघड़ सोच, विश्वास और कॉन्सेप्ट के तहत निर्मित हैं इसीलिए ये वैसा ही असर देखने में पैदा करते है और दर्शक-पाठक को रोककर थाम लेते हैं।

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अनुभव में नहीं आती तब तक सवाल ही बनी रहती है जिंदगी

ऊर्जा का मौलिक गुण होता है कि वह स्वतंत्र रहना चाहती है, बंधकर रहना उसे भाता नहीं। मनुष्य के अंदर की बेचैनी दरअसल ऊर्जा के स्वतंत्र होने की इच्छा की तड़प का ही नाम है।

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जिस को तुम भूल गए याद करे कौन उस को…

इसे ज़िन्दगी की ज़रूरियात और इंसानी हक़ों के नज़रिए से समझना नए अर्थ खोलता है। सरपरस्त जब अपनी रिआया को नज़रंदाज़ कर देता है तो उसे कहीं सहारा नहीं मिलता है।

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समाचार एजेंसी ने किया एक शब्‍द का गलत अनुवाद और हुआ सर्वनाश

राष्‍ट्र युद्ध की कगार बैठा था। शांति कायम करने के प्रयत्‍न परवान चढ़ रहे थे। मगर दुर्भाग्‍य से समाचार एजेंसी के अनुवादकों ने प्रधानमंत्री के वक्‍तव्‍य में एक शब्‍द का गलत अंग्रेजी अनुवाद कर दिया। इस गलती ने विश्‍व को ऐतिहासिक त्रासदी दे दी। अचरज तो इस पर भी है कि सब कुछ खोने की कगार पर बैठे राष्‍ट्र के नियंताओं ने उस शब्‍द की गलती सुधारने पर ध्‍यान क्‍यों नहीं दिया?

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मंज़िल पर पहुंचने की चाह में रास्तों से गुज़रना भूल जाते हैं…

जो बंदा बंदगी के रंग में डूबता है वह दुनियादारों से कुछ इसीलिए अलग होता है क्योंकि वह अपने भीतर छुपे हुए राज़ को राज़ नहीं रहने देता। वह सब कुछ सामने लाने की हिम्मत करता है।

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साथ-साथ चलने चाहिए वैचारिक स्वतंत्रता और जनसंघर्ष

जर्मनी के उदाहरण में भी, जो बुद्धिजीवी नाज़ियों के साथ ‘समझौता’ करते रहे, वे अंततः उसी व्यवस्था के शिकार हुए। इसलिए, वैचारिक स्वतंत्रता और जनसंघर्ष दोनों साथ-साथ चलने चाहिए।

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सत्यजीत रे: स्त्रियों को ऊँचा करने के लिए पुरुषों को कमतर नहीं आँका

सत्यजीत की फिल्मों में स्त्री वस्तु नहीं है, वह सज्जा की सामान भी नहीं है। वहाँ महिलाओं के अधिकारों को बरकरार रखने की जद्दोजहद है लेकिन पुरुषों की कीमत पर नहीं।

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जब वास्तविकता और कल्पना के बीच अंतर करने में कठिनाई हो

स्किट्ज़ोफ्रीनिया के लगभग 20 प्रतिशत नए मामले 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में होते हैं। ये मामले पुरुषों में अधिक होते हैं। बच्चों में स्किट्ज़ोफ्रीनिया दुर्लभ है लेकिन संभव है।

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गुरु के सान्निध्य में रियाज़ की प्रोसेस

संगीत से जुड़े मनुष्य के मनोवैज्ञानिक और व्यवहारगत पक्षों से भी हर कलाकार को परिचित होना चाहिए। आज की भाग-दौड़ भरी जीवनशैली में बढ़ते स्ट्रेस और एंग्जायटी से निपटने के लिए भी लोग संगीत के निकट आ रहे हैं। यह उजला पक्ष भारतीय समाज के जागृत विवेक का स्वत: परिचायक है।

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हे मेरे मरण, आ और मुझसे बात कर

अहा! उसकी वे स्नेह भरी आँखें! आँखे भर क्यों? चेहरा, देह, देह का रोम-रोम जिस स्नेह से, जिस प्रेम से भरा है। खासकर तब, जब वह अपनी बेटी को गले लगा रहा है! पीछे ही वह दूत प्रतीक्षा में है जिसके साथ उसे उस पार चले जाना है।

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