कलारंग

चीजों को होने देने के इंतजार का धैर्य और उन पर खामोश नजर

पारिवारिक रिश्तों के इतर हमारे आस-पास इतने प्यारे रिश्ते होते हैं और वे जीवन के नाजुक मोड़ पर कैसे आपको संभाल सकते हैं यह देखना सुखद है।

चीजों को होने देने के इंतजार का धैर्य और उन पर खामोश नजर जारी >

जैसे,पास तो होना चाहता है लेकिन जताना नहीं चाहता

बाघ झाड़ी में छिपा होगा। उसकी आँखें चमक रही होगीं। उसकी गंध इसे भी आई होगी। इसने चाहा भी होगा कि टेडी उस ओर न जाए। लेकिन टेडी तो दौड़ पड़ा होगा! और फिर जो हुआ इसने अपनी आँखों से देखा होगा।

जैसे,पास तो होना चाहता है लेकिन जताना नहीं चाहता जारी >

जो कुछ आया सम्मुख सब उपमान तुम्हारे नाम किए…

आधुनिक हिंदी कवियों ने राजनीतिक, सामाजिक मुद्दों के साथ यथार्थ को अपनी कविताओं में रेखांकित किया है। वहीं आशीष कुमार शर्मा ‘भारद’ की रचनाओं में हमें छायावाद की विशेषताओं की झलक मिलती है।

जो कुछ आया सम्मुख सब उपमान तुम्हारे नाम किए… जारी >

जिस को तुम भूल गए याद करे कौन उस को…

इसे ज़िन्दगी की ज़रूरियात और इंसानी हक़ों के नज़रिए से समझना नए अर्थ खोलता है। सरपरस्त जब अपनी रिआया को नज़रंदाज़ कर देता है तो उसे कहीं सहारा नहीं मिलता है।

जिस को तुम भूल गए याद करे कौन उस को… जारी >

मंज़िल पर पहुंचने की चाह में रास्तों से गुज़रना भूल जाते हैं…

जो बंदा बंदगी के रंग में डूबता है वह दुनियादारों से कुछ इसीलिए अलग होता है क्योंकि वह अपने भीतर छुपे हुए राज़ को राज़ नहीं रहने देता। वह सब कुछ सामने लाने की हिम्मत करता है।

मंज़िल पर पहुंचने की चाह में रास्तों से गुज़रना भूल जाते हैं… जारी >

सत्यजीत रे: स्त्रियों को ऊँचा करने के लिए पुरुषों को कमतर नहीं आँका

सत्यजीत की फिल्मों में स्त्री वस्तु नहीं है, वह सज्जा की सामान भी नहीं है। वहाँ महिलाओं के अधिकारों को बरकरार रखने की जद्दोजहद है लेकिन पुरुषों की कीमत पर नहीं।

सत्यजीत रे: स्त्रियों को ऊँचा करने के लिए पुरुषों को कमतर नहीं आँका जारी >

हे मेरे मरण, आ और मुझसे बात कर

अहा! उसकी वे स्नेह भरी आँखें! आँखे भर क्यों? चेहरा, देह, देह का रोम-रोम जिस स्नेह से, जिस प्रेम से भरा है। खासकर तब, जब वह अपनी बेटी को गले लगा रहा है! पीछे ही वह दूत प्रतीक्षा में है जिसके साथ उसे उस पार चले जाना है।

हे मेरे मरण, आ और मुझसे बात कर जारी >

अभी तो खुश्क पैरों पे मुझे रिमझिम भी लिखनी है…

दो मिसरों में दो ख़याल बांधते हुए उनमें रब्त कायम करना यह शाइर की ख़ूबी होती है। इस लिहाज से जनाब जसवंत राय शर्मा उर्फ़ नक्श लायलपुरी का यह शेर विराधाभासों में ख़ूबसूरती पैदा करता है।

अभी तो खुश्क पैरों पे मुझे रिमझिम भी लिखनी है… जारी >

इस शेर के ज़रिए बखूबी समझी जा सकती है ‘थ्योरी ऑफ कनेक्टिविटी’

जो बंदा बंदगी के रंग में डूबता है वह दुनियादारों से कुछ इसीलिए अलग होता है क्योंकि वह अपने भीतर छुपे हुए राज़ को राज़ नहीं रहने देता। वह सब कुछ सामने लाने की हिम्मत करता है।

इस शेर के ज़रिए बखूबी समझी जा सकती है ‘थ्योरी ऑफ कनेक्टिविटी’ जारी >