childhood memories

जहां नर्मदा में नहाना सपड़ना था और शून्य था मिंडी

तब दाल पकती नहीं पर चुरति थी। क्रिकेट मैं रन बनाए नहीं पर हेड़े जाते। नदी तक जाने वाले रास्ते या तो डीह कहलाते या सपील।

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बाल सेट करने का मतलब होता था ‘अमिताभ कट’

मुझे अपने लड़के दोस्तों पर तो भरोसा था लेकिन एक दिन वह लड़की मेरे घर आई। मेरी खुशी तभी गम में बदल गई जब उसने मेरी मां के सामने राज खोल दिया।

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तब ऐसी बोलचाल को मोहब्बत माना जाता था

रसायन प्रयोगशाला के तमाम उपकरण बड़े आकर्षित करते। एक दिन मैंने वहां से एक pipette उठाई और अपने पेंट में खोंस ली। मेरे एक सहपाठी ने सर को ये गुप्त जानकारी दे दी।

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आई सा ‘मस्का-डोमेस्टिका’ इन माय रूम

तिवारी सर हमें हिंदी में अंग्रेजी पढ़ाते, स्थानीय भाषा और मुहावरों का प्रयोग करते। उनका पीरियड शांति और उल्लास के साथ गुजरता।

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फेंके हुए सिक्कों में से उनके हाथ 22 पैसे लगे…

मेरे लिए प्रथम पंक्ति में बैठ कर फिल्म देखने का यह पहला मौका था। जब ‘कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को’ गाना चालू हुआ तब सिक्कों की बरसात शुरू हुई।

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… उसने जयघोष करते हुए परीक्षा हॉल में खर्रे बिखेर दिए

क्रिकेट मैच के आंखों देखा हाल सुनने का भूत लड़कों के सिर चढ़ कर बोलता था। हर काल-खंड के बाद जब मास्साब की अदला-बदली होती ट्रांजिस्टर की आवाज बढ़ जाती।

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