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अगर कोई पवित्र आत्मा यहां से गुजर रही है तो …

दीदी पहले ही घोषणा करती, “जिसको भी डर लग रहा है, अभी बाहर चला जाए। एक बार अनुष्ठान शुरू हुआ, फिर किसी को उठना, हँसना, डरना सख्त मना है। अगर आत्मा गुस्सा हो गई तो भगवान ही बचा पाएंगे।”

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तस्‍वीर संग जिसका जन्‍मदिन मनाया था वह 40 साल बाद यूं मिला …

मैंने पूछ ही लिया, कि भैया कहां है, जिनकी शान में यह आयोजन हो रहा है? आंटी ने मुस्कुराते हुए, एक पर्दा हटाया और एक 3×2 की फ्रेम की हुई फोटो प्रकट हुई। चित्र में एक किशोरवय का चेहरा मुस्करा रहा था। आंटी ने परिचय कराया, “ये है विनायक… इसका ही birthday है।

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एक चाय की प्याली और ‘दीमाग खोराब से ठोंडा’ हो जाता

शर्मा जी उठते हुए बोले, “बहुत लंबी कहानी है रे कोंडैया!” एक दिन गौरैय्या ने भी कहानी सुनाई, “सिंग वाला सित्ता” उर्फ सींग वाला चीता। वह भी मस्त थी। हमारी ये सभा मां की पुकार से ही विसर्जित होती।

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संपूर्णता का दूसरा नाम महान हो जाना है

सर्वज्ञानी हो जाते ही आसक्ति की व्यर्थता का रहस्य मालूम पड़ जाता है। आसक्ति विराट तक पहुंचने के ठीक पहले आ खड़ी होने वाली पहली और आखिरी दीवार है।

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Mobile Etiquette: यूं खर्च होते हैं, जैसे लूट जाता है कोई …

यह समय सोचने का है कि क्‍या मोबाइल एटिकेट्स की कोई क्‍लास शुरू करनी चाहिए क्‍योंकि पढ़े लिखो से लेकर निरक्षर तक हर व्‍यक्ति को ऐसी क्‍लास की जरूरत है। ऐसी क्‍लास जो यह सिखाए कि सार्वजनिक स्‍थानों पर तेज तेज आवाज में बात करने से क्‍या होता है।

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नहीं चाहिए तुम्‍हारी शुभ कामनाएं, मेरा कोई मित्र नहीं…

कैसा हतभाग है कि उम्र बढ़ रही दिन प्रतिदिन, मगर अब तक कोई विपदा में हाथ बढ़ाने वाला न मिला, न फरिश्‍ता ही आया कोई। न हेठी दिखाता बाल सखा है, न बुद्धिमान का विवेक बढ़ाता मित्र।

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मैसेज साफ था, जान-पैचान होने का मतलब यह नहीं कि तू घुस्ताई चला आएगा

न्‍यूटन सर छात्रों को अनुशासन सिखाने के लिए कुख्यात थे। रिन से धुले सफेद झक्क कपड़े, विदेशी जूते, हाथ में केन और मुंह में सीटी उनकी पहचान थी। अपनी बेंत और हाथों का इस्तेमाल वो बच्चों की कुटाई हेतु निपुणता से करते।

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संगीत की तरह सुनाई देती साइकिल के टायरों की आवाज

महानदी से निकली हुई एक मुख्य नहर माना कैंप को दो भांगों में बांटती थी। उसके किनारे ऊंचे थे और उस पर लाल मुरम बिछी थी। उस पर साइकिल के टायरों की आवाज एक संगीत की तरह सुनाई देती।

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हमारे लिए ये एक बड़ा सदमा था …

घर पहुंचते ही एक हम सब की एक मीटिंग हुई। प्रश्न था, अब इन्हें कैसे संभालें? एक गाय श्यामा, उसकी बछिया, हमारे घर के आलरेडी सदस्य थे, इसलिए दो और नन्हे सदस्यों का जुड़ना कोई मुश्किल काम भी नहीं था।

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