कुछ लोग मिले फरिश्‍तों जैसे…वो जिनके हाथ में रहता है परचम-ए-इंसां

जीना, असल में सरल आचरण और मनोभाव का समुच्च्यन है। हम विज्ञान, विचारणा, वितर्क और चिंतन के जंगल में मानवीयता को लगभग भूल चुके हैं, ऐसे में कुछ लोग मिले जो फरिश्‍तों जैसे हैं।

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अपनी गलियों में अपने गुलमोहर की छांंह

गुलमोहर हमें बताता है कि सबके साथ रहकर भी सबसे अलग रहना, सबमें अलग होना क्या होता है। कैसे सबके बीच रहकर भी अपनी विशिष्टता के कारण अलग से पहचाने जाते हैं हम।

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‘उपस्थित होना’ ही है वहां रहने का आनंद

सुंदर मठ, झरनें, झीलें और शांत कैफे, जहां आज का कर्कश विदेशी संगीत नहीं बल्कि धीमे स्वर में चलते बौद्ध मंत्र मैक्लोडगंज को एक दिलचस्प पर्यटन स्थल बनाने में योगदान करते हैं।

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हमारी अपनी शाम का रंग

शब्‍दों और तस्‍वीरों का मिला जुला रंग हमें खुद से, अपनी यादों से जोड़ता है। हमरंग में उसी शाम का रंग जो हमारी अपनी है। हमारी यादों वाली शाम। हमारे अहसासों वाली शाम।   

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इंसानों को पढ़कर पहचानने की लाइब्रेरी है ये दुनिया

ये दुनिया इंसानों को पढ़कर पहचानने की लाइब्रेरी है। यहां इंसान नाम की किताब फ्री में उपलब्ध है। लेकिन कुछ अपवाद भी हैं। जैसे दुनिया की बेहतरीन पुस्तकें सबकी पहुंच में नहीं वैसे ही बेहतरीन इंसान भी सबको मिल पाना सबके नसीब में नहीं।

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केवल सच की घुट्‌टी से तोड़ा जा सकता है झूठ का नशा

इन दिनों जबकि प्रोपगंडा आधारित फिल्मों का बोलबाला है, इस फिल्म की खूबसूरती यही है कि यह फिल्म इतिहास के एक ऐसे घटनाक्रम से दर्शकों को रूबरू कराती है जिसके बारे में उन्हें कुछ खास नहीं पता है।

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अमर सिंह चमकीला फिल्म के बहाने

लोगों की पसंद और मजहब के तथाकथित प्रहरियों के द्वारा तय किये जा रहे मापदंडों के बीच किसी तरह संतुलन बनाते हुए लेकिन अंतत: अपने संगीत में रमे हुए चमकीले की कहानी जानने योग्य और चौंकाने वाली है।

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लंबा सफर मुश्किल डगर 

एक तबका ऐसा है जो कभी कर्ज डिफॉल्ट नहीं करता। दूसरा हमेशा बैंक का एनपीए (Non performing loan डूबा हुआ कर्ज) बढ़ाता है। हमारी व्यवस्था का बर्ताव आर्थिक लेनदेन की ईमानदारी से नहीं बल्कि सामाजिक स्‍तर से तय होता है। हैसियत देख कर व्‍यवहार करने वाली व्‍यवस्‍था से मिला एक कटु अनभव।

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नए साल में नई तरह की सेल्फी, पहले से बेहतर देखें दुनिया

आपकी सेल्फी में आपका कुछ भी नहीं है,जो कुछ कमाल है तकनीक का है,आप एक सूखे पीले पत्ते की मानिंद भर हैं। रोशनी का पता अंधेरे में चलता है। ओशो कह गए कि रोशनी नहीं पीछा अंधेरा करता है। ये तो आप हैं जो रोशनी का पीछा करते हैं जबकि आपका पीछा अंधेरा करता है।

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क्‍या चेहरे पर लिखा है, आओ और मूर्ख बनाओ…

हमारे लिए किसी दिन की क्‍या जरूरत है? हमें तो कोई भी, कोई गैर भी, कोई अपना भी, कभी भी मूर्ख बना सकता है। हमें कोई और कहां मूर्ख बनाता है? हम खुद ही खुद को ठगते हैं। हर बार मूर्ख साबित होने के बाद हमारे मन का हीरामन एक कसम खाता है और फिर वही हीरामन अपनी कसम भूल जाता है।

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