तू जहां तक दिखाई देता है, उससे आगे मैं देखता ही नहीं

शायरी वो कमाल की है कि सीधे दिल में उतरती है। वैसे ही जैसे दिल से कही जाती है। उन्‍हें खूब सुना गया। जितना सुना गया उससे ज्‍यादा सुनाया गया। कभी अपने हाल बताने के लिए, कभी अपने दिल की कहानी जताने के लिए।

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माह में एक फिल्‍म देखता लेकिन बैठता बालकनी में ही

जयेंद्रगंज, ढोली बुआ का पुल, इंदरगंज, हजीरा और मुरार में जैसे कोचिंग क्लासेस और गुरुजनों की बड़ी-छोटी दुकानें सज गईं। छात्र-छात्राओं का रेला दिन भर शहर की सड़कों पर भेड़ों की तरह भटकता रहता।

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गोल-गोल रानी,इत्ता-इत्ता पानी, उजाले के खेल की कहानी

बचपन से ही इस खेल को बूझने की तमन्ना थी जिसके बोल हैं-गोल-गोल रानी,इत्ता-इत्ता पानी। आइए आज इस खेल की कहानी को समझते हैं। शरद पूर्णिमा की रात समझते हैं कि गोल का आखिर चक्कर क्या है!

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मेरे होश उड़ गए, वही पेपर आया, जो कल मिला था

मैं भ्रमित था। जो पर्चा मैंने रात को देखा था, हूबहू वही मेरे सामने था। मुझे विश्वास नहीं हुआ, कुछ देर तक मैं इसी भ्रम में रहा कि मैं ठीक से पढ़ नहीं पा रहा हूं।

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हमारे अनिल यादव जी …

मेरे जीवन अब बारी थी चलन के मुताबिक ‘गंगा नहाने’ की। लेकिन कौन सी गंगा में,कैसे नहाना है यह मुझे ही तय करना था। मैं एक खास काम करना चाहता था और यही मेरा गंगा स्नान था।

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परीक्षा की पहली रात मुझे सोना था लेकिन घर आते-आते 2 बज गए

मेरे सामने पर्चा रखा गया, चाय और नाश्ता पेश किया गया और पांच जोड़ी आंखें मुझ पर केंद्रित हो गईं। मैंने किसी वकील की तरह, दस्तावेज पढ़ा, जो किसी एग्जाम के पर्चे की तरह नजर आता था और साइक्लोस्टाइलड था। उन प्रश्नों के जवाब खोजने में मुझे भी 3-4 घंटे लगे।

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सबसे जरूरी थी ऐसी घड़ियों की मौत …

ऐसी घड़ियों की मौत सबसे जरूरी थी जिनके बूते चला करती थी घरों की शांत और संतोषप्रद जिंदगी। संस्कृति-समाज-घर के ताने-बाने के टूटने के लिए बस एक घड़ी के लुप्त होने की जरूरत होती है।

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बेचैनी बढ़ रही थी, लैब से नीला थोथा उठाया कर रख लिया…

मेरी बैचैनी अब अवसाद की ओर बढ़ चली थी। लगता था, कि किसी तरह इस जिंदगी से छुटकारा मिले। मैंने पढ़ रखा था नीला थोथा (कॉपर-सलफेट) एक विष है। एक दिन मैंने एक मुट्ठी भर नीला थोथा चुरा लिया।

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मां पूछती, दिन कैसा गया?, मैं झूठ कह देता, बहुत अच्छा

पापा जब शाम को ऑफिस से आते तब मैं किसी किताब को खोल कर बैठ जाता ताकि उन्हें सब बच्चे पढ़ते हुए मिलें और विश्वास कायम रहे कि, “all is well.”  मां तो अपने कामों में व्यस्त रहतीं अतः उन्हें भी भनक नहीं लगी।

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