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गुरु के सान्निध्य में रियाज़ की प्रोसेस

संगीत से जुड़े मनुष्य के मनोवैज्ञानिक और व्यवहारगत पक्षों से भी हर कलाकार को परिचित होना चाहिए। आज की भाग-दौड़ भरी जीवनशैली में बढ़ते स्ट्रेस और एंग्जायटी से निपटने के लिए भी लोग संगीत के निकट आ रहे हैं। यह उजला पक्ष भारतीय समाज के जागृत विवेक का स्वत: परिचायक है।

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संगीत सभा के बाद क्यों बजाई जाती हैं तालियां?

श्रोता अपने सुनने वाले मन को संपूर्ण रूप से शुरूआती स्तर पर खाली कर लेते हैं, इसमें कलाकार की आलाप लेने वाली प्रक्रिया एक जरिया बनती है। अंत में अगर आनंद स्वरूप श्रोता के अश्रु निकल पड़े तो समझिए वह अपने में डुबकी लगा चुका है,एकात्म घट चुका है।

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