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यह खाली समय में किया जाने वाला काम नहीं है…

आज इस घटना का जिक्र इसलिए क्योंकि हिंदी दिवस का दिन इस बात के लिए एकदम उपयुक्त है कि हम अनुवादकों की दिक्कतों, उनके काम अहमियत नहीं दिए जाने, उनको असम्मानजनक भुगतान किए जाने जैसे मुद्दों पर भी बात करें।

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जम गए, जाम हुए, फंस गए; अपने ही कीचड़ में धंस गए

अपने समय में साहित्य जगत में गंभीर दस्तक के बावजूद मुक्तिबोध सही मायनों में वह पहचान हासिल नहीं कर सके थे जिसके वह हकदार थे। उनके निधन के तत्काल बाद उनकी ख्याति का ऐसा बवंडर उठा जिसने सारे हिंदी साहित्याकाश को ढंक लिया।

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बाबरौ बनाइ कै बैरागी कहलावत हैं

आशु चौधरी वृषभानु की लली देखऐसो चढ्यो राग-रंगमोरपंख धारी योंटेढ़े मुसक्यावत हैंललिता-विशाखा कूं दैचकमा भये यों चम्पतअकेली कर श्यामा जू केचरण पखरावत हैंअसीम लीला करत श्यामभनक न नैकूं दैकेरसिकन कूं बीच ठौरटेढो नचावत हैंराखत हैं दूरी परदूर राखत रागन तेबाबरौ

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सबसे अच्‍छा समय, सबसे खराब समय

शांतिलाल जैन, प्रख्‍यात व्‍यंग्‍यकार ‘‘यह सबसे अच्छा समय था, यह सबसे खराब समय था।’’ इन पंक्तियों के लेखक ब्रिटिश उपन्यासकार चार्ल्स डिकन्स कभी भारत आए थे या नहीं मुझे पक्के से पता नहीं, मगर पक्का-पक्का अनुमान लगा सकता हूं कि

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