इतनी मुहब्बत! मुझे ऐसा प्रेम कहीं ना मिला
यही वह जगह थी जहां मैंने बंगाली संस्कृति, उनके महान लेखकों और फिल्मकारों को जानना शुरू किया। गुरुदेव की लिखी ‘The Home coming’ पढके मैं रोया।
यही वह जगह थी जहां मैंने बंगाली संस्कृति, उनके महान लेखकों और फिल्मकारों को जानना शुरू किया। गुरुदेव की लिखी ‘The Home coming’ पढके मैं रोया।
आज के बाद ऐसा नहीं होना चाहिए, की धमकी के बाद बिना किसी मारपीट और खून-खराबे के उस धमकैया को जाने दिया। दादागिरी पाठशालाओं में बहुत सामान्य है, पर इसका असर कमजोर पक्ष पर बहुत गहरा पड़ता है। बच्चों द्वारा की गई इस तरह की शिकायतों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए, और उसका समाधान निकालना चाहिए।
उसने हमारे सामने लगे झंडे के डंडे को पकड़कर, गोल-गोल घूमना शुरू किया। जब ये सिलसिला कुछ ज्यादा ही लंबा खिंचा तो ध्यान गया। इस समस्या का रहस्य अगले दिन खुला जब पापा ने अपने पार्सल की मांग की।
दीदी पहले ही घोषणा करती, “जिसको भी डर लग रहा है, अभी बाहर चला जाए। एक बार अनुष्ठान शुरू हुआ, फिर किसी को उठना, हँसना, डरना सख्त मना है। अगर आत्मा गुस्सा हो गई तो भगवान ही बचा पाएंगे।”
मैंने पूछ ही लिया, कि भैया कहां है, जिनकी शान में यह आयोजन हो रहा है? आंटी ने मुस्कुराते हुए, एक पर्दा हटाया और एक 3×2 की फ्रेम की हुई फोटो प्रकट हुई। चित्र में एक किशोरवय का चेहरा मुस्करा रहा था। आंटी ने परिचय कराया, “ये है विनायक… इसका ही birthday है।
शर्मा जी उठते हुए बोले, “बहुत लंबी कहानी है रे कोंडैया!” एक दिन गौरैय्या ने भी कहानी सुनाई, “सिंग वाला सित्ता” उर्फ सींग वाला चीता। वह भी मस्त थी। हमारी ये सभा मां की पुकार से ही विसर्जित होती।
न्यूटन सर छात्रों को अनुशासन सिखाने के लिए कुख्यात थे। रिन से धुले सफेद झक्क कपड़े, विदेशी जूते, हाथ में केन और मुंह में सीटी उनकी पहचान थी। अपनी बेंत और हाथों का इस्तेमाल वो बच्चों की कुटाई हेतु निपुणता से करते।
महानदी से निकली हुई एक मुख्य नहर माना कैंप को दो भांगों में बांटती थी। उसके किनारे ऊंचे थे और उस पर लाल मुरम बिछी थी। उस पर साइकिल के टायरों की आवाज एक संगीत की तरह सुनाई देती।