हमारी अपनी शाम का रंग

शब्‍दों और तस्‍वीरों का मिला जुला रंग हमें खुद से, अपनी यादों से जोड़ता है। हमरंग में उसी शाम का रंग जो हमारी अपनी है। हमारी यादों वाली शाम। हमारे अहसासों वाली शाम।   

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इंसानों को पढ़कर पहचानने की लाइब्रेरी है ये दुनिया

ये दुनिया इंसानों को पढ़कर पहचानने की लाइब्रेरी है। यहां इंसान नाम की किताब फ्री में उपलब्ध है। लेकिन कुछ अपवाद भी हैं। जैसे दुनिया की बेहतरीन पुस्तकें सबकी पहुंच में नहीं वैसे ही बेहतरीन इंसान भी सबको मिल पाना सबके नसीब में नहीं।

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केवल सच की घुट्‌टी से तोड़ा जा सकता है झूठ का नशा

इन दिनों जबकि प्रोपगंडा आधारित फिल्मों का बोलबाला है, इस फिल्म की खूबसूरती यही है कि यह फिल्म इतिहास के एक ऐसे घटनाक्रम से दर्शकों को रूबरू कराती है जिसके बारे में उन्हें कुछ खास नहीं पता है।

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लंबा सफर मुश्किल डगर 

एक तबका ऐसा है जो कभी कर्ज डिफॉल्ट नहीं करता। दूसरा हमेशा बैंक का एनपीए (Non performing loan डूबा हुआ कर्ज) बढ़ाता है। हमारी व्यवस्था का बर्ताव आर्थिक लेनदेन की ईमानदारी से नहीं बल्कि सामाजिक स्‍तर से तय होता है। हैसियत देख कर व्‍यवहार करने वाली व्‍यवस्‍था से मिला एक कटु अनभव।

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नए साल में नई तरह की सेल्फी, पहले से बेहतर देखें दुनिया

आपकी सेल्फी में आपका कुछ भी नहीं है,जो कुछ कमाल है तकनीक का है,आप एक सूखे पीले पत्ते की मानिंद भर हैं। रोशनी का पता अंधेरे में चलता है। ओशो कह गए कि रोशनी नहीं पीछा अंधेरा करता है। ये तो आप हैं जो रोशनी का पीछा करते हैं जबकि आपका पीछा अंधेरा करता है।

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क्‍या चेहरे पर लिखा है, आओ और मूर्ख बनाओ…

हमारे लिए किसी दिन की क्‍या जरूरत है? हमें तो कोई भी, कोई गैर भी, कोई अपना भी, कभी भी मूर्ख बना सकता है। हमें कोई और कहां मूर्ख बनाता है? हम खुद ही खुद को ठगते हैं। हर बार मूर्ख साबित होने के बाद हमारे मन का हीरामन एक कसम खाता है और फिर वही हीरामन अपनी कसम भूल जाता है।

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मटके तो मटके हैं

लकड़ी द्वारा घुमाया जाने वाला चाक आजकल बिजली से चलने लगा है। गधे पर मिट्टी लाने का काम ट्रैक्टर पर निर्भर हो गया है। बेचने के लिये फेरी लगाने के लिए मोटरसाइकिल का प्रयोग होने लगा है।

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मंडी से कंगना रनौत… और पोल खुलती गई  

सुप्रिया श्रीनेत, मृणाल पांडे और कंगना रनौत ने जो टिप्पणियां कीं उसमें उन्हें तत्काल कुछ भी गलत नहीं लगा। टोके जाने पर जरूर किसी ने समझदारी दिखाते हुए माफी मांग ली तो कोई अपनी बात पर अड़ा रहा लेकिन यहां असल चुनौती यह है कि ऐसी सोच को किस प्रकार समाप्त किया जाए?

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मैं डरती हूं, क्‍या आपको डर लगता है?

“हां, मुझे आज भी डर लगता है। अल सुबह जब मैं वॉक या दौड़ने के लिए या फिर साइकिल चलाने के लिए अकेले निकलती हूं तो मुझे डर लगता है। इस डर के कारण ही मैं कोशिश करती हूं कि हूडी वाले जैकेट पहनूं जिससे मेरे स्त्री या पुरुष होने को लेकर भ्रम की स्थिति बन जाए।” इसकी वजह एकदम साफ है। बचपन में पैदल स्कूल जाते समय ही मुझे लोगों की निगाहों को पढ़ना आ गया था और शायद हर महिला को यह हुनर विरासत में मिलता है।

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अनंत अंबानी का वनतारा: तारीफ करें या …

वनतारा की बात करते हुए अनंत अंबानी संवेदना से भरे नजर आते हैं। उनकी आंखों में वन्‍य प्राणियों के लिए कुछ कर जाने के उपजी चमक दिखती है। सभी चाहते हैं कि शीर्ष पर बैठे लोगों में यह संवेदनशीलता बनी रहे। अनंत जैसे युवा मन से भावपूर्ण नहीं होते तो संभव है रोटी मांगने पर वे भी ब्रेड क्‍यों नहीं खा लेते सवाल करते।

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