pankaj

हम उसे गटागट के नाम से जानते थे …

उसने हमारे सामने लगे झंडे के डंडे को पकड़कर, गोल-गोल घूमना शुरू किया। जब ये सिलसिला कुछ ज्यादा ही लंबा खिंचा तो ध्यान गया। इस समस्‍या का रहस्य अगले दिन खुला जब पापा ने अपने पार्सल की मांग की।

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एक चाय की प्याली और ‘दीमाग खोराब से ठोंडा’ हो जाता

शर्मा जी उठते हुए बोले, “बहुत लंबी कहानी है रे कोंडैया!” एक दिन गौरैय्या ने भी कहानी सुनाई, “सिंग वाला सित्ता” उर्फ सींग वाला चीता। वह भी मस्त थी। हमारी ये सभा मां की पुकार से ही विसर्जित होती।

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हमारे लिए ये एक बड़ा सदमा था …

घर पहुंचते ही एक हम सब की एक मीटिंग हुई। प्रश्न था, अब इन्हें कैसे संभालें? एक गाय श्यामा, उसकी बछिया, हमारे घर के आलरेडी सदस्य थे, इसलिए दो और नन्हे सदस्यों का जुड़ना कोई मुश्किल काम भी नहीं था।

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हमने मान लिया, वो आंखें बंद कर सपने देख रहे हैं

घर पहुंचते ही एक हम सब की एक मीटिंग हुई। प्रश्न था, अब इन्हें कैसे संभालें? एक गाय श्यामा, उसकी बछिया, हमारे घर के आलरेडी सदस्य थे, इसलिए दो और नन्हे सदस्यों का जुड़ना कोई मुश्किल काम भी नहीं था।

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वाह भइया, पुरौनी का तो डाला ही नहीं!

पन्ना से रायपुर जाने को रवाना हुए। सुबह के 11 बज रहे थे और प्राणनाथ का गजर टन्न, टन्न, टन्न बज कर शायद, सुखद सफर का आशीष दे रहा था।

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जिन्‍होंने सिखाया चलते रहना ही जिंदगी है, रूकना यानी जड़ता

गुरू पूर्णिमा के शुभ अवसर पर महर्षि वेद व्यास की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले समस्त गुरूओं के सम्मान में समर्पित यह लेख।

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रेलयात्रा की व्‍यथा कथा-अंतिम भाग: टिकट कैंसल का संदेश और बेटिकट हो जाने की धुकधुकी

इस उम्र में बिना टिकट पकड़े जाने का भय सर पर सवार था। गाड़ी अपनी गति पकड़ चुकी थी, सह-यात्री अपने बिस्तर बिछा कर लेट गए थे। मां–बेटी, अपने गुप्त श्वान के साथ, परदे खींच कर मौन थे। मैं एक मृत्यु–दंड मिले, मुजरिम की तरह, जल्लाद का इंतजार कर रहा था।

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क्या सभी देशवासियों के लिए कानून समान हैं?

पुणे में जो घटना हुई है वह जघन्यतम अपराध है इसे किशोर न्याय के नाम पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए बल्कि किशोर न्याय अधिनियम 2015 के प्रावधानों पर फिर से विचार किया जाना चाहिए और विसंगतियों को दूर किया जाना चाहिए।

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डाकुओं के कब्‍जे वाली जगह पर एक साथ सौ मंदिर

एक-दो नहीं, लगभग आधा सैकड़ा से अधिक शिव मंदिर, जिन्हें आठवीं शताब्दी की कारीगरी का उत्कृष्ट नमूना कहेंगे। यह ‘बटेसर मंदिर समूह’ ख़जुराहो मंदिर से भी तीन सौ वर्ष पूर्व के बने हैं। हर दीवार व पत्थर को बारीकी से तराश कर बनाई गई बेशकीमती वास्तुशिल्प अपने होने पर इतराती, इठलाती खड़ी हो जैसे।

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