pankaj

रंगों से फरेब खाने वाले जरा खुशबुओं को आजमाएं…

झूठ सफेद ही क्‍यों होता है? कॉरपेट रेड ही क्‍यों होता है? फीता शाही लाल ही क्‍यों? ‘रेड फ्लेग’ ही क्‍यों और सहमति वाली झंडी हरी ही क्‍यों होती है और शांति के लिए सफेद झंडा ही क्‍यों?

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घटिया रील्स से नजरें हटाकर बाहर देखिए तो…

आइए जानते हैं कुछ ऐसी बातें जिन्हें सदियों से महिलाओं के बारे में सच माना जा रहा है लेकिन जिनका हकीकत से कोई वास्ता नहीं।

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ये माह-ए-रमजान है मेरे बच्‍चे, मैं चाहती हूं कि तुम…

तुम्हारी गलती नहीं है, किसी ने भी तुम्हें ये बताया ही नहीं कि तुम्हारा धर्म क्या है, मानसिक ग़ुलामी से अभी तुम हजारों कोस दूर हो क्यूंकि सत्य हैं कि ईश्वर ने तुम्हें सिर्फ इंसान बनाकर भेजा था…हिंदू या मुसलमान नहीं!

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इश्‍क रूहानी: क्‍यों मैंने ताजमहल नहीं देखा…

मैं अक्‍सर जिद किया करता था, मुझे आगरा जाना है। समझाइश मिलती, छुट्टियों में जाएंगे। कई छुट्टियां आईं और गईं। मैं कई जगह गया। मगर राह में आगरा आया ही नहीं।

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गोल-गोल रानी,इत्ता-इत्ता पानी, उजाले के खेल की कहानी

बचपन से ही इस खेल को बूझने की तमन्ना थी जिसके बोल हैं-गोल-गोल रानी,इत्ता-इत्ता पानी। आइए आज इस खेल की कहानी को समझते हैं। शरद पूर्णिमा की रात समझते हैं कि गोल का आखिर चक्कर क्या है!

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हमारे अनिल यादव जी …

मेरे जीवन अब बारी थी चलन के मुताबिक ‘गंगा नहाने’ की। लेकिन कौन सी गंगा में,कैसे नहाना है यह मुझे ही तय करना था। मैं एक खास काम करना चाहता था और यही मेरा गंगा स्नान था।

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मैंने अशोक लेलैंड को आंखों से ओझल होने तक निहारा!

अचानक मां चिल्लाईं, “रोको, रोको…किसी ने मेरे कंधे पर बाहर से कुछ मारा है! या तो ऊपर से कुछ सामान गिरा है।” उस्ताद सहित सभी चौंक गए। ट्रक रोक दिया गया। छान-बीन हुई।

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जहां नर्मदा में नहाना सपड़ना था और शून्य था मिंडी

तब दाल पकती नहीं पर चुरति थी। क्रिकेट मैं रन बनाए नहीं पर हेड़े जाते। नदी तक जाने वाले रास्ते या तो डीह कहलाते या सपील।

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फेंके हुए सिक्कों में से उनके हाथ 22 पैसे लगे…

मेरे लिए प्रथम पंक्ति में बैठ कर फिल्म देखने का यह पहला मौका था। जब ‘कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को’ गाना चालू हुआ तब सिक्कों की बरसात शुरू हुई।

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