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रामदेव का जादुई इलाज और पिछड़ता आयुर्वेद

आयुर्वेद की बुनियादी विचारधाराओं का व्यापक ज्ञान, वैज्ञानिक साक्ष्य की कमी के कारण वैज्ञानिक रूप से स्वीकार्य नहीं है। एलोपैथिक और आयुर्वेदिक दवाओं के दृष्टिकोण में बहुत बड़ा अंतर है।

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बोलते संगीत वाद्यों का चित्रकार नागनाथ मानकेश्वर

विगत दिनों एक ऐसी पेंटिंग या कहूं चित्रकृति पर नजर ठिठक गईं जिसमें प्रदर्शित कम हो रहा था मगर जो छुपे हुए अर्थ वह पेंटिंग बताना चाह रही थी उसकी आवाज मुझ तक जाने कैसे पहुंच गई कह नहीं सकता। इस आवाज को आप भी सुनें।

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कुछ लोग मिले फरिश्‍तों जैसे…वो जिनके हाथ में रहता है परचम-ए-इंसां

जीना, असल में सरल आचरण और मनोभाव का समुच्च्यन है। हम विज्ञान, विचारणा, वितर्क और चिंतन के जंगल में मानवीयता को लगभग भूल चुके हैं, ऐसे में कुछ लोग मिले जो फरिश्‍तों जैसे हैं।

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सिद्धांत रूप में बेहतर मार्क्सवाद आखिर है क्‍या?

मार्क्सवाद केवल एक राजनीतिक या आर्थिक सिद्धांत नहीं है। यह एक दार्शनिक सिद्धांत भी है और उसी से उसके राजनीतिक और आर्थिक सिद्धांत भी निकलते हैं।

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अपनी गलियों में अपने गुलमोहर की छांंह

गुलमोहर हमें बताता है कि सबके साथ रहकर भी सबसे अलग रहना, सबमें अलग होना क्या होता है। कैसे सबके बीच रहकर भी अपनी विशिष्टता के कारण अलग से पहचाने जाते हैं हम।

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‘उपस्थित होना’ ही है वहां रहने का आनंद

सुंदर मठ, झरनें, झीलें और शांत कैफे, जहां आज का कर्कश विदेशी संगीत नहीं बल्कि धीमे स्वर में चलते बौद्ध मंत्र मैक्लोडगंज को एक दिलचस्प पर्यटन स्थल बनाने में योगदान करते हैं।

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‘एनिमल’ हो चुके समाज का मोस्‍ट वायलेंट यात्रा में स्‍वागत

फिल्म को मोस्ट वायलेंट फिल्म की तरह से प्रमोट करते हुए फिल्ममेकर एक तरह से नये जॉनर की घोषणा कर रहा है। सवाल है कि क्या फिल्म को मोस्ट वायलेंट कहते हुए प्रमोट करना ठीक है?

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छलावा है जितनी मेहनत उतना कर्मठ कहने का फलसफा

दुनिया भर के श्रमिकों ने अथक परिश्रम से जो हक हासिल किए हैं। जो सुरक्षा हासिल की है उसे छीनने के जतन आज भी जारी हैं। विश्‍व श्रम दिवस इस लंबे संघर्ष से प्राप्‍त हुए हकों को याद रखने का दिन है।

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हमारी अपनी शाम का रंग

शब्‍दों और तस्‍वीरों का मिला जुला रंग हमें खुद से, अपनी यादों से जोड़ता है। हमरंग में उसी शाम का रंग जो हमारी अपनी है। हमारी यादों वाली शाम। हमारे अहसासों वाली शाम।   

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इक इरफान और उस इरफान से ‘जस्ट मोहब्बत’

किसी भी शहर को देखने का, उसे याद रखने का सबका एक अलग नजरिया होता है। यायावरी के जुनून को पंख देकर आज उड़ चली हूं मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में स्थिति दो प्रसिद्ध मंदिरों के प्रांगण में।

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