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टैरिफवाद केवल आर्थिक नीति नहीं, इसे वैचारिक युद्ध की घोषणा समझें

टैरिफवाद अब कोई अर्थनीति नहीं रहा—वह एक घोषित रणनीति है, जो व्यापार को सैनिक युद्धों के स्थान पर रखकर, उसे उन्हीं उद्देश्यों का औजार बना देती है।

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अभिव्यक्ति की आजादी सबसे कीमती, इसे दबाया नहीं जा सकता

यह मामला दिखाता है कि हमारे संविधान के अस्तित्व में आने के 75 साल बाद भी राज्य की कानून प्रवर्तन मशीनरी नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकार के बारे में या तो अनभिज्ञ है या इस मौलिक अधिकार की परवाह नहीं करती है।

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केवल अनुभव किया जा सकता था,आस्था का महासागर था वह

रास्ते भर मन कल्पनाओं में तैरता रहा, गंगा का दिव्य स्वरूप, साधु-संतों के अखाड़े, मंत्रों की गूंज और असंख्य दीपों से प्रकाशित वह पावन धरा। जब प्रयागराज पहुंचे, तो लगा जैसे समय की सीमाएं विलीन हो गई हों। वहां जो दृश्य था, वह केवल आँखों से देखा नहीं जा सकता था, बल्कि उसे अनुभव किया जाना था, वह आस्था का महासागर था, जहां हर लहर श्रद्धा की एक नई कहानी कह रही थी।

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तेरी गली से गुज़रता हूं इस तरह ज़ालिम…

इस शेर को अगर सिर्फ़ प्रेम के पहलू से देखा जाए तो एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को देखने की चाह में उसकी गली से इस तरह गुज़रने की बात करता है कि उसे ख़बर नहीं होती लेकिन वह उसे छू कर गुज़र जाता है।

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जीवन महज एक अनुभव है, हमें जिसे केवल देखना है

रातों में तारों को हमारा निहारना कहीं हमारे होने की दिशा से हमारा बतियाना ही तो नहीं! एक फूल जब झरता है तो अंततः वह अपनी ही जड़ों के सबसे निकट होता है। जड़ें जहां से वह चला था। जड़ों के निकट ही तो बने रहते हैं सोते, झरने, जो अस्तित्व के हर हाल में होने, होते रहने की ओर एकमात्र इशारा हैं।

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जब शब्द नहीं पहुंचते, चुप्पी पहुंचाने की कोशिश करता हूँ…

ग्राम्‍य जीवन के साथ रिश्‍तों और प्रेम की महीन गुंथन सुदर्शन व्‍यास की रचनाओं की विशिष्‍टता है। उनकी रचनाओं में शब्‍दों का आडंबर नहीं भाव की सादगी झलकती है।

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नदी किनारे जाऊंगा, कुछ तैरूंगा और डूब जाऊंगा…

‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से सम्मानित विनोद कुमार शुक्‍ल की कविताएं हर बार पाठ के साथ सोच, समझ और संवेदना का नया दरवाजा खोलती हैं।

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अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ –

उमर खैय्याम की रूबाइयां से प्रेरित ‘मधुशाला’, ‘मधुबाला’ और ‘मधुकलश’ बच्चन की रचना-त्रयी है। मधुशाला की रचना के कारण हरिवंश राय बच्‍चन को ‘हालावाद का पुरोधा’ भी कहा जाता है।

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झाड़ ऊँचे और नीचे चुप खड़े हैं आँख भींचे…

गांधी दर्शन को जीने वाले भवानी प्रसाद मिश्र आपातकाल में विरोध में खड़े हुए थे और प्रतिदिन नियम पूर्वक सुबह, दोपहर और शाम तीनों समय प्रतिरोध की कविताएं लिखा करते थे।

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तुम हृदय के गोदना से पहचान लेना मुझे…

हिंदी के सुख्‍यात कवि एकांत श्रीवास्तव की यह कविता मानव मन और प्रेम के उस कोमल स्‍वरूप और नाते को प्रस्‍तुत करती है जो हर युग में सर्वोत्‍तम भाव कहा गया है।

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