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स्‍मरण कुमार गंधर्व: अजुनी रुसून आहे, खुलतां कळी खुले ना

जिनकी प्रेम की निगाहें होतीं हैं वे बहुत दूर तक देखते हैं तारों को पढ़ते रहते हैं। जैसे प्रेम का सूत संकेतों की भाषा में काता जाता है, फिर प्रेम संबंध की गुंथी हुई डोर बनती है, आप किसी से आबद्ध होते हैं, उसी तरह प्रकृति भी आपकी प्रेयसी है।

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‘कठघरे में साँसें’: क्‍यों पढ़ें यह किताब?

यह किताब इसलिए पढ़ी जानी चाहिए कि यह लेखक की आत्‍मकथा नहीं उस शहर भोपाल की आत्‍मकथा है जिसने अपने बाशिंदों को बदहवास सड़कों पर दौड़ते देखा है, जो आज भी उन्‍हें दम तोड़ते देख रहा है।

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यदि यह उम्मीद है तो काश पूरी हो गई हो

उसकी हालत देखकर लग रहा था कि इस वक्त कोई ऐसा होना चाहिए इसके पास जो प्यार से कुछ पूछ भर दे…नरमाहट से हथेलियों को थाम ले… सर पर हाथ फिरा दे…।

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घर के जोगी: मानो वे कह रहे थे, किसी ने हमारी सुध ली नहीं, किसी ने हमें समझा नहीं

शुरुआत में यह सोचा भी नहीं था कि एक शहर को खड़ा करने में इतने कलमकारों का हाथ हो सकता है। इस पुस्तक में अपने घर के रचनाकारों पर लिखने की कोशिश में यह भी पता चला कि मेरा शहर तो बहुत सौभाग्यशाली है।

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पर्दा गिरा… हिंदी रंगमंच के नटसम्राट आलोक चटर्जी विदा

‘मृत्युंजय’, ‘नटसम्राट’ और ‘अंधा युग’ के अश्वत्थामा में आलोक भाई ने अभिनय की उत्कृष्ट मिसाल पेश की। आलोक चटर्जी का जाना देश के रंगमंच से अभिनय के आलोक का स्‍याह हो जाना है।

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घर के जोगी: रतलाम के कवित्‍त और उसकी विशिष्‍टता का लेखा

इस पुस्‍तक में युवा साहित्यकार आशीष दशोत्तर ने अपने शहर ‘रतलाम’ के 56 रचनाकारों के कविकर्म से परिचित करवाने का बेहद अहम् कार्य किया है।

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मंच पर ‘बूढ़ी काकी’: काकी का अधीर मन और इच्छा का प्रबल प्रवाह

बचपन में पढ़ी यह कहानी तो आपको याद होगी? कथा सम्राट प्रेमचंद की प्रख्‍यात कहानी ‘बूढ़ी काकी’। संपर्क बुनियादी शाला के कक्षा 10 वीं के बच्‍चों ने वार्षिकोत्‍सव में इसे मंचित किया।

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यह ठंड है, हल्‍के में बिल्‍कुल मत लीजिए, जान ले लेगी…

सर्दियां कई तरह के उत्सव की सबब होती हैं। मगर आजकल सर्दियां किसी मुसीबत से कम नहीं। इसका कारण कुछ हमारी लापरवाही और इससे उपजी स्वास्थगत समस्याएं हैं। यदि आपको डायबिटीज है, आपको हाई बीपी या हार्ट व पाचन से जुड़ी कोई समस्या है, आप की उम्र ज्यादा है या बच्चे हैं, सलाह यही है कि ठंड को हल्के में न लीजिए। यह जानलेवा हो सकती है। जितनी जल्दी यह बात समझ ली जाए उतना अच्छा।

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साल नया पर मन का क्या?

क्या हम अपने जीवन की पूरी दिशा बदल सकते हैं? या हम सिर्फ संकीर्ण, घटिया, अर्थहीन जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं? क्या हम यह सब छोड़ सकते हैं और एक साफ स्लेट के साथ नए सिरे से शुरुआत कर सकते हैं?”

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नया साल तो आ गया, आपने क्‍या प्‍लान किया?

आइए, बात करते हैं 2025 के लिए कुछ ऐसे ही संकल्पों की जो एक व्यक्ति, परिवार के सदस्य और सामाजिक रूप से भी हमें बेहतर मनुष्य बना सकें।

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