मेरी बनाई झालर से झिलमिलाता था घर, कहां गए वे दिन?

अशफ़ाक की मधुर आवाज गूंजती, “आरती का समय हो गया है। सभी बहनों, भाइयों, माताओं, बच्चों से से निवेदन है कि वो गणपति/मां दुर्गा के पास आएं और आशीर्वाद पाएं।”

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लुंबिनी के आंगन में … एक स्‍वप्‍न का हकीकत हो जाना

लुंबिनी के प्राचीन पथों पर धीरे-धीरे कदम रखते हुए और मौन को अपनाते हुए, आप इस स्थल की आध्यात्मिक गहराई को अधिक सहजता से अनुभव कर सकेंगे।

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एक दुकान जहां सुई से लेकर जहाज तक सब मिलता था

यह अद्भुत कस्बा पूरी तरह नर्मदा माई का बच्चा था। सारे तीज-त्यौहार, उत्सव, मेले, माई के बिना अधूरे रहते। निवासियों की दिनचर्या भी पूरी तरह माई पर निर्भर थी।

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कर्नल साहब ने खिड़कियां पीटना शुरू की तो चीख-पुकार मच गई

आज के बाद ऐसा नहीं होना चाहिए, की धमकी के बाद बिना किसी मारपीट और खून-खराबे के उस धमकैया को जाने दिया। दादागिरी पाठशालाओं में बहुत सामान्य है, पर इसका असर कमजोर पक्ष पर बहुत गहरा पड़ता है। बच्चों द्वारा की गई इस तरह की शिकायतों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए, और उसका समाधान निकालना चाहिए।

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हम उसे गटागट के नाम से जानते थे …

उसने हमारे सामने लगे झंडे के डंडे को पकड़कर, गोल-गोल घूमना शुरू किया। जब ये सिलसिला कुछ ज्यादा ही लंबा खिंचा तो ध्यान गया। इस समस्‍या का रहस्य अगले दिन खुला जब पापा ने अपने पार्सल की मांग की।

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अगर कोई पवित्र आत्मा यहां से गुजर रही है तो …

दीदी पहले ही घोषणा करती, “जिसको भी डर लग रहा है, अभी बाहर चला जाए। एक बार अनुष्ठान शुरू हुआ, फिर किसी को उठना, हँसना, डरना सख्त मना है। अगर आत्मा गुस्सा हो गई तो भगवान ही बचा पाएंगे।”

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तस्‍वीर संग जिसका जन्‍मदिन मनाया था वह 40 साल बाद यूं मिला …

मैंने पूछ ही लिया, कि भैया कहां है, जिनकी शान में यह आयोजन हो रहा है? आंटी ने मुस्कुराते हुए, एक पर्दा हटाया और एक 3×2 की फ्रेम की हुई फोटो प्रकट हुई। चित्र में एक किशोरवय का चेहरा मुस्करा रहा था। आंटी ने परिचय कराया, “ये है विनायक… इसका ही birthday है।

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एक चाय की प्याली और ‘दीमाग खोराब से ठोंडा’ हो जाता

शर्मा जी उठते हुए बोले, “बहुत लंबी कहानी है रे कोंडैया!” एक दिन गौरैय्या ने भी कहानी सुनाई, “सिंग वाला सित्ता” उर्फ सींग वाला चीता। वह भी मस्त थी। हमारी ये सभा मां की पुकार से ही विसर्जित होती।

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मैसेज साफ था, जान-पैचान होने का मतलब यह नहीं कि तू घुस्ताई चला आएगा

न्‍यूटन सर छात्रों को अनुशासन सिखाने के लिए कुख्यात थे। रिन से धुले सफेद झक्क कपड़े, विदेशी जूते, हाथ में केन और मुंह में सीटी उनकी पहचान थी। अपनी बेंत और हाथों का इस्तेमाल वो बच्चों की कुटाई हेतु निपुणता से करते।

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