महंगे कलमों के दौर में उसका नेपथ्य में चले जाना…

आज जब दुनिया में लाखों बल्कि करोड़ों रुपये मूल्य के कलम उपलब्ध हैं तब नरकट के कलम की याद वैसी ही है जैसे पीएनजी के दौर में दुनिया की पहली आग की याद या फिर सुपर कारों के इस दौर में दुनिया के पहले पहिए की याद।

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…. गति हो तो छोटी हो जाती हैं दूरियां

हम जिस दौर में बड़े हुए उस दौर में साइकिल स्टेटस सिंबल नहीं बल्कि जरूरत हुआ करती थी। साइकिल उन कुछ चीजों में शामिल है जिन्हें इस दुनिया में हो सके तो न्यूनतम बदलावों के साथ अपने पुराने रूप में बचे रहना चाहिए।

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न कड़वी निंबोली, न खजूर जैसी दूरी, फिर भी मिले नहीं सिन्नी जैसी खिन्नी

यह प्रकृति का आश्चर्य ही है कि विशाल वृक्ष में नीम की निबोली से दिखाई देने वाले छोटे पीले फल लगते हैं। दूर से देखने पर लगता है जैसे ‘बूंदी’ (एक मिठाई) बेची जा रही है। स्थानीय बोली में बूंदी को ‘सिन्नी’ भी कहते हैं। सो बेचने वाले ‘सिन्नी जैसी मीठी खिन्नी’ ले लो की आवाज लगाकर इसे बेचते हैं।

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मैं एक ‘बुरी’ मां हूं और मुझे इसका कोई पछतावा नहीं

मैं ‘बुरी’ मां हूं क्योंकि मैं रोबोट की तरह व्यवहार नहीं कर सकती। मुझे भी गुस्सा आता है, मुझे भी रोना आता है, मैं फिल्मों और टीवी और फिल्मों में नजर आने वाली मां की तरह मां नहीं हूं।

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रिश्तों की सियासत में उलझा मां का दुलारा

मानव संबंध तो जटिल होते ही हैं पर जितनी जटिलता मां, बेटे और बहू के संबंध में अभिव्यक्त होती है, वह तो अद्भुत और असाधारण होती है! उसकी कोई तुलना ही नहीं!

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अपनी गलियों में अपने गुलमोहर की छांंह

गुलमोहर हमें बताता है कि सबके साथ रहकर भी सबसे अलग रहना, सबमें अलग होना क्या होता है। कैसे सबके बीच रहकर भी अपनी विशिष्टता के कारण अलग से पहचाने जाते हैं हम।

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‘उपस्थित होना’ ही है वहां रहने का आनंद

सुंदर मठ, झरनें, झीलें और शांत कैफे, जहां आज का कर्कश विदेशी संगीत नहीं बल्कि धीमे स्वर में चलते बौद्ध मंत्र मैक्लोडगंज को एक दिलचस्प पर्यटन स्थल बनाने में योगदान करते हैं।

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इक इरफान और उस इरफान से ‘जस्ट मोहब्बत’

किसी भी शहर को देखने का, उसे याद रखने का सबका एक अलग नजरिया होता है। यायावरी के जुनून को पंख देकर आज उड़ चली हूं मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में स्थिति दो प्रसिद्ध मंदिरों के प्रांगण में।

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मूर्ख होने में भी है एक खास समझदारी

जिसे हम बुद्धिमान कहते हैं वह एक बहुत ही चतुर और धूर्त व्यक्ति हो सकता है, और जिसे मूर्ख कहते हैं, वह बड़ा ही धैर्यवान, शांतचित्त, गहरी दृष्टि रखने वाला कोई व्यक्ति भी हो सकता है। सबसे कीमती बात है यह जानना कि हम क्या नहीं जानते।

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मैं डरती हूं, क्‍या आपको डर लगता है?

“हां, मुझे आज भी डर लगता है। अल सुबह जब मैं वॉक या दौड़ने के लिए या फिर साइकिल चलाने के लिए अकेले निकलती हूं तो मुझे डर लगता है। इस डर के कारण ही मैं कोशिश करती हूं कि हूडी वाले जैकेट पहनूं जिससे मेरे स्त्री या पुरुष होने को लेकर भ्रम की स्थिति बन जाए।” इसकी वजह एकदम साफ है। बचपन में पैदल स्कूल जाते समय ही मुझे लोगों की निगाहों को पढ़ना आ गया था और शायद हर महिला को यह हुनर विरासत में मिलता है।

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