
इश्क मेरा: जहां सफर ही मंजिल है
जब कभी मैं उदास होती हूं तो वह मुझे आवाज देती है-मानो कह रही हो, ‘चलो दोस्त लॉन्ग ड्राइव पर चलते हैं।’ मुझे उससे और उसे मुझसे गहरा इश्क है। उसके पहिये मेरे लिए पंख हैं। मैं उनके दम पर उड़ान भरती हूं।
जब कभी मैं उदास होती हूं तो वह मुझे आवाज देती है-मानो कह रही हो, ‘चलो दोस्त लॉन्ग ड्राइव पर चलते हैं।’ मुझे उससे और उसे मुझसे गहरा इश्क है। उसके पहिये मेरे लिए पंख हैं। मैं उनके दम पर उड़ान भरती हूं।
आज आपको अपने संग सैर करवाती हूं मुरैना जिले के सिहोनिया कस्बे में स्थित ‘ककनमठ मंदिर’ की, जो भुरभुरी रेतीली मिट्टी वाले खेतों के बीच खड़ा इतराता है। यह मंदिर अपनी अचरज भरी विशिष्टता के कारण देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
अगर यह कहूं कि यह फिल्म सिनेमा की भाषा में लिखी गई कविता है तो यह बहुत सतही टिप्पणी होगी। आसान सी। ऐसा लगेगा कि उस कवित्त तक पहुंचा ही नहीं जो सिनेमा में रचा गया है।
कभी लगता कि ऐसा होता उसके एक किरदार का नाम मेरा होता। मैं कभी उसके संग समंदर की लहरों में छलांगें लगाता, कभी गोद में उसकी सर रख, सो ही जाता। क्या भरोसा वो सो जाती कभी मेरी तहों में जैसे खो जाते है दो जिस्म चादर की सिलवटों में। क्या जाने, क्या होता। वो मेरी होती, मैं उसका होता।
आज बरबस ही चाँद याद आ रहा है। पूर्णिमा पर चाँद पूरे शबाब पर होता है, अपनी 64 कलाओं के साथ। यूँ देखें तो चाँद केवल एक उपग्रह हैं और भावनात्मक दृष्टिकोण कहता हैं कि चाँद हमारा ‘मामा” है। बचपन में परिवार के बाहर अगर किसी से नाता जुड़ता है…