जीवन के सबसे असली रंग की जगह का नकलीपन अखरता नहीं है आपको?
प्लास्टिक की घास और केमिकल पेंट की महक वाले नकली छोटे मैदानों में न खेल असली हो पाता है और न ही भावनाएं।
प्लास्टिक की घास और केमिकल पेंट की महक वाले नकली छोटे मैदानों में न खेल असली हो पाता है और न ही भावनाएं।
इस उम्र में बिना टिकट पकड़े जाने का भय सर पर सवार था। गाड़ी अपनी गति पकड़ चुकी थी, सह-यात्री अपने बिस्तर बिछा कर लेट गए थे। मां–बेटी, अपने गुप्त श्वान के साथ, परदे खींच कर मौन थे। मैं एक मृत्यु–दंड मिले, मुजरिम की तरह, जल्लाद का इंतजार कर रहा था।
आश्चर्य की बात थी कि सेकंड एसी कोच में जीआरपी का कोई जवान नहीं था और पास के अन्य कोच में भी नहीं। जिन पर यात्रियों की जानमाल की हिफाज़त की जिम्मेदारी रहती है।
सुविधाओं के मामले में हम वर्ल्ड क्लास स्टेशनों के उपयोगकर्ता कहलाने लगे हैं लेकिन सुविधाएं दोयम दर्जे की ही हैं। कितना कष्टदायक है कि एक यात्री अपनी गाड़ी के इंतजार में घंटों प्लेटफार्म पर बैठा रहता है और उसे सटीक जानकारी भी नहीं मिल पाती है कि उसकी गाड़ी आखिर कब पहुंचेगी।
सरकार को जनरल कोच में यात्रा करने वाले गरीब यात्रियों का भी सोचना चाहिए, क्योंकि सबसे ज्यादा असुरक्षित वहीं होते हैं।
भारतीय रेलवे यूं तो सुविधाओं को बढ़ाने के लिए कई कदम उठा रही है लेकिन यात्रियों की बुनियादी समस्याएं जस की तस है। बरसों से वैसी हीं।
आइए, बतौर नागरिक हम एक पहल करें। एक चर्चा की शुरुआत करें। रेलयात्रा की अपनी कथा-व्यथा को साझा करें। शायद हमारी बात कुछ कानों तक पहुंचे।
कीर्ति चक्र विजेता शहीद अंशुमान सिंह के परिजन इस वक्त सुर्खियों में है। उनके माता-पिता ने अपनी बहू स्मृति पर गंभीर आरोप लगाए हैं। गहराई से पड़ताल करें तो महसूस होता है कि समस्या केवल आर्थिक नहीं है बल्कि इसकी जड़ें सामाजिक ताने-बाने में उलझी हैं।
संविधान भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की आकांक्षाओं का अंतिम उत्पाद है और उपनिवेशीकरण के नाम पर संविधान की वैधता को नकारना स्वतंत्रता सेनानियों और भारत को स्वतंत्रता दिलाने वाले लोगों के बलिदान को नकारने का प्रयास होता है।
बरगद का वृक्ष कभी-कभी 5000 साल तक जीता है पर वह सिर्फ बरगद का एक वृक्ष ही होता है, उससे ज्यादा कुछ भी नहीं। इसलिए कोई व्यक्ति दीर्घजीवी तो हो सकता है, पर वह एक स्वस्थ पशु भर बना रहेगा।