फिलामेंट एलिमेंट

सत्य की खोज क्‍या है? चीजों को वैसे देखना जैसी वे हैं

उपयोगितावादी दृष्टिकोण के चलते चीजों की ही तरह, विचारों को भी हम इकट्ठा करते चले जाते हैं। इस तरह पुरानी होती चली जाती चीजों के साथ-साथ आप पुराने होते जाते हैं। फिर इस भार के नीचे हम दबते चले जाते हैं।

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इस तरह की प्रतीक्षाओं का अंत हो जाता है…

हर बार आप आश्चर्य से सीखते हैं। जो ज्ञान अचानक प्रस्फुटित हो, वही सिखा जाता है। हर अचानक घटना एक आश्चर्य का होना है।

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गोल-गोल रानी,इत्ता-इत्ता पानी, उजाले के खेल की कहानी

बचपन से ही इस खेल को बूझने की तमन्ना थी जिसके बोल हैं-गोल-गोल रानी,इत्ता-इत्ता पानी। आइए आज इस खेल की कहानी को समझते हैं। शरद पूर्णिमा की रात समझते हैं कि गोल का आखिर चक्कर क्या है!

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सबसे जरूरी थी ऐसी घड़ियों की मौत …

ऐसी घड़ियों की मौत सबसे जरूरी थी जिनके बूते चला करती थी घरों की शांत और संतोषप्रद जिंदगी। संस्कृति-समाज-घर के ताने-बाने के टूटने के लिए बस एक घड़ी के लुप्त होने की जरूरत होती है।

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चलो आज प्रेम की बातें करते हैं…

शून्यता दरअसल बासीपन और ताजगी के बीच बनी हुई एक लकीर है जिसका आकार अधिक बड़ा करने की जरूरत है। यह जगह अपने आप में बड़ी डायनामिक है। यह परमानंद का ठिकाना है।

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अपने भीतर ज्‍यादा से ज्‍यादा शून्‍यता पैदा करें …

शून्यता दरअसल बासीपन और ताजगी के बीच बनी हुई एक लकीर है जिसका आकार अधिक बड़ा करने की जरूरत है। यह जगह अपने आप में बड़ी डायनामिक है। यह परमानंद का ठिकाना है।

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जानने के लिए दूरी जरूरी है …

जिसे माया कहा गया है उसे उसके द्वैत से दूरी हासिल कर ही अद्वैत के करीब जाकर फिर उसे जो द्वैत और अद्वैत से परे है, को जाना जा सकता है। अद्वैत से उतरकर फिर द्वैत की दुनिया में आया हुआ व्यक्ति ही सिद्ध है या साइंटिफिक भाषा में एलियन है।

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‘सब स्वीकार है’ भाव आते ही प्रकृति जैसे हो जाते हैं हम

जब हम कुछ सोचते ही नहीं तो जो जैसा घट रहा है वह स्वीकार है। वही मनमुताबिक है एक तरह से क्योंकि यहां मन नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस स्थिति को अ-मन रहकर जो पाया है। द्वैत की सुरंग में से होकर बाहर खुले में अब उन्मुक्त अद्वैत अपनी बाहें फैलाता है।

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संपूर्णता का दूसरा नाम महान हो जाना है

सर्वज्ञानी हो जाते ही आसक्ति की व्यर्थता का रहस्य मालूम पड़ जाता है। आसक्ति विराट तक पहुंचने के ठीक पहले आ खड़ी होने वाली पहली और आखिरी दीवार है।

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प्रकृति से जुड़े रहना यानी नेचुरल होना क्‍या है?

सामाजिकता के फेर में हमारा संबंध प्रकृति की शक्ति से टूट गया। एक तरह से जैसे विराट से संबंध विच्छेद हो गया। आज यहां हम विराट से जुड़ी बातें करेंगे। यह क्रममाला तीन कड़ियों में है।

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