Mobile Etiquette: यूं खर्च होते हैं, जैसे लूट जाता है कोई …

यह समय सोचने का है कि क्‍या मोबाइल एटिकेट्स की कोई क्‍लास शुरू करनी चाहिए क्‍योंकि पढ़े लिखो से लेकर निरक्षर तक हर व्‍यक्ति को ऐसी क्‍लास की जरूरत है। ऐसी क्‍लास जो यह सिखाए कि सार्वजनिक स्‍थानों पर तेज तेज आवाज में बात करने से क्‍या होता है।

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नहीं चाहिए तुम्‍हारी शुभ कामनाएं, मेरा कोई मित्र नहीं…

कैसा हतभाग है कि उम्र बढ़ रही दिन प्रतिदिन, मगर अब तक कोई विपदा में हाथ बढ़ाने वाला न मिला, न फरिश्‍ता ही आया कोई। न हेठी दिखाता बाल सखा है, न बुद्धिमान का विवेक बढ़ाता मित्र।

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प्रकृति से जुड़े रहना यानी नेचुरल होना क्‍या है?

सामाजिकता के फेर में हमारा संबंध प्रकृति की शक्ति से टूट गया। एक तरह से जैसे विराट से संबंध विच्छेद हो गया। आज यहां हम विराट से जुड़ी बातें करेंगे। यह क्रममाला तीन कड़ियों में है।

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आपकी हँसी इस देश की संपदा है, आप यूं ही हँसती रहें…

यह बात सरलादेवी चौधरानी ने अपनी आत्मकथा में लिखी है कि गांधी ने उनको ऐसा कहा। पर कहां पर कहा, यह मेरी कल्पना है। मेरा ऐसा कोई अजेंडा नहीं था कि गांधी की मूर्ति को ध्वस्त किया जाए या कि उस रिश्ते को एक सनसनीखेज रिश्ते के तौर पर पेश किया जाए।

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भरोसा करें या नहीं …

अक्‍सर लगता है वह मदद मांग रहा है, 10-20 रुपए देने से क्‍या होगा और थोड़ी ज्‍यादा रकम उसके हवाले कर कसम खाता हूं कि अगली बार धोखा नहीं खाऊंगा।

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जिन्‍होंने सिखाया चलते रहना ही जिंदगी है, रूकना यानी जड़ता

गुरू पूर्णिमा के शुभ अवसर पर महर्षि वेद व्यास की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले समस्त गुरूओं के सम्मान में समर्पित यह लेख।

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सोशल मीडिया के युग में नेरुदा से क्या सीख सकते हैं?

नेरुदा और उनके जैसे ही अन्य लोगों से हम सीख सकते हैं कि खुद को अभिव्यक्त करने का तरीका और सुनना किसी भी प्रतिरोध के मुख्य घटक हैं।

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