तुम खिलते रहना ताकि मैं मुस्कुराती रहूँ…

आज इतने साल बाद मिलने पर, उससे जी भर मिल लेने की इच्छा पर काबू पाना मुश्किल लग रहा था। ऐसा लगा कि जैसे कोई सपना जाग गया हो। स्मृतियाँ जैसे सामने टहलने लगीं…

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‘मिशन जंजीर फ्री’ के पहले कदम की प्रतीक्षा

अब समय की मांग है कि हम मनुष्यों के असंयमित व्यवहार को बदलने की शुरूआत आवारा,हिंसक और शिकारी स्वभाव के कुत्तों और जंजीरों में कैद ट्रेनिंग के बाद भी इनडिसिप्लिन्ड,अनुशासनहीन कुत्तों से करें। पक्षियों से शुरूआत हम कर ही चुके हैं।

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चाय को चाय ही रहने दो …

उन्होंने पूछा, ‘आप कौन सी चाय पियेंगी?’ मेरे लिए यह स्थिति और यह प्रश्न दोनों नए थे। मैं दो-तीन तरह की चाय के बारे में जानती थी लेकिन चाय की इतनी किस्में…तौबा तौबा। मैंने किसी तरह बस इतना कहा- ‘मैं सिंपल चाय लूंगी सर।’ मेजबान मुस्कराये, मानो मेरी कमअक्ली पर मन ही मन हंसे।

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एक दूजे के लिए: एक खूबसूरत मौसम की याद

‘एक दूजे के लिए’ उस ज़माने की फ़िल्म थी जब प्रेम होते ही प्रेमीजन बिस्तर पर कूद नहीं जाते थे। प्रेम का मतलब तब रोमांस ही होता था,’लव मेकिंग’ नहीं। कुछ झिझक बाक़ी थी। उदारीकरण आठ दस साल और दूर था।

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आपातकाल, एक खत और सरकारी नौकरी पर संकट

प्रख्‍यात हिंदी भाषाविद, लेखक और रतलाम महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. जयकुमार जलज का बीते दिनों देहांत हुआ। उनके कृतित्‍व को नमन करते हुए उनके ही द्वारा बताई गई घटना यहां प्रस्‍तुत है। आपातकाल के दौरान की यह घटना वास्‍तव में मूल्‍यों के प्रति आस्‍था और जीवन का सटीक उदाहरण है।

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पहला प्यार और मैं: साथ भी और पास भी

मेरा पहला प्यार मुझे जब मिला तब मैं शायद साढ़े पांच साल की रही होंगी। मैं बोलती गयी, वो मुस्कुराता रहा और फिर जब मैंने अपने आसपास देखा तो सभी मुझे तारीफ भरी नजरों से देख रहे थे।

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