लव ऑल: जिंदगी की कोर्ट पर अपना मैच
अगर यह कहूं कि यह फिल्म सिनेमा की भाषा में लिखी गई कविता है तो यह बहुत सतही टिप्पणी होगी। आसान सी। ऐसा लगेगा कि उस कवित्त तक पहुंचा ही नहीं जो सिनेमा में रचा गया है।
अगर यह कहूं कि यह फिल्म सिनेमा की भाषा में लिखी गई कविता है तो यह बहुत सतही टिप्पणी होगी। आसान सी। ऐसा लगेगा कि उस कवित्त तक पहुंचा ही नहीं जो सिनेमा में रचा गया है।
सरकारी सर्वे के दौरान महिलाओं से बात करने के लिए घर आंगन में कुछ देर बैठना हो जाता था। ऐसे ही सर्वे में एकबार सुवासरा के मीणा मोहल्ले में जाना यादगार अनुभव बन गया।
कभी लगता कि ऐसा होता उसके एक किरदार का नाम मेरा होता। मैं कभी उसके संग समंदर की लहरों में छलांगें लगाता, कभी गोद में उसकी सर रख, सो ही जाता। क्या भरोसा वो सो जाती कभी मेरी तहों में जैसे खो जाते है दो जिस्म चादर की सिलवटों में। क्या जाने, क्या होता। वो मेरी होती, मैं उसका होता।