कर्नल साहब ने खिड़कियां पीटना शुरू की तो चीख-पुकार मच गई

आज के बाद ऐसा नहीं होना चाहिए, की धमकी के बाद बिना किसी मारपीट और खून-खराबे के उस धमकैया को जाने दिया। दादागिरी पाठशालाओं में बहुत सामान्य है, पर इसका असर कमजोर पक्ष पर बहुत गहरा पड़ता है। बच्चों द्वारा की गई इस तरह की शिकायतों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए, और उसका समाधान निकालना चाहिए।

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‘सब स्वीकार है’ भाव आते ही प्रकृति जैसे हो जाते हैं हम

जब हम कुछ सोचते ही नहीं तो जो जैसा घट रहा है वह स्वीकार है। वही मनमुताबिक है एक तरह से क्योंकि यहां मन नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस स्थिति को अ-मन रहकर जो पाया है। द्वैत की सुरंग में से होकर बाहर खुले में अब उन्मुक्त अद्वैत अपनी बाहें फैलाता है।

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हम उसे गटागट के नाम से जानते थे …

उसने हमारे सामने लगे झंडे के डंडे को पकड़कर, गोल-गोल घूमना शुरू किया। जब ये सिलसिला कुछ ज्यादा ही लंबा खिंचा तो ध्यान गया। इस समस्‍या का रहस्य अगले दिन खुला जब पापा ने अपने पार्सल की मांग की।

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अगर कोई पवित्र आत्मा यहां से गुजर रही है तो …

दीदी पहले ही घोषणा करती, “जिसको भी डर लग रहा है, अभी बाहर चला जाए। एक बार अनुष्ठान शुरू हुआ, फिर किसी को उठना, हँसना, डरना सख्त मना है। अगर आत्मा गुस्सा हो गई तो भगवान ही बचा पाएंगे।”

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तस्‍वीर संग जिसका जन्‍मदिन मनाया था वह 40 साल बाद यूं मिला …

मैंने पूछ ही लिया, कि भैया कहां है, जिनकी शान में यह आयोजन हो रहा है? आंटी ने मुस्कुराते हुए, एक पर्दा हटाया और एक 3×2 की फ्रेम की हुई फोटो प्रकट हुई। चित्र में एक किशोरवय का चेहरा मुस्करा रहा था। आंटी ने परिचय कराया, “ये है विनायक… इसका ही birthday है।

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एक चाय की प्याली और ‘दीमाग खोराब से ठोंडा’ हो जाता

शर्मा जी उठते हुए बोले, “बहुत लंबी कहानी है रे कोंडैया!” एक दिन गौरैय्या ने भी कहानी सुनाई, “सिंग वाला सित्ता” उर्फ सींग वाला चीता। वह भी मस्त थी। हमारी ये सभा मां की पुकार से ही विसर्जित होती।

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सिर्फ सौ ग्राम!

हमारा वजन कभी भी स्थिर नहीं होता और वह थोड़ा-बहुत हमेशा बदलता रहता। शरीर में पानी के घटने-बढ़ने से वजन भी घटता-बढ़ता रहता है।

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संपूर्णता का दूसरा नाम महान हो जाना है

सर्वज्ञानी हो जाते ही आसक्ति की व्यर्थता का रहस्य मालूम पड़ जाता है। आसक्ति विराट तक पहुंचने के ठीक पहले आ खड़ी होने वाली पहली और आखिरी दीवार है।

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Mobile Etiquette: यूं खर्च होते हैं, जैसे लूट जाता है कोई …

यह समय सोचने का है कि क्‍या मोबाइल एटिकेट्स की कोई क्‍लास शुरू करनी चाहिए क्‍योंकि पढ़े लिखो से लेकर निरक्षर तक हर व्‍यक्ति को ऐसी क्‍लास की जरूरत है। ऐसी क्‍लास जो यह सिखाए कि सार्वजनिक स्‍थानों पर तेज तेज आवाज में बात करने से क्‍या होता है।

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