हर बादल में इंद्रधनुष खोजना चाहिए…

तथाकथित नैतिक, सामाजिक व्यवहार या जीवन-संस्कार, आडंबर-प्रियता व्‍यक्ति की स्वतंत्रता और स्वाधीनता को प्रतिबंधित रखना चाहते हैं। इसलिए एक सहज और सरल प्राकृतिक मुद्दे को अप्राकृतिक बना दिया जाता है।

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महंगे कलमों के दौर में उसका नेपथ्य में चले जाना…

आज जब दुनिया में लाखों बल्कि करोड़ों रुपये मूल्य के कलम उपलब्ध हैं तब नरकट के कलम की याद वैसी ही है जैसे पीएनजी के दौर में दुनिया की पहली आग की याद या फिर सुपर कारों के इस दौर में दुनिया के पहले पहिए की याद।

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जो स्मृति में टिक न सके, भरोसा मत करो

जो स्मृति में बस न सके, टिक न सके, फिर वह चाहे व्यक्ति, लोग, चीज, संकल्पना या विचार ही क्यों न हो, भरोसा मत करो। स्पष्ट है कि न वह तुम्हारे लिए और न ही तुम उसके लिए हो। जो टिके नहीं उसकी गति तेज है, वह आवारा है,उच्छृंखल-चंचल है,क्षुद्र है,कोई तय ऑर्बिट नहीं है उसका। इसीलिए वह अनप्रेडिक्टेबल है।

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…. गति हो तो छोटी हो जाती हैं दूरियां

हम जिस दौर में बड़े हुए उस दौर में साइकिल स्टेटस सिंबल नहीं बल्कि जरूरत हुआ करती थी। साइकिल उन कुछ चीजों में शामिल है जिन्हें इस दुनिया में हो सके तो न्यूनतम बदलावों के साथ अपने पुराने रूप में बचे रहना चाहिए।

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वो हर इक बात पर कहना कि यूं होता तो क्या होता

सच यह है कि हमारे शिक्षित होने के बावजूद हर दिन हमारे जागने और सोने के बीच धरती से पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की 250 प्रजातियां विलुप्त हो जाती है। हमारी बाहरी दुनिया चमक-दमक से भरी जा रही है और एक अजीब तरह का अंधेरा, सूनापन हमारे दिलों, हमारे आपसी संबंधों में प्रवेश करता जा रहा है।

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क्या तुलना और प्रतिस्पर्धा के बगैर शिक्षा नहीं हो सकती?

बच्चा स्वभाव से ही उत्सुक होता है और चीजों को जानने की उसके अंदर सहज जिज्ञासा होती है। गलत तरीकों से पढ़ाई, तुलना और प्रतिस्पर्धा के कारण उसकी यह सहज जिज्ञासा और सीखने की स्वाभाविक ललक खत्म हो जाती है और पढ़ाई उसके लिए बोझ बन जाती है।

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खल मंडली की घेराबंदी पर मेरा जवाबी ‘हमला’

मैं उस चिल्ला-चोट के बीच अचानक मुस्करा उठी। सामने वाला पक्ष हतप्रभ था। उसे वह रिएक्शन नहीं मिल पा रहा था जिसके लिए मुझे तलब करवाया गया था। आप समझे मैं क्यों मुस्करा रही थी…

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बुद्ध: इशारा करने वाली ऊंगली को चांद न समझ लेना

बुद्ध ने खुद को आम इंसान से अलग किसी अनूठे और महान गुरु के रूप में स्थापित करने का प्रयास नहीं किया। दुःख का कारण ढूंढ कर उसे समाप्त करने वाले न ही वह पहले व्यक्ति हैं, और न ही अंतिम, इसे उन्होंने बार बार स्पष्ट किया।

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बुद्ध पूर्णिमा: जड़ें हमेशा आंखों के सामने बनीं रहें

शुक्र है, जागृत पेड़ों ने भारत भूमि पर ऐसी विभूतियों को पैदा किया है जिनकी वजह से जड़ों की बात स्मृति में हमेशा बनी रहती है। इस बुद्ध पूर्णिमा पर हंसध्वनि की कामना है कि जड़ें हमेशा आंखों के सामने बनीं रहें और वे हमेशा स्मृति में सिंचित बनी रहें।

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एक कप चाय? … हो जाए…

दाम के हिसाब से महंगी चाय दुनिया के किसी भी कोने में मिले, हमारे लिए तो सबसे खास, सबसे कीमती चाय वह है जिसे पीने के अरमान बने रहें और मौका मिलते ही हम कह उठें, चलो चाय पीते हैं।

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