पानी भर कर छागल को खिड़की के बाहर लटकाया…
दो खिड़की। एक पापा के लिए आरक्षित। दूसरी के छह दावेदार। यात्रा की शुरुआत ही युद्ध से होना तय था।
दो खिड़की। एक पापा के लिए आरक्षित। दूसरी के छह दावेदार। यात्रा की शुरुआत ही युद्ध से होना तय था।
प्लास्टिक की घास और केमिकल पेंट की महक वाले नकली छोटे मैदानों में न खेल असली हो पाता है और न ही भावनाएं।
पन्ना से रायपुर जाने को रवाना हुए। सुबह के 11 बज रहे थे और प्राणनाथ का गजर टन्न, टन्न, टन्न बज कर शायद, सुखद सफर का आशीष दे रहा था।
अक्सर लगता है वह मदद मांग रहा है, 10-20 रुपए देने से क्या होगा और थोड़ी ज्यादा रकम उसके हवाले कर कसम खाता हूं कि अगली बार धोखा नहीं खाऊंगा।
पन्ना में, मैं अपनी उम्र के दस बरस तक रहा पर उसकी यादें आज भी अमिट हैं। पन्ना का पन्ना समेटने से पहले उन्हें याद करना लाजमी है।
पन्ना की जो खासियत मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित करती थी,वो था प्राणनाथ मंदिर का गजर। गजर हर घंटे अपनी टंकार से पन्नावासियों को समय बताता, और हर प्रहर के बदलने की जानकारी भी देता।
पापा के ऑफिस की जो चीज मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित करती वो था हाथ से खींचे जाने वाला पंखा। मेरा दूसरा प्यार था पापा को मिली जीप। मैं हमेशा इस गुंताड़े में रहता कि कैसे इसे चलाएं!
सो बचपन में उस वक्त तक मैंने अपने दो गुणो और दक्षताओं (skills and competencies) को साबित कर दिया था। वालेंटियर होना और डेयरिंग होना जो एक डेवलपमेंट वर्कर की एसेंशियल क्वालिफिकेशंस है।
गुरू पूर्णिमा के शुभ अवसर पर महर्षि वेद व्यास की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले समस्त गुरूओं के सम्मान में समर्पित यह लेख।
इस उम्र में बिना टिकट पकड़े जाने का भय सर पर सवार था। गाड़ी अपनी गति पकड़ चुकी थी, सह-यात्री अपने बिस्तर बिछा कर लेट गए थे। मां–बेटी, अपने गुप्त श्वान के साथ, परदे खींच कर मौन थे। मैं एक मृत्यु–दंड मिले, मुजरिम की तरह, जल्लाद का इंतजार कर रहा था।