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मंडी से कंगना रनौत… और पोल खुलती गई  

सुप्रिया श्रीनेत, मृणाल पांडे और कंगना रनौत ने जो टिप्पणियां कीं उसमें उन्हें तत्काल कुछ भी गलत नहीं लगा। टोके जाने पर जरूर किसी ने समझदारी दिखाते हुए माफी मांग ली तो कोई अपनी बात पर अड़ा रहा लेकिन यहां असल चुनौती यह है कि ऐसी सोच को किस प्रकार समाप्त किया जाए?

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मैं डरती हूं, क्‍या आपको डर लगता है?

“हां, मुझे आज भी डर लगता है। अल सुबह जब मैं वॉक या दौड़ने के लिए या फिर साइकिल चलाने के लिए अकेले निकलती हूं तो मुझे डर लगता है। इस डर के कारण ही मैं कोशिश करती हूं कि हूडी वाले जैकेट पहनूं जिससे मेरे स्त्री या पुरुष होने को लेकर भ्रम की स्थिति बन जाए।” इसकी वजह एकदम साफ है। बचपन में पैदल स्कूल जाते समय ही मुझे लोगों की निगाहों को पढ़ना आ गया था और शायद हर महिला को यह हुनर विरासत में मिलता है।

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अनंत अंबानी का वनतारा: तारीफ करें या …

वनतारा की बात करते हुए अनंत अंबानी संवेदना से भरे नजर आते हैं। उनकी आंखों में वन्‍य प्राणियों के लिए कुछ कर जाने के उपजी चमक दिखती है। सभी चाहते हैं कि शीर्ष पर बैठे लोगों में यह संवेदनशीलता बनी रहे। अनंत जैसे युवा मन से भावपूर्ण नहीं होते तो संभव है रोटी मांगने पर वे भी ब्रेड क्‍यों नहीं खा लेते सवाल करते।

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फैंड्री: सिर्फ सिनेमा नहीं, समाज का आईना

‘फैंड्री’ फिल्म ने एक बार फिर याद दिलाया कि जिंदगी अमर चित्रकथा जैसी बिल्कुल नहीं है। शहरों में पले बढ़े युवाओं को ‘फैंड्री’ के गांव को देखकर झटका सा लगता है। वह फिल्मों में नजर आने वाला कोई यूटोपियन गांव नहीं है।

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तुमको सुना तो ये ख्‍याल आया…

फिल्में समय के साथ अपने विषय और संगीत को बदलती रहती हैं। इसे संयोग भी कहा जा सकता है कि फिल्मी संगीत के पुरोधाओं के बीच हमारे पास कुछ गीत एकदम अलग आवाज़ के गैर फिल्मी अनुभव वाले भी हैं।

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चिट्ठी आई है… सुन कर जाने कितने घर की ओर भागे हैं

यह इस गाने के बोल और गायक पंकज उधास की आवाज का जादू था कि जब-जब यह गाना बजा, पैर घर की ओर भाग चले। और जो पैरों पर पाबंदियां लगीं तब मन को कोई रोक नहीं पाया।

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जग घूमेया थारे जैसा ना कोई

अब तो तमाम तरह की मिठाइयां उपलब्ध हैं लेकिन गुलाबजामुन आज भी मिठाइयों के माथे का मुकुट बनी हुई है। आज का किस्सा इसी गुलाब जामुन को लेकर है।

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तुम खिलते रहना ताकि मैं मुस्कुराती रहूँ…

आज इतने साल बाद मिलने पर, उससे जी भर मिल लेने की इच्छा पर काबू पाना मुश्किल लग रहा था। ऐसा लगा कि जैसे कोई सपना जाग गया हो। स्मृतियाँ जैसे सामने टहलने लगीं…

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वो चेहरा किताबी रहा सामने, खूबसूरत मुलाकात हुई  

पद्मश्री बशीर बद्र को देखकर इस बात का इत्‍मीनान हुआ कि आज भी हिंदुस्तान में उर्दू की एक अजीम हस्ती मौजूद है। हालांकि मुलाकात एक तरफा ही थी। डॉ. साहब अपनी ही दुनिया में खोए हुए थे। 

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‘मिशन जंजीर फ्री’ के पहले कदम की प्रतीक्षा

अब समय की मांग है कि हम मनुष्यों के असंयमित व्यवहार को बदलने की शुरूआत आवारा,हिंसक और शिकारी स्वभाव के कुत्तों और जंजीरों में कैद ट्रेनिंग के बाद भी इनडिसिप्लिन्ड,अनुशासनहीन कुत्तों से करें। पक्षियों से शुरूआत हम कर ही चुके हैं।

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