कुछ लोग मिले फरिश्‍तों जैसे…वो जिनके हाथ में रहता है परचम-ए-इंसां

अनुजीत इकबाल, लखनऊ

कुछ लोगों का जीवन में होना संयोग होता है पर कई बार वह संयोग बड़ा सुखद होता है। आज मेरा मन जिस मनुष्य के आंतरिक सौंदर्य को आप सबके सामने चिह्नित करने का हो रहा है, उनका स्थान मेरे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। मेरी बातों में रह-रह कर उनका संदर्भ आ जाता है। वो जीवन में करूणा को व्याख्यायित करते हैं। संवेदना और प्रेम का लोक इतना असीम है कि कुछ भी लिख बोल दो तब भी भाषा की परिधि में नहीं आ सकता।

मैं बात कर रही हूं लखनऊ के केजीएमयू में पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश के बारे में। यह एक क्लीशे जैसा लगता है कि इन्होंने यह प्रोफेशन नहीं चुना, बल्कि इस प्रोफेशन ने ही शायद इनको चुना है। मथुरा के पास एक छोटे से गांव में पढ़कर, केजीएमयू जैसे संस्थान में विभागाध्यक्ष बनना किसी चमत्कार से कम तो नहीं ही है। प्रतिभाशाली डॉ. वेद किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। यह अपनी गरिमामयी उपस्थिति से अपने इर्द-गिर्द की दुनिया को निरंतर सुंदर बना रहे हैं। विज्ञान और भावनाएं अगर आपके भी जीने का ज़रूरी सामान हों तो डॉ. वेद को जाना जाए। मौन, निर्भय, निर्दोष और निर्द्वंद्व व्यक्तित्व के मालिक इस शख्स को परिभाषित करने के लिए जितने शब्द कहें जाएं कम होंगे।

एक कोमल ‘फेमिनिन एलीमेंट’ है इनके अंदर, अर्थात ‘ममत्व’ का गुण और यह गुण जितना दुर्लभ है उतना ही आर्कषक भी। वो मुझे हमेशा एक नायक की तरह लगे, मजबूत और जहीन। कोई सुपरहीरो नहीं, जो भलाई का प्रतीक बना हो बल्कि एक ऐसा नायक, जो चुपचाप सबके बीच निष्काम होकर अपना कर्म करता हो और उसको किसी प्रशंसा या सम्मान की भी आकांक्षा न हो।

केजीएमयू जैसे विश्व विख्यात संस्थान में यह विभागाध्यक्ष हैं, लेकिन सरलता ऐसी कि कोई भी कभी भी सीधे इनसे जाकर मिल सकता है। मेरे इनके साथ जितने भी अनुभव हैं, सब बहुमूल्य हैं। मुझे किन्हीं कारणों से अक्सर इनके विभाग जाना पड़ता था और हमेशा मैंने इनको काम में खुद को विस्मृत किए हुए पाया। गरीब से गरीब हो या कोई अधिकारी हो, इनका बात करने का तरीका सबसे एक समान रहता था। यह सिर्फ अपने विभाग के ही नहीं, दूसरे विभागों में भी गरीब और मजबूर लोगों को भेज कर तुरंत इलाज शुरु करवा देते।

इनके अंदर ऐसी गरिमापूर्ण सामाजिकता मैं देखती थी कि, जो प्रेरित करती थी, न सिर्फ मुझे बल्कि इनके जूनियर डॉक्टरों को भी। यह बहुत सरलता से लोगों के साथ घुलमिल जाते और बीमारी, दुख, अशांति, रोग, तकलीफ वाले रास्तों में साथ बने रहते। यह उन लोगों में से हैं, जिनसे मिलने के बाद हर बार अच्छा महसूस होता है। वह सदा सब के मददगार बने रहते और इतने भले कि मित्रों के मित्र तो हैं ही, जो उन को जानते भी नहीं हैं, उनके साथ भी मित्रवत हैं। इस दौर में यह सहृदयता कितना दुर्लभ गुण है।

पुरानी धारणाओं पर रहे तो डॉक्टर का काम है मरीज को रोग मुक्त करना, पर डॉ. वेद के काम करने का तरीका अलग है, उनकी सोच की सीमा अपरिमित है, उनकी दूरदर्शिता के मायने व्यापक हैं। वह जो कहते हैं, करते हैं, और उस करने में सरसता, सहजता और प्रेम का ऐसा रूप विद्यमान है कि इंसान खुद को उनसे बंधा हुआ सा महसूस करता है। यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है उनके साथ। काम और दूसरों का भला करने की उनकी लगन अथक, सतत व शाश्वत है। मैं यहां उनकी उपलब्धियों के बारे में बात नहीं करूंगी क्योंकि वो इतनी हैं कि एक लेख में समा पाना मुश्किल होगा लेकिन मैं सिर्फ़ वही बात कर रही हूं, जिसने मेरी आत्मा को छुआ, उन दिनों में, जब मैं खुद शारीरिक और मानसिक कष्टों से गुजर रही थी।
इन्हीं के अथक प्रयासों से केजीएमयू में इनके विभाग में “डॉक्टर ऑफ मेडिसिन” का कोर्स शुरु हुआ, जो अभी तक सिर्फ पीजीआई चंडीगढ़ और एम्स जैसे चिकित्सक संस्थानों में था।

जीवन में सब कुछ विज्ञान से गुथा है, पर उनके संदर्भ में सब कुछ मात्र विज्ञान ही नहीं है। वह विज्ञान के अलावा बहुत कुछ हैं। जीना, असल में सरल आचरण और मनोभाव का समुच्च्यन है। हम विज्ञान, विचारणा, वितर्क और चिंतन के जंगल में मानवीयता को लगभग भूल चुके हैं, लेकिन डाक्टर साहब उस सीमा से परे देखने की दृष्टि देते हैं, यह बात सहज सुलभ उनके पास बैठने पर ही समझ आ जाती है। मात्र उनके पास बैठना ही, धुंधलके को हटाकर व्योम का कितना वितान नापने की क्षमता प्रदान कर देता है कि मैं स्वयं हैरान हो जाती हूं। इनके पास जाने से ही जो अनुग्रह व चिंतन की तरंगे उत्पन्न होती हैं वो अवर्णनीय हैं। उनकी कार्यशैली जीवनदर्शन की प्रदर्शक है और वह चेतना के कितने आयामों के स्तरों को छूती है, वह कहना मेरे बस में नहीं।
प्रकृति ने उनकी विद्वता और मनुष्यता से मुझे अपने जीवन के सबसे उदास क्षणों में मिलवाया था। यह ऐसे क्षण थे जिनमें आप सोचते है ‘क्या ऐसे मनुष्य भी होते हैं?!!’

डॉ. वेद को जानना आकस्मिक या तात्कालिक नहीं हो सकता, किसी गरीबों मजबूरों के मसीहा को जानने के लिए मानसिक रूप से तैयार होना पड़ेगा और बौद्धिक रूप से तत्पर भी।

कैसे भूल सकती हूं अपने जीवन के वो सबसे कष्टमय दिन, जब उन्होंने मुझे चलते चलते एक बात बोली थी, ‘अभी आपको बहुत कुछ लिखना है, हम सब ठीक कर देंगे।’ उनका कहा यह वाक्य आज भी मेरे हृदय को नम कर जाता है और आश्वस्त करता है कि मेरे जीवन के हर महत्त्वपूर्ण क्षण में उनकी वह दृढ़ उपस्थिति बनी रहेगी। यह तो आस्था, विश्वास और निश्चितता की शक्ति है, जो गहरी भावाभिव्यक्तियों को आजीवन पूर्ण करने का सहज बल पैदा करती है। जैसा उनका गहन व्यक्तित्व है, उसके अनुरूप ही उनका जीवन।

भारत में 2020 में जब एक खतरनाक वायरस आया था, तब अचानक शहर के कई डॉक्टर अज्ञातवास पर चले गये थे। अस्पतालों में मरीजों को न लिए जाने की ख़बरें आ रही थीं। एक व्यथित करने वाला संताप हर तरफ फैल रहा था, तब उन जटिलतम दिनों में डॉ. वेद उन लोगों में शामिल थे जो दिन-रात काम कर रहे थे, लगातार उस वायरस पर रिसर्च कर रहे थे और उत्तर प्रदेश के बाकी के जिलों को भी संभाल रहे थे। कितने लोगों की जान उन्होंने बचाई और सब कुछ भूल कर केवल सेवा को ही अपना उद्देश्य समझा। फोन, ईमेल आदि साधनों पर लोगों को सलाह दी जबकि उसी वक्त कुछ लोग बीमार लोगों की मजबूरी का फायदा भी उठा रहे थे। प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि, ख्याति और धन कमा लेना कोई बहुत कठिन बात नहीं है, वह तो हम सब निरंतर कमा रहे हैं पर उन्होंने जो प्रेम और आशीष कमाया है, वह अनमोल है।

कोरोना के दिनों में ही इन्होंने बतौर ओएसडी मेरठ और मुरादाबाद में, इसके नियंत्रण पर काम किया था और सिर्फ इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश सरकार की कोरोना नियंत्रण समिति के सदस्य भी रहे। सम्मानों और प्रशस्ति पत्रों की कोई संख्या ही नहीं है। मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल तक ने इनको सम्मानित किया है, ‘यूपी रत्न’ का सम्मान भी यह पा चुके हैं। इनका लक्ष्य 2025 तक भारत को टीबी मुक्त कराना है। इनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इन्होंने रेस्पिरेट्री विभाग में ‘स्लीप एपनिया सेंटर’ को शुरु करवाया है, जिसकी ट्रेनिंग यह अमरीका से लेकर आए थे। अभी यह तकनीक भारत में एक दो जगहों पर ही है।

प्रसिद्ध जर्मन लेखक अर्नस्ट योंगर जब अपने निबंध ‘ऑन पेन’ में दर्द से हमारा सम्बंध पूछते हुए कहते हैं, ‘tell me your relationship with pain and I will tell you who you are’, तब वह शारीरिक या मानसिक कष्ट को बर्दाश्त करने की बात नहीं करते बल्कि आगे बढ़कर खुद को तकलीफ़ के सामने प्रस्तुत करने के लिए कहते हैं, कुछ यही डॉ. वेद को देख कर महसूस होता है। इंसान के सबसे करीब तो सिर्फ दर्द ही होता है। यह कुछ ऐसा है जो सिर्फ दो लोगों को ही पता होता है, इंसान को और उसको ठीक करने वाले डॉक्टर को। करूणा ही इंसान को इंसान की वेदना से जोड़ती है और उसे सच्चे अर्थों में मानवीय बनाती है।

ऐसे व्यक्ति के द्वारा किए गए कामों का ऋण लिख कर ही चुकाया जा सकता है। इसलिए डॉक्टर साहब को आप सब से रूबरू करवा दिया, जिसे यूं तो बहुत पहले ही प्रकाशित हो जाना चाहिए था, लेकिन मैं शायद किसी निजी धीरज को बरतने का अभ्यास कर रही थी।

जिस सामाजिक उदासीनता को मैं महसूस करती हूं, उसी कारण मैं यह लेख लिख रही हूं। हमारे यहां जीवन और किसी व्यक्ति विशेष को लेकर गहरी जिज्ञासा ही नहीं हैं। मोबाइल, नेटफ्लिक्स में डूबी हुई एक अजीब सी निष्क्रियता है जो गहराई में उतर कर कुछ भी या किसी को भी जानने समझने से हमको रोकती है। डॉक्टरी भाषा में हम सब ‘digital anesthesia’ में से गुज़र रहे हैं, इसलिए लगा कि जो लोग मनुष्यता के लिए समर्पित हैं क्यों न उन पर कुछ लिखा जाए।
मीर का शेर है “सरसरी तुम जहान से गुज़रे, वर्ना हर जा जहान-ए-दीगर था…”

6 thoughts on “कुछ लोग मिले फरिश्‍तों जैसे…वो जिनके हाथ में रहता है परचम-ए-इंसां

  1. Dr Ved Prakash deserves this appreciation. He is devoted to his profession and serve to the needy

  2. Maam even I have realised. I with my bottom of heart know DR. VED PRAKASH personally. His name itself ved + prakash, light clears all in name itself enough for any person he a model.Nice to read from you. Thanks for good Hindi writing.

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