कर्नल साहब ने खिड़कियां पीटना शुरू की तो चीख-पुकार मच गई

मनीष माथुर, सामाजिक कार्यकर्ता

माना कैंप (रायपुर): 1975–1977

दूरदर्शन और गणतंत्र-दिवस परेड

संभवतः ये 1976 के गंणतंत्र दिवस का दिन था। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल और उनके अग्रज विद्याचरण शुक्ल, जो उस समय केंदीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे, की अनुकंपा से, रायपुर पहला जिला था, जहां मेट्रोज के बाद, दूरदर्शन का प्रसारण शुरू हुआ। माना गांव के पंचायत भवन में एक टीवी लगाया गया। हम सब गणतंत्र दिवस की परेड (दिल्ली) देखने सुबह माना गांव पंहुचे। एक श्वेत-श्याम टीवी पंचायत भवन के द्वार पर जगमगा रहा था। सामने से पड़ रही धूप के कारण और weak ट्रांसमिशन के कारण, सब धुंधला नजर आ रहा था। अगस्त की छत्‍तीसगढ़िया धूप में बैठे हम कुलबुला रहे थे कि कब ये परेड खत्म हो और हम घर जाएं। दूसरी तरफ, हम गर्वित भी थे कि दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर बैठ, हम वहां की परेड देख पा रहे थे।

आपातकाल/आम-चुनाव:

एक बारह वर्षीय बालक के तौर पर आपातकालीन परिस्थियों का मेरा वर्णन निश्चित तौर पर अध-कचरा ही होगा। जो परिवर्तन मुझे समझ आए वो इस प्रकार थे:

  1. मध्यप्रदेश की सरकारी बसें तब लाल डब्बा कहलाती थीं। अब उनके पीछे कुछ नारे दीखने लगे जैसे;
    a. एक ही जादू
    b. कड़ी मेहनत
    c. पक्का इरादा
    d. अनुशासन
    इनका अर्थ मुझे तब भी नहीं पता था।
  1. नसबंदी:
    a. जाहिर है कि उस समय का एक किशोर इन बातों का कोई ज्ञान नहीं रखता था।
    b. मेरी मां अवश्य एक दिन के लिए अस्पताल में किसी छोटी सर्जरी के लिए भर्ती हुई। ये शायद गैर जरूरी था क्योंकि उनकी उम्र उस समय लगभग 47 वर्ष की होगी।
    मेरे पापा इस बात से जरूर प्रसन्न थे कि रेल-गाड़ियां, बसें समय पर चल रही हैं। वे वैसे भी कांग्रेस और इंदिरा गांधी के बड़े प्रशंसक थे।

3. राजिम लोकसभा सीट के जनता पार्टी के पवन दीवान ने अपने चुनाव चिह्न ‘हलधर किसान’ के रूप में पद-यात्राएं कीं और चुनाव जीता। रायपुर से पुरषोत्तम कौशिक (जिनका सुपुत्र विश्वनाथ मेरा सहपाठी था), ने केंद्रीय मंत्री विद्याचरण चरण शुक्ल को मात दी।

न्यू ईयर:

कर्नल अय्यर के तवा कैंप के तबादले के बाद कर्नल सेखों ने उनकी जगह ली। हम सिविलियन्स जिन्हें 31 दिसंबर के रात बारह बजे किसी को नए साल की बधाई देने की आदत नहीं थी, इस हमले के लिए तैयार नहीं थे। रात 12 बजे, कर्नल सेखों साहब ने हमारा और गुप्ता अंकल का दरवाजा पीटा और हैप्पी न्यू ईयर का जय-घोष किया।

पापा ने दरवाजा खोल कर बधाई स्वीकारी और दी। हम बच्चों की नींद कुछ देर के लिए टूटी और तुरंत ही सो गए।
पडोसी गुप्ता अंकल के सबसे बड़े सुपुत्र जो अभियंता थे और एक नन्ही सी बिटिया के पिता बने थे, उन दिनों आए हुए थे। जब गुप्ता जी ने दरवाजा नहीं खोला तो कर्नल साहब ने उनकी खिड़कियों को पीटना शुरू किया। घर में चीख-पुकार मच गई। मुरैना का परिवार शायद नींद में ये समझ बैठा कि घर पर डाकुओं ने हमला किया है। थोड़ी देर भरपूर प्रयास करने के बाद कर्नल साहब अपने घर को धाये और कोहराम शांत हुआ।

पेटियां और स्टीकर्स की डकैती:

ये वह दौर था, जब स्कूल के बस्तों की जगह, अलुमिनियम और हिंडोलीयम की पेटियों ने ले ली थी। हम अपनी पेटियों के ऊपर तथा अंदर कार्टून कैरेक्टर्स के स्टीकर चिपकाते। मेरे अनुज ने तब माना कैंप के उसी प्राथमिक शाला में पहली में प्रवेश लिया जहां में पढ़ा था। उसकी शाला का पांचवी का एक छात्र उसे मारने की धमकी देता और उस से स्टीकर्स छीन लेता। बात अनुज के दादा (बड़ा भाई, यानी मैं) तक पहुंची।

गुप्त योजना अनुसार, मैंने पेट दर्द का बहाना बना कर अगले दिन की छुट्टी मारी। दोपहर बारह बजे जब छोटे भाई की छुट्टी हुई मैं अपने घर के सामने लगे पेड़ की एक नीची डाल पे जा बैठा। मेरा भाई और और उसके ठीक पीछे उसे धमकाने वाला चले आ रहे थे। मेरा भाई, सहमा-सहमा आगे और उसे धमकाता हुआ वह bully उसके ठीक पीछे। जैसे ही मेरा भाई डाल के नीचे से गुजरा, मैं उस धमकैया के सामने धमक पडा। बालक मेरी इस धमाकेदार एंट्री से डर गया। मैंने कहा, ये मेरा छोटा भाई है। वो बोला, “जी दादा”। इससे लुटे हुए, सारे स्टीकर्स लौटा देना कल तक। वो बोला, “अभी लो, दादा”।

मेरे भाई ने ईमानदारी से अपना लूटा हुआ माल कब्जे में लिया और आज के बाद ऐसा नहीं होना चाहिए, की धमकी के बाद बिना किसी मारपीट और खून-खराबे के उस धमकैया को जाने दिया।

दादागिरी पाठशालाओं में बहुत सामान्य है, पर इसका असर कमजोर पक्ष पर बहुत गहरा पड़ता है। बच्चों द्वारा की गई इस तरह की शिकायतों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए, और उसका समाधान निकालना चाहिए।

गायों का झुण्ड और CC सांड

आसपास की सारी गायें एक झुंड में चरने जातीं, जिनका जिम्मा एक चरवाहा लेता। गाय के पालनहार उसे हर महीने उसे इसका भुगतान करते। स्थानीय गाय छोटे कद की होतीं, उनमें हमारी मालवी श्यामा ऊंची नजर आती। पर इसी झुंड में एक धवल सांड चलता, जिसका कद स्थानीय गायों से तीन गुना, और श्यामा से दोगुना रहा होगा। माना-केम्प वासी उसे CC सांड बुलाते। आखिर वो अपने झुंड में चीफ कमांडेंट (CC) की हैसियत जो रखता था।

इस तरह मैं जिया-1:  आखिर मैं साबित कर पाया कि ‘मर्द को दर्द नहीं होता’

इस तरह मैं जिया-2: लगता था ड्राइवर से अच्छी जिंदगी किसी की नहीं…

इस तरह मैं जिया-3: हम लखपति होते-होते बाल-बाल बचे…

इस तरह मैं जिया-4: एक बैरियर बनाओ और आने-जाने वालों से टैक्स वसूलो

इस तरह मैं जिया-5: वाह भइया, पुरौनी का तो डाला ही नहीं!

इस तरह मैं जिया-6: पानी भर कर छागल को खिड़की के बाहर लटकाया…

इस तरह मैं जिया-7: पानी भरे खेत, घास के गुच्छे, झुके लोग… मैं मंत्रमुग्‍ध देखता रहा

इस तरह मैं जिया-8 : मेरे प्रेम करने के सपने उस घटना के साथ चूर-चूर हो गए

इस तरह मैं जिया-9 : हमने मान लिया, वो आंखें बंद कर सपने देख रहे हैं

इस तरह मैं जिया-10 : हमारे लिए ये एक बड़ा सदमा था …

इस तरह मैं जिया-11: संगीत की तरह सुनाई देती साइकिल के टायरों की आवाज

इस तरह मैं जिया-12: मैसेज साफ था, जान-पैचान होने का मतलब यह नहीं कि तू घुस्ताई चला आएगा

इस तरह मैं जिया-13 : एक चाय की प्याली और ‘दीमाग खोराब से ठोंडा’ हो जाता

इस तरह मैं जिया-14 : तस्‍वीर संग जिसका जन्‍मदिन मनाया था वह 40 साल बाद यूं मिला …

इस तरह मैं जिया-15 : अगर कोई पवित्र आत्मा यहां से गुजर रही है तो …

इस तरह मैं जिया-16 : हम उसे गटागट के नाम से जानते थे …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *