अपनी फितरत से जो है जंगल का कोतवाल

चमकीले काले रंग का ब्लैक ड्रोंगो पंछियों की दुनिया का आक्रामक पक्षी है। इसकी निडरता, हौसला और आक्रामकता के कारण इसे जंगल का कोतवाल कहा जाता है।

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केवल सच की घुट्‌टी से तोड़ा जा सकता है झूठ का नशा

इन दिनों जबकि प्रोपगंडा आधारित फिल्मों का बोलबाला है, इस फिल्म की खूबसूरती यही है कि यह फिल्म इतिहास के एक ऐसे घटनाक्रम से दर्शकों को रूबरू कराती है जिसके बारे में उन्हें कुछ खास नहीं पता है।

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राम को इस तरह भी समझिए…

राम मर्यादा पुरुष थे। ऐसा रहना उन्होंने जान-बूझकर और चेतन रूप से चुना था। बेशक नियम और कानून आदेश पालन के लिए एक कसौटी थे। लेकिन यह बाहरी दबाव निरर्थक हो जाता यदि उसके साथ-साथ अंदरूनी प्रेरणा भी न होती।

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अमर सिंह चमकीला फिल्म के बहाने

लोगों की पसंद और मजहब के तथाकथित प्रहरियों के द्वारा तय किये जा रहे मापदंडों के बीच किसी तरह संतुलन बनाते हुए लेकिन अंतत: अपने संगीत में रमे हुए चमकीले की कहानी जानने योग्य और चौंकाने वाली है।

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कला का समाज: तब हम एक-दूसरे के सबसे करीब होते थे!

उसने अंतिम चाकू अपनी पत्नी के सीने को लक्ष्य कर पूरी ताकत से फेंक दिया …वहीं जहां दिल होता है। आंखों से पट्टी हटाकर देखा तो पाया निशाना चूक गया था वह क्या चीज होती है जो एक अभ्यस्त हाथ को अपने लक्ष्य से जरा भी विचलित होने से रोक लेती है।

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लंबा सफर मुश्किल डगर 

एक तबका ऐसा है जो कभी कर्ज डिफॉल्ट नहीं करता। दूसरा हमेशा बैंक का एनपीए (Non performing loan डूबा हुआ कर्ज) बढ़ाता है। हमारी व्यवस्था का बर्ताव आर्थिक लेनदेन की ईमानदारी से नहीं बल्कि सामाजिक स्‍तर से तय होता है। हैसियत देख कर व्‍यवहार करने वाली व्‍यवस्‍था से मिला एक कटु अनभव।

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नए साल में नई तरह की सेल्फी, पहले से बेहतर देखें दुनिया

आपकी सेल्फी में आपका कुछ भी नहीं है,जो कुछ कमाल है तकनीक का है,आप एक सूखे पीले पत्ते की मानिंद भर हैं। रोशनी का पता अंधेरे में चलता है। ओशो कह गए कि रोशनी नहीं पीछा अंधेरा करता है। ये तो आप हैं जो रोशनी का पीछा करते हैं जबकि आपका पीछा अंधेरा करता है।

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अरे प्रधानाध्‍यापक जी, आप तो रोने लगे…

यह तस्‍वीर मध्‍य प्रदेश के देवास की है। ये रोते हुए व्‍यक्ति देवास शहर के बाहरी क्षेत्र स्थित शासकीय प्राथमिक विद्यालय संजयनगर के प्रभारी प्रधानाध्यापक तिलकराज सेम हैं। स्‍कूल में रोते हुए बच्‍चों के बारे में तो सुना, देखा था लेकिन आखिर ऐसी क्‍या बात हुई कि प्राचार्य ही रोने लगे।

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