जिन्होंने सिखाया चलते रहना ही जिंदगी है, रूकना यानी जड़ता
गुरू पूर्णिमा के शुभ अवसर पर महर्षि वेद व्यास की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले समस्त गुरूओं के सम्मान में समर्पित यह लेख।
जिन्होंने सिखाया चलते रहना ही जिंदगी है, रूकना यानी जड़ता जारी >
गुरू पूर्णिमा के शुभ अवसर पर महर्षि वेद व्यास की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले समस्त गुरूओं के सम्मान में समर्पित यह लेख।
जिन्होंने सिखाया चलते रहना ही जिंदगी है, रूकना यानी जड़ता जारी >
यह देखना-दिखना आखिर है क्या? कभी सोचा है? देखना या दिखाई देना एक तरह से एक आदिम भूख या कह लें प्यास का नाम है, यह आग जैसी तासीर की है।
देखना वह नहीं है जो आप देखते हैं जारी >
श्रोता अपने सुनने वाले मन को संपूर्ण रूप से शुरूआती स्तर पर खाली कर लेते हैं, इसमें कलाकार की आलाप लेने वाली प्रक्रिया एक जरिया बनती है। अंत में अगर आनंद स्वरूप श्रोता के अश्रु निकल पड़े तो समझिए वह अपने में डुबकी लगा चुका है,एकात्म घट चुका है।
संगीत सभा के बाद क्यों बजाई जाती हैं तालियां? जारी >
जो स्मृति में बस न सके, टिक न सके, फिर वह चाहे व्यक्ति, लोग, चीज, संकल्पना या विचार ही क्यों न हो, भरोसा मत करो। स्पष्ट है कि न वह तुम्हारे लिए और न ही तुम उसके लिए हो। जो टिके नहीं उसकी गति तेज है, वह आवारा है,उच्छृंखल-चंचल है,क्षुद्र है,कोई तय ऑर्बिट नहीं है उसका। इसीलिए वह अनप्रेडिक्टेबल है।
जो स्मृति में टिक न सके, भरोसा मत करो जारी >
सच यह है कि हमारे शिक्षित होने के बावजूद हर दिन हमारे जागने और सोने के बीच धरती से पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की 250 प्रजातियां विलुप्त हो जाती है। हमारी बाहरी दुनिया चमक-दमक से भरी जा रही है और एक अजीब तरह का अंधेरा, सूनापन हमारे दिलों, हमारे आपसी संबंधों में प्रवेश करता जा रहा है।
वो हर इक बात पर कहना कि यूं होता तो क्या होता जारी >
बच्चा स्वभाव से ही उत्सुक होता है और चीजों को जानने की उसके अंदर सहज जिज्ञासा होती है। गलत तरीकों से पढ़ाई, तुलना और प्रतिस्पर्धा के कारण उसकी यह सहज जिज्ञासा और सीखने की स्वाभाविक ललक खत्म हो जाती है और पढ़ाई उसके लिए बोझ बन जाती है।
क्या तुलना और प्रतिस्पर्धा के बगैर शिक्षा नहीं हो सकती? जारी >
शुक्र है, जागृत पेड़ों ने भारत भूमि पर ऐसी विभूतियों को पैदा किया है जिनकी वजह से जड़ों की बात स्मृति में हमेशा बनी रहती है। इस बुद्ध पूर्णिमा पर हंसध्वनि की कामना है कि जड़ें हमेशा आंखों के सामने बनीं रहें और वे हमेशा स्मृति में सिंचित बनी रहें।
बुद्ध पूर्णिमा: जड़ें हमेशा आंखों के सामने बनीं रहें जारी >
हमारे लिए महत्वाकांक्षा का मतलब है कि हम जिस भी स्थिति में है वह ठीक नहीं है और हमें उससे आगे की किसी स्थिति के लिए कोशिश करते रहना है। जीवन भले ही नरक हो जाए लेकिन हमें फैलते जाना है, आगे बढ़ते जाना है, नया से नया हासिल करते जाना है।
क्या महत्वाकांक्षा के बगैर जीना संभव है? जारी >
ये दुनिया इंसानों को पढ़कर पहचानने की लाइब्रेरी है। यहां इंसान नाम की किताब फ्री में उपलब्ध है। लेकिन कुछ अपवाद भी हैं। जैसे दुनिया की बेहतरीन पुस्तकें सबकी पहुंच में नहीं वैसे ही बेहतरीन इंसान भी सबको मिल पाना सबके नसीब में नहीं।
इंसानों को पढ़कर पहचानने की लाइब्रेरी है ये दुनिया जारी >