जो स्मृति में टिक न सके, भरोसा मत करो

जो स्मृति में बस न सके, टिक न सके, फिर वह चाहे व्यक्ति, लोग, चीज, संकल्पना या विचार ही क्यों न हो, भरोसा मत करो। स्पष्ट है कि न वह तुम्हारे लिए और न ही तुम उसके लिए हो। जो टिके नहीं उसकी गति तेज है, वह आवारा है,उच्छृंखल-चंचल है,क्षुद्र है,कोई तय ऑर्बिट नहीं है उसका। इसीलिए वह अनप्रेडिक्टेबल है।

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वो हर इक बात पर कहना कि यूं होता तो क्या होता

सच यह है कि हमारे शिक्षित होने के बावजूद हर दिन हमारे जागने और सोने के बीच धरती से पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की 250 प्रजातियां विलुप्त हो जाती है। हमारी बाहरी दुनिया चमक-दमक से भरी जा रही है और एक अजीब तरह का अंधेरा, सूनापन हमारे दिलों, हमारे आपसी संबंधों में प्रवेश करता जा रहा है।

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क्या तुलना और प्रतिस्पर्धा के बगैर शिक्षा नहीं हो सकती?

बच्चा स्वभाव से ही उत्सुक होता है और चीजों को जानने की उसके अंदर सहज जिज्ञासा होती है। गलत तरीकों से पढ़ाई, तुलना और प्रतिस्पर्धा के कारण उसकी यह सहज जिज्ञासा और सीखने की स्वाभाविक ललक खत्म हो जाती है और पढ़ाई उसके लिए बोझ बन जाती है।

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बुद्ध: इशारा करने वाली ऊंगली को चांद न समझ लेना

बुद्ध ने खुद को आम इंसान से अलग किसी अनूठे और महान गुरु के रूप में स्थापित करने का प्रयास नहीं किया। दुःख का कारण ढूंढ कर उसे समाप्त करने वाले न ही वह पहले व्यक्ति हैं, और न ही अंतिम, इसे उन्होंने बार बार स्पष्ट किया।

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बुद्ध पूर्णिमा: जड़ें हमेशा आंखों के सामने बनीं रहें

शुक्र है, जागृत पेड़ों ने भारत भूमि पर ऐसी विभूतियों को पैदा किया है जिनकी वजह से जड़ों की बात स्मृति में हमेशा बनी रहती है। इस बुद्ध पूर्णिमा पर हंसध्वनि की कामना है कि जड़ें हमेशा आंखों के सामने बनीं रहें और वे हमेशा स्मृति में सिंचित बनी रहें।

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क्या महत्वाकांक्षा के बगैर जीना संभव है?

हमारे लिए महत्वाकांक्षा का मतलब है कि हम जिस भी स्थिति में है वह ठीक नहीं है और हमें उससे आगे की किसी स्थिति के लिए कोशिश करते रहना है। जीवन भले ही नरक हो जाए लेकिन हमें फैलते जाना है, आगे बढ़ते जाना है, नया से नया हासिल करते जाना है।

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इंसानों को पढ़कर पहचानने की लाइब्रेरी है ये दुनिया

ये दुनिया इंसानों को पढ़कर पहचानने की लाइब्रेरी है। यहां इंसान नाम की किताब फ्री में उपलब्ध है। लेकिन कुछ अपवाद भी हैं। जैसे दुनिया की बेहतरीन पुस्तकें सबकी पहुंच में नहीं वैसे ही बेहतरीन इंसान भी सबको मिल पाना सबके नसीब में नहीं।

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राम को इस तरह भी समझिए…

राम मर्यादा पुरुष थे। ऐसा रहना उन्होंने जान-बूझकर और चेतन रूप से चुना था। बेशक नियम और कानून आदेश पालन के लिए एक कसौटी थे। लेकिन यह बाहरी दबाव निरर्थक हो जाता यदि उसके साथ-साथ अंदरूनी प्रेरणा भी न होती।

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नए साल में नई तरह की सेल्फी, पहले से बेहतर देखें दुनिया

आपकी सेल्फी में आपका कुछ भी नहीं है,जो कुछ कमाल है तकनीक का है,आप एक सूखे पीले पत्ते की मानिंद भर हैं। रोशनी का पता अंधेरे में चलता है। ओशो कह गए कि रोशनी नहीं पीछा अंधेरा करता है। ये तो आप हैं जो रोशनी का पीछा करते हैं जबकि आपका पीछा अंधेरा करता है।

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कबिरा सब जग निर्धना

धन स्वाभाविक रूप से इंसान को दरियादिल नहीं बनाता। यह रिश्ते बनाने का समय और अवसर दे सकता है, पर उन्हें बनाये रखने की स्पेस, इसके लिए आवश्यक समानुभूति और स्नेह नहीं खरीद सकता। अक्सर धन और उससे जुडी भागम-भाग लोगों को क्लांत, पलायनवादी, आत्मकेंद्रित और एकाकी बना डालता है।

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