आई सा ‘मस्का-डोमेस्टिका’ इन माय रूम

मनीष माथुर, सामाजिक कार्यकर्ता

होशंगाबाद (अब नर्मदापुरम): 1977-1981

शिक्षक जब कक्षा में आए
पत्र साथ में अपने लाए।
किसी मित्र ने पत्र लिखा था,
एक चित्र भी साथ रखा था।
हंसता वो मित्र चित्र में,
उसने ये था लिखा पत्र में,
राम सिंह कहता जय हिन्द
पढो-लिखो इसमें आनंद।

इतनी सरल कविताएं कि मुझे 5 दशक बाद भी, शब्दशः याद हैं। ये कविता हमें, हिंदी की वर्णमाला के अंतिम अक्षर तक का ज्ञान करवाती थी और हमारी पाठ्य पुस्तक बालभारती कक्षा दो अथवा तीन में रही होगी। कुछ दिनों पहले शिक्षक दिवस मनाया गया। हमारे समय में भी मनाया जाता था। गुरुजनों को मैं लगभग हर दिन याद करता हूं जिन्होंने मुझे दंड या शाबाशी दी। इसे आजकल की भाषा में ‘अटेंशन-सीकिंग बिहेवियर’ के नाम से जाना जाता है। कितने ही गुरुजनों से आप सीखते हो, फॉर्मली या इन्फॉर्मली पर याद चंद ही रहते हैं। होशंगाबाद के SNG में मैंने साढ़े तीन वर्ष गुजारे।

मेरे गुरुजन (माध्यमिक शाला):

भीम सर: हमारी SNG की माध्यमिक शाला के प्रधान अध्यापक थे। बहुत प्रभावशाली एवं कड़क। सुबह असेंबली और राष्ट्रगान के बाद हर कक्षा मॉनिटर उन्हें एक नोटबुक सौंपता, जिसमें कितने बच्चे हाजिर हैं, कितने बिना यूनिफार्म पहने आए हैं आदि महत्वपूर्ण एवं कुछ गोपनीय सूचनाएं होतीं। उन्होंने हमें कभी कोई विषय नहीं पढ़ाया।

चौबे सर: चौबे सर एक दादाजी की छवि धारण करते थे। स्थूलकाय चौबे सर के मुख पर मुस्कुराहट और भंगिमा में बच्चों के लिए स्नेह झलकता था। हमारी शैतानियों पर उनकी डांट भी उतनी ही प्रभावी होती। वे हिंदी के अध्यापक थे। मेरी मां स्वयं हिंदी में MA थी, अत: हम भाई-बहनों की भाषा पर पकड़ अच्छी थी, खासतौर पर उसकी व्याकरण, वर्तनी एवं उच्‍चारण को ले कर।
चौबे सर की पहली क्लास थी। उन्होंने सारे बच्चों का नाम पूछा। हमारे कक्षा मॉनिटर का नाम था, वसीख अहमद।
चौबे सर: तो तेरे बाप का नाम वसीम अहमद है?
वसीख: जी।
चौबे सर: मैंने तेरे बाप को भी पढ़ाया है। तभी वो डॉक्टर बना।
वसीख: जी सर।

हमारी शाला के अधिकतर स्थानीय बच्चे, जिनके पिता ने भी शाला में पढ़ाई की थी वे चौबे सर के भी शिष्य रहे थे। यह एक ऐसा धागा था जो सर को बच्चों से बांधता था। इसमें एक संदेश भी छिपा होता था कि मैं तेरे बाप तो भी पढ़ा चुका हूं, इसलिए कायदे में रहना।

वाजपेयी सर: लंबे एवं दुबले वाजपेयी सर ने भी हमें हिंदी सिखाई। जब वो अभिनय के साथ, “पीपर पात सरिस मन डोला” अथवा, “क्या ही स्वच्छ चांदिनी है यह” कविताएं सुनाते, मैं उस को अनुभव करता।

तिवारी सर: इनके कंधे पर सदा एक छाता खुंसा हुआ होता। हमें अंग्रेजी पढ़ाते थे। उनकी आवाज बहुत खुली हुई थी। हम बच्चों में वो ‘फटे तिवारी सर’ के तौर पर जाने जाते थे। अंग्रेजी वैसे भी बच्चों का पसंदीदा काल-खंड नहीं होता था। परंतु तिवारी सर हमें हिंदी में अंग्रेजी पढ़ाते, स्थानीय भाषा और मुहावरों का प्रयोग करते। उनका पीरियड शांति और उल्लास के साथ गुजरता।

दुबे सर: दुबे सर हमें इतिहास और सामाजिक विज्ञान पढ़ाते थे। साथ ही वो हमारे स्काउट के भी प्रशिक्षक थे। “बेडेन-पावेल तेरे चेले हम, मानेगें तेरे दस नियम, इस वतन के लिए ये प्रतिज्ञा करें, नीले झंडे तले आके हम” उन्होंने ही रटाया। बहुत ही मृदुभाषी, थे। उन्हें मिलकर एक अच्छी अनुभूति होती। उनकी आंखों में करुणा बरसती थी।

उच्चतर शाला के गुरुजन: नवीं से ग्यारहवीं उच्चतर शाला का हिस्सा होती थीं।

खड्डर सर: वे हमारे NCC के प्रशिक्षक थे। उनका भतीजा रवींद्र मेरा सहपाठी और दोस्त था। मैं NCC का हिस्सा नवीं और दसवीं में रहा। ग्यारहवीं बोर्ड एग्जाम होते थे इसलिए इस कक्षा के चुनिंदा बच्चे ही NCC में पाए जाते। उनके अभिभावकों का यह मानना था कि ग्यारहवीं में NCC की साप्ताहिक परेड के बजाय बच्चों को पढ़ना चाहिए ताकि वे इंजीनियर अथवा डॉक्टर बन सकें। मेरी टर्नआउट अन्य कई कैडेट्स से बेहतर होती थी और उपस्थिति नियमित। संभवतः इस कारण मुझे पहले साल ही एक फीती से नवाज कर मुझे लांस कार्पोरल बना दिया गया। रवींद्र कार्पोरल (दो फीती) बना।

NCC दिवस के दिन वहां के फौजी अफसर परेड का निरीक्षण करने आने वाले थे। खड्डर सर ने मुझे बुला भेजा और बोले, “मनीष, तुम्हारा काम है अपने घर से डिनर सेट लाना। खाना तो बाहर से आएगा परंतु उसे परोसने के लिए प्लेट, कटोरी, डोंगे, चम्मच आदि की व्यवस्था तुम्हें करनी हैं। मैंने उनके निर्देशों का पालन किया। और मेरी फीतियां एक से बढ़कर दो हो गईं। मैं धन्य भाया। रवींद्र और उसका पडोसी जरूर सार्जेंट (तीन फीती) बना दिए गए। इसी दौरान RDC कैंप के लिए भी चयन की प्रक्रिया हुई। मेरे प्यारे दोस्त प्रभात का चयन उसमें हो गया। वह क्रॉस-कंट्री का एक अच्छा धावक था। उसने दिल्ली के कैंप में भी भाग लिया।

हार्डिकर सर: हमें हायर इंग्लिश पढ़ाते थे। इस विषय को कुल जमा 8 बच्चों ने चुना था। बाकी नवीं के बालक–बालिकाएं हिंदी के छात्र थे। हम हिंदी-भाषी बच्चों को सर बहुत लगन से अंग्रेजी सिखाते। एक बार उन्होंने मुझे एक हिंदी के वाक्य को अंग्रेजी में बदलने का कार्य दिया। “मेरे कमरे में एक मक्खी है” इसे अंग्रेजी में रूपांतरित करना था। मुझे मक्खी का अंग्रेजी नाम नहीं सूझा। हां, ये याद जरूर आया कि इसे विज्ञान की भाषा में, ‘मस्का-डोमेस्टिका’ कहते हैं, जो मैंने अपनी दीदी से सुना था। अत: मैंने जवाब दिया, “I saw a musca domestica in my room।

जाहिर है बाकी बच्चे हंसने लगे जिसमें वहाँ के तत्कालीन कलेक्टर और जिला वन अधिकारी की सुपुत्रियां भी शामिल थीं। “What is musca domestica, Manish, use the correct word Fly” सर भी हंसते हुए बोले।

मैंने जवाब दिया, कि मैंने उसका वैज्ञानिक नाम का इस्तेमाल किया है और इसमें कोई हँसने की बात नहीं है। वे तुरंत गंभीर हुए, और मेरा समर्थन किया।

ऐसे गुरुजनों को क्या सिर्फ 5 सितंबर को ही याद किया जाता है?

इस तरह मैं जिया-1:  आखिर मैं साबित कर पाया कि ‘मर्द को दर्द नहीं होता’

इस तरह मैं जिया-2: लगता था ड्राइवर से अच्छी जिंदगी किसी की नहीं…

इस तरह मैं जिया-3: हम लखपति होते-होते बाल-बाल बचे…

इस तरह मैं जिया-4: एक बैरियर बनाओ और आने-जाने वालों से टैक्स वसूलो

इस तरह मैं जिया-5: वाह भइया, पुरौनी का तो डाला ही नहीं!

इस तरह मैं जिया-6: पानी भर कर छागल को खिड़की के बाहर लटकाया…

इस तरह मैं जिया-7: पानी भरे खेत, घास के गुच्छे, झुके लोग… मैं मंत्रमुग्‍ध देखता रहा

इस तरह मैं जिया-8 : मेरे प्रेम करने के सपने उस घटना के साथ चूर-चूर हो गए

इस तरह मैं जिया-9 : हमने मान लिया, वो आंखें बंद कर सपने देख रहे हैं

इस तरह मैं जिया-10 : हमारे लिए ये एक बड़ा सदमा था …

इस तरह मैं जिया-11: संगीत की तरह सुनाई देती साइकिल के टायरों की आवाज

इस तरह मैं जिया-12: मैसेज साफ था, जान-पैचान होने का मतलब यह नहीं कि तू घुस्ताई चला आएगा

इस तरह मैं जिया-13 : एक चाय की प्याली और ‘दीमाग खोराब से ठोंडा’ हो जाता

इस तरह मैं जिया-14 : तस्‍वीर संग जिसका जन्‍मदिन मनाया था वह 40 साल बाद यूं मिला …

इस तरह मैं जिया-15 : अगर कोई पवित्र आत्मा यहां से गुजर रही है तो …

इस तरह मैं जिया-16 : हम उसे गटागट के नाम से जानते थे …

इस तरह मैं जिया-17 : कर्नल साहब ने खिड़कियां पीटना शुरू की तो चीख-पुकार मच गई

इस तरह मैं जिया-18 : इतनी मुहब्बत! मुझे ऐसा प्रेम कहीं ना मिला

इस तरह मैं जिया-19 : एक दुकान जहां सुई से लेकर जहाज तक सब मिलता था

इस तरह मैं जिया-20 : मेरी बनाई झालर से झिलमिलाता था घर, कहां गए वे दिन?

इस तरह मैं जिया-21 : नायकर साहब पहले ही राउंड में बाहर हुए तो बुरा लगा

इस तरह मैं जिया-22 : … उसने जयघोष करते हुए परीक्षा हॉल में खर्रे बिखेर दिए

इस तरह मैं जिया-23 : फेंके हुए सिक्कों में से उनके हाथ 22 पैसे लगे…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *