अध्‍यात्‍म

संगीत सभा के बाद क्यों बजाई जाती हैं तालियां?

श्रोता अपने सुनने वाले मन को संपूर्ण रूप से शुरूआती स्तर पर खाली कर लेते हैं, इसमें कलाकार की आलाप लेने वाली प्रक्रिया एक जरिया बनती है। अंत में अगर आनंद स्वरूप श्रोता के अश्रु निकल पड़े तो समझिए वह अपने में डुबकी लगा चुका है,एकात्म घट चुका है।

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जो स्मृति में टिक न सके, भरोसा मत करो

जो स्मृति में बस न सके, टिक न सके, फिर वह चाहे व्यक्ति, लोग, चीज, संकल्पना या विचार ही क्यों न हो, भरोसा मत करो। स्पष्ट है कि न वह तुम्हारे लिए और न ही तुम उसके लिए हो। जो टिके नहीं उसकी गति तेज है, वह आवारा है,उच्छृंखल-चंचल है,क्षुद्र है,कोई तय ऑर्बिट नहीं है उसका। इसीलिए वह अनप्रेडिक्टेबल है।

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बुद्ध पूर्णिमा: जड़ें हमेशा आंखों के सामने बनीं रहें

शुक्र है, जागृत पेड़ों ने भारत भूमि पर ऐसी विभूतियों को पैदा किया है जिनकी वजह से जड़ों की बात स्मृति में हमेशा बनी रहती है। इस बुद्ध पूर्णिमा पर हंसध्वनि की कामना है कि जड़ें हमेशा आंखों के सामने बनीं रहें और वे हमेशा स्मृति में सिंचित बनी रहें।

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इंसानों को पढ़कर पहचानने की लाइब्रेरी है ये दुनिया

ये दुनिया इंसानों को पढ़कर पहचानने की लाइब्रेरी है। यहां इंसान नाम की किताब फ्री में उपलब्ध है। लेकिन कुछ अपवाद भी हैं। जैसे दुनिया की बेहतरीन पुस्तकें सबकी पहुंच में नहीं वैसे ही बेहतरीन इंसान भी सबको मिल पाना सबके नसीब में नहीं।

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नए साल में नई तरह की सेल्फी, पहले से बेहतर देखें दुनिया

आपकी सेल्फी में आपका कुछ भी नहीं है,जो कुछ कमाल है तकनीक का है,आप एक सूखे पीले पत्ते की मानिंद भर हैं। रोशनी का पता अंधेरे में चलता है। ओशो कह गए कि रोशनी नहीं पीछा अंधेरा करता है। ये तो आप हैं जो रोशनी का पीछा करते हैं जबकि आपका पीछा अंधेरा करता है।

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मानसिकता कंट्रोल करता है शब्द जनरेशन गैप

‘फिलामेंट एलिमेंट :हंसध्वनि’, हमारे नए कॉलम का नाम है, ऐसा इसलिए कि आज का दौर न्यूक्लियस फैमिली का है, जिसमें दो पीढ़ियों के बीच संवाद और मिलन का अभाव है और इन के बीच मौजूद तीसरी पीढ़ी उपेक्षा महसूस करती हुई अकेलेपन का शिकार है। कोशिश होगी कि ‘फिलामेंट एलिमेंट: हंसध्वनि’ कॉलम में विषयों का तात्विक विवेचन हो।

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