बहुत शोर सुनते हैं उनके हक का, मगर संख्‍या महज 74

ये विडंबना ही है कि पार्टियां आधी आबादी को चुनाव में उम्मीदवार बनाने से कतराती हैं। कई जगह दिग्गजों के खिलाफ सिर्फ नाम के लिए उन्हें खड़ा कर दिया जाता है।

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वोट देने का हक नहीं और जेल से पहुंंच गए संसद में

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को सर्वोच्च संवैधानिक आधार माना गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट कहता रहा है कि चुनाव करने और चुने जाने के अधिकार को समान दर्जा प्राप्त नहीं है। इसका मतलब यह है कि मतदान मौलिक अधिकार नहीं है और इसे निरस्त किया जा सकता है।

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मोदी ‘रंग’ के आगे कितना टिकेगा भंग विपक्ष?

मोदी सिर्फ अपने मुद्दे और रणनीति ही तय नही करते बल्कि वे विपक्ष के मुद्दों को भी अपना हथियार बना लेते हैं। वे जैसे चाहे विपक्ष को उनकी पिच पर खेलने के लिए मजबूर कर देते हैं और यदि विपक्ष उसकी पिच पर लाने की कोशिश करता है तो उसे अपनी बनाकर मैदान को बिखेर देते है।

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