life

इस तरह की प्रतीक्षाओं का अंत हो जाता है…

हर बार आप आश्चर्य से सीखते हैं। जो ज्ञान अचानक प्रस्फुटित हो, वही सिखा जाता है। हर अचानक घटना एक आश्चर्य का होना है।

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तू जहां तक दिखाई देता है, उससे आगे मैं देखता ही नहीं

शायरी वो कमाल की है कि सीधे दिल में उतरती है। वैसे ही जैसे दिल से कही जाती है। उन्‍हें खूब सुना गया। जितना सुना गया उससे ज्‍यादा सुनाया गया। कभी अपने हाल बताने के लिए, कभी अपने दिल की कहानी जताने के लिए।

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गोल-गोल रानी,इत्ता-इत्ता पानी, उजाले के खेल की कहानी

बचपन से ही इस खेल को बूझने की तमन्ना थी जिसके बोल हैं-गोल-गोल रानी,इत्ता-इत्ता पानी। आइए आज इस खेल की कहानी को समझते हैं। शरद पूर्णिमा की रात समझते हैं कि गोल का आखिर चक्कर क्या है!

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हमारे अनिल यादव जी …

मेरे जीवन अब बारी थी चलन के मुताबिक ‘गंगा नहाने’ की। लेकिन कौन सी गंगा में,कैसे नहाना है यह मुझे ही तय करना था। मैं एक खास काम करना चाहता था और यही मेरा गंगा स्नान था।

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सबसे जरूरी थी ऐसी घड़ियों की मौत …

ऐसी घड़ियों की मौत सबसे जरूरी थी जिनके बूते चला करती थी घरों की शांत और संतोषप्रद जिंदगी। संस्कृति-समाज-घर के ताने-बाने के टूटने के लिए बस एक घड़ी के लुप्त होने की जरूरत होती है।

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चलो आज प्रेम की बातें करते हैं…

शून्यता दरअसल बासीपन और ताजगी के बीच बनी हुई एक लकीर है जिसका आकार अधिक बड़ा करने की जरूरत है। यह जगह अपने आप में बड़ी डायनामिक है। यह परमानंद का ठिकाना है।

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अपने भीतर ज्‍यादा से ज्‍यादा शून्‍यता पैदा करें …

शून्यता दरअसल बासीपन और ताजगी के बीच बनी हुई एक लकीर है जिसका आकार अधिक बड़ा करने की जरूरत है। यह जगह अपने आप में बड़ी डायनामिक है। यह परमानंद का ठिकाना है।

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शैलेंद्र: तेरी चाहत का दिलबर बयां क्या करूं?

आज गीतकार शैलेंद्र की जयंती है। आज का दिन शैलेंद्र और रेणु की दोस्‍ती को याद करने का भी दिन है। शैलेंद्र के गीत को गुनगुनाते हुए अपने दोस्‍तों को याद करने का दिन।

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जानने के लिए दूरी जरूरी है …

जिसे माया कहा गया है उसे उसके द्वैत से दूरी हासिल कर ही अद्वैत के करीब जाकर फिर उसे जो द्वैत और अद्वैत से परे है, को जाना जा सकता है। अद्वैत से उतरकर फिर द्वैत की दुनिया में आया हुआ व्यक्ति ही सिद्ध है या साइंटिफिक भाषा में एलियन है।

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‘सब स्वीकार है’ भाव आते ही प्रकृति जैसे हो जाते हैं हम

जब हम कुछ सोचते ही नहीं तो जो जैसा घट रहा है वह स्वीकार है। वही मनमुताबिक है एक तरह से क्योंकि यहां मन नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस स्थिति को अ-मन रहकर जो पाया है। द्वैत की सुरंग में से होकर बाहर खुले में अब उन्मुक्त अद्वैत अपनी बाहें फैलाता है।

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