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कला का समाज: तब हम एक-दूसरे के सबसे करीब होते थे!

उसने अंतिम चाकू अपनी पत्नी के सीने को लक्ष्य कर पूरी ताकत से फेंक दिया …वहीं जहां दिल होता है। आंखों से पट्टी हटाकर देखा तो पाया निशाना चूक गया था वह क्या चीज होती है जो एक अभ्यस्त हाथ को अपने लक्ष्य से जरा भी विचलित होने से रोक लेती है।

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लंबा सफर मुश्किल डगर 

एक तबका ऐसा है जो कभी कर्ज डिफॉल्ट नहीं करता। दूसरा हमेशा बैंक का एनपीए (Non performing loan डूबा हुआ कर्ज) बढ़ाता है। हमारी व्यवस्था का बर्ताव आर्थिक लेनदेन की ईमानदारी से नहीं बल्कि सामाजिक स्‍तर से तय होता है। हैसियत देख कर व्‍यवहार करने वाली व्‍यवस्‍था से मिला एक कटु अनभव।

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नए साल में नई तरह की सेल्फी, पहले से बेहतर देखें दुनिया

आपकी सेल्फी में आपका कुछ भी नहीं है,जो कुछ कमाल है तकनीक का है,आप एक सूखे पीले पत्ते की मानिंद भर हैं। रोशनी का पता अंधेरे में चलता है। ओशो कह गए कि रोशनी नहीं पीछा अंधेरा करता है। ये तो आप हैं जो रोशनी का पीछा करते हैं जबकि आपका पीछा अंधेरा करता है।

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अरे प्रधानाध्‍यापक जी, आप तो रोने लगे…

यह तस्‍वीर मध्‍य प्रदेश के देवास की है। ये रोते हुए व्‍यक्ति देवास शहर के बाहरी क्षेत्र स्थित शासकीय प्राथमिक विद्यालय संजयनगर के प्रभारी प्रधानाध्यापक तिलकराज सेम हैं। स्‍कूल में रोते हुए बच्‍चों के बारे में तो सुना, देखा था लेकिन आखिर ऐसी क्‍या बात हुई कि प्राचार्य ही रोने लगे।

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नोटबंदी का काला-सफेद, काले मिला नहीं, सफेद भी काला

देश में कितने जाली नोट थे यह न जानते हुए भी जाली नोट को सामने लाने के लिए नोटबंदी की गई। हकीकत यह है कि जिन दो बड़े उद्देश्यों के लिए नोटबंदी लागू की गई थी वे प्राप्‍त नहीं हुए हैं।

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मंदिर जहां चप्‍पल-कपड़े फेंक जाते हैं भक्‍त

किसी भी शहर को देखने का, उसे याद रखने का सबका एक अलग नजरिया होता है। यायावरी के जुनून को पंख देकर आज उड़ चली हूं मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में स्थिति दो प्रसिद्ध मंदिरों के प्रांगण में।

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माखन दादा की यह बात जान लें तो आंखें शर्म से झुक जाएं…

आज के नेताओं का ध्‍येय एक ही है, किसी तरह सत्‍ता बनी रहनी चाहिए, विचार की सत्‍ता जाए तो जाए। अगर आज के ऐसे नेताओं को दादा माखनलाल चतुर्वेदी का एक अनुभव बताएं तो देखना दिलचस्‍प होगा कि वे आंखें चुराते हैं या मोटी चमड़ी का प्रदर्शन करते हैं।

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इस दर्द की दवा करे कोई… (खुद न करें)

कई लोग यह भी करते कि मेरे डॉक्टर ने मुझे सॉर्बिट्रेट दी है तो मैं दूसरे को भी हार्ट की कोई समस्या होते ही यही दे देता हूं बिना यह जाने कि यदि दिल की बीमारी के कारण ब्लड प्रेशर कम हो रहा हो तो सॉर्बिट्रेट लेना जानलेवा भी हो सकता है। हम कभी सोचते ही नहीं कि सेल्फ मेडिकेशन या बिना डॉक्टर से पूछे कोई दवा लेना कितना घातक हो सकता है? क्‍या आप सोचते हैं?

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आप जो दवा खा रहे हैं वह नकली है या बेअसर!

आप जो दवा खा रहे हैं वह संभव है कि नकली हो क्‍योंकि घरेलू दवाओं में लगभग 25% का हिस्‍सा नकली दवाओं का है। इस वजह से देश में एक वर्ष में 10 लाख लोगों की मौत हो जाती है। सरकारें इस मामले पर चुप दिखाई देती हैं। इसके भी अपने कारण हो सकते हैं। वैसे, डेटा को खंगालने पर पता चला है कि 23 फार्मा कंपनियों और एक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल ने इलेक्टोरल बांड के जरिये करीब 762 करोड़ रुपए का चंदा राजनीतिक दलों को दिया है।

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