काव्य: कविता
रेखांकन : वत्सल विभोर राय
मैंने मां को कैसे देखा
मैंने मां को कैसे जाना
ऐसे देखा, वैसे देखा
क्या सच में ही उसको देखा
ना ना ना ना, ना ना ना ना
बात तो ये है सही नहीं
बात तो बल्कि यही सही
मैंने केवल मां को देखा।
नानी मां का आंचल देखा
दादी मां को चंचल देखा
मौसी मां थी बहुत ही प्यारी
काकी मां भी खूब दुलारी
बड़ी मां ने चिक्की खिलाई
छोटी मां ने दूध मलाई
बुआ मां जब आती है
लड्डू पेड़े लाती है।
पर एक अच्छी बात बताऊं
अपने मन की कुछ सुनाऊं
मेरी मां तो सबसे प्यारी
भली-भली सी सूरत न्यारी
बहुत सा लाड़ लडाती है
हंसु तो वो मुसकाती है
मैंने ये जाना, ये पाया
बात यही थी सही कही
मैंने केवल मां को देखा
उसके जैसा कोई ना दूजा।