तुमको सुना तो ये ख्‍याल आया…

फिल्में समय के साथ अपने विषय और संगीत को बदलती रहती हैं। इसे संयोग भी कहा जा सकता है कि फिल्मी संगीत के पुरोधाओं के बीच हमारे पास कुछ गीत एकदम अलग आवाज़ के गैर फिल्मी अनुभव वाले भी हैं।

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मालवा का स्‍वाद: बेसन गट्टे बनने के पहले बालभोग

जब भी घर पर मां बेसन गट्टे बनाती थी हम चौके चुल्हे के आसपास मंडराते रहते थे। बेसन में मिर्च-मसाला और मोइन डाल जब लकड़ी के पाटले पर दोनों हाथों से बेलनाकार बना कर उन्‍हे उबला जाता तो हमारे मुंह में स्‍वाद घुल जाता।

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आपातकाल, एक खत और सरकारी नौकरी पर संकट

प्रख्‍यात हिंदी भाषाविद, लेखक और रतलाम महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. जयकुमार जलज का बीते दिनों देहांत हुआ। उनके कृतित्‍व को नमन करते हुए उनके ही द्वारा बताई गई घटना यहां प्रस्‍तुत है। आपातकाल के दौरान की यह घटना वास्‍तव में मूल्‍यों के प्रति आस्‍था और जीवन का सटीक उदाहरण है।

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पहला प्यार और मैं: साथ भी और पास भी

मेरा पहला प्यार मुझे जब मिला तब मैं शायद साढ़े पांच साल की रही होंगी। मैं बोलती गयी, वो मुस्कुराता रहा और फिर जब मैंने अपने आसपास देखा तो सभी मुझे तारीफ भरी नजरों से देख रहे थे।

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स्‍वाद आस्‍वाद: गुजरात के ढोकलों से अलग है मालवा के ढोकले

मालवा के परिचय का एक चेहरा यहां की बोली की मिठास और आहार के स्‍वाद का है। मालवा का अपना खास स्‍वाद है। पड़ोसी राज्‍य गुजरात और राजस्‍थान का सिग्‍नेचर फूड भी मालवा में आ कर यहां का स्‍वाद पा कर इठला गया है।

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गली-मोहल्‍ले में यूं मिल जाता है इनोवेशन

सरकारी सर्वे के दौरान महिलाओं से बात करने के लिए घर आंगन में कुछ देर बैठना हो जाता था। ऐसे ही सर्वे में एकबार सुवासरा के मीणा मोहल्ले में जाना यादगार अनुभव बन गया।

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