Ameen Sayani Death: ख्‍वाबों सी आवाज, जादू सा असर

– टॉक थ्रू एडिटोरियल टीम

‘जी हां, बहनों और भाइयों, मैं हूं आपका दोस्त अमीन सायानी और आप सुन रहे हैं बिनाका गीतमाला’…

यह कहने वाला आवाज का जादूगर अमीन सायानी आज हमेशा के लिए गहरी नींद में सो गया। एफएम की दुनिया से बावस्ता पीढ़ी इस घोषणा और इस उद्घोषक की आवाज के जादू से वाकिफ नहीं है। मगर जमाना लंबे वक्त तक इस आवाज का दीवाना रहा है। 1953 में शुरू हुआ बिनाका गीत माला का सफर 1994 तक चला और इस दौरान इस आवाज ने राज किया। रामायण, केबीसी जैसे कार्यक्रमों को देखने के लिए सड़कों का सूना होना तो बहुत बाद की बात है, इनसे पहले तो बिनाका गीतमाला को सुनने के लिए सड़कें सूनी हो जाया करती थी। अमीन सायानी ने परंपरा से हट कर काम किया। भाइयो और बहनों सुनने के आदी समाज में बहनों और भाइयों कह कर महिलाओं को सम्‍मान देने की शुरुआत की।

अमीन सायानी और बिनाका गीतमाला की शुरुआत भी इसके सफर जितनी ही रोचक है। यह बात 1952 की सर्दियों की है। एक विज्ञापन कंपनी ग्राहकों को लुभाने के लिए रेडियो सीलोन पर हिंदी फिल्मों के गीतों की एक सीरीज की योजना बना रही थी। कंपनी को यह आइडिया मशहूर रेडियो आर्टिस्ट हामिद सायानी द्वारा अंग्रेजी गीतों के एक चर्चित शो की प्रसिद्धि को देख कर आया था। उसने हिंदी के श्रोताओं में पैठ बनाने के लिए हिंदी फिल्‍मों के गीतों पर कार्यक्रम की योजना बनाई।

संदर्भ बताते हैं कि प्‍लान तो बन गया लेकिन कोई भी लेखक या उद्घोषक इस कार्यक्रम के लिए तैयार नहीं हुआ क्‍योंकि तब इस एक सप्‍ताह के शो के लिए कंपनी ने 25 रुपए फीस तय की थी जो कि शोध करने, पटकथा लिखने और फिर इसे पेश करने जैसा श्रमसाध्‍य काम करने के लिहाज से काफी कम थे। अमीन सायानी ने भी अपने भाई की ही तरह अंग्रेजी उद्घोषणा से अपने कॅरियर की शुरुआत की थी। जब वे आकाशवाणी के हिंदी प्रभाग के लिए ऑडिशन देने गए तो उनसे कहा गया कि उनके उच्चारण में अंग्रेजी और गुजराती का असर है। एक इंटरव्‍यू में अमीन सायानी ने बताया था कि उनके बड़े भाई हामिद सायानी ने जोर देकर अमीन सयानी को हिंदी वाला शो करने के लिए राजी कर लिया था।

अमीन सायानी ने कार्यक्रम पर जितनी मेहनत की उतनी ही मेहनत उसे प्रस्‍तुत करने में भी की। हिंदुस्तानी और आसान शैली के लोग मुरीद हो गए। ‘बिनाका गीतमाला’ रेडियो सिलोन पर हर बुधवार ‘रात के आठ से नौ बजे’ के बीच प्रसारित होता था। अमीन सायानी हर रैंक को पायदान कहते थे, जिससे बिनाका गीतमाला टॉप पर पहुंच जाता था। एक गाना दूसरे से या तो एक पायदान ऊपर होता था या नए गाने से पीछे होकर इसकी रैंक नीचे चली जाती थी। एक घंटे में सोलह गीत सुनाए जाते जिनका चयन रिकार्डों की बिक्री के आधार पर होता था। सायानी के शो में कौन से गाने जाने चाहिए इसके लिए देशभर के प्रमुख रिकॉर्ड डीलरों से रिपोर्ट मांगा जाती थी। पिछले सप्ताह हुई रिकार्डों की बिक्री के अनुसार गीतों का क्रम बनता था। जिस गीत के रिकार्ड सबसे ज्यादा बिकते वह गीत सप्ताह का सबसे अधिक लोकप्रिय गीत हो जाता।

गीतों को उलटे क्रम से बजाया जाता था। सबसे पहले सोलहवें नंबर का गीत बजता उसके बाद पंद्रह, चौदह और अंत में पहले नंबर का गाना सुनाया जाता जो उस सप्ताह का चोटी का गीत कहलाता था। इस क्रम को अमीन सायानी पायदान कहते थे जो उर्दू का शब्द है, जिसका अर्थ सीढ़ी होता है। जो गीत ज्यादा लोकप्रिय होता था, उसे ‘सरताज गीत’ कहा जाता था और उसे सुनाने के पहले सरताज गीत की खास बिगुल बजायी जाती थी।

कोई भी गाना जब 25 बार लगातार बिनाका गीतमाला में शामिल हो जाता था उसके बाद वह गीत रिटायर हो जाता था, क्योंकि दूसरे नए गीतों को भी तो शामिल किया जाना होता था। किसी गीत के रिटायर होने की भी एक खास धुन बजायी जाती थी। साल के अंत में दिसंबर के अंतिम दो सप्ताह बजने वाले 16–16 हिट गीत साल के सबसे अधिक लोकप्रिय गीत माने जाते थे। साल के अंतिम बुधवार 9 बजे बजने वाला गीत साल का सबसे सुपर हिट गीत होता था।

टीवी के आने के बाद रेडियो की लोकप्रियता घटी और बिनाका गीत माला (जिसका नाम 1986 में ‘सिबाका गीत माला’ कर दिया गया था) का अंत भी आ गया। टेलीविजन पर कई काउंट डाउन शो शुरू हो चुके थे। इन कार्यक्रमों ने गीतमाला को बंद करने पर मजबूर का दिया। लेकिन बिनाका गीतमाला का प्रसारण अपने आप में एक इतिहास है।

21 दिसंबर 1932 को जन्‍मे अमीन सायानी का निधन 21 फरवरी 2024 को हुआ तब वे अपनी उम्र के 91 वसंत पूरे कर 92 वें पायदान पर थे। वे अपने समय के सरताज थे और उनकी ‘हिट परेड’ में शामिल होना कई गीतकारों, संगीतकारों का ख्‍वाब होता था। वह दौर भी एक ख्‍वाब सा हो गया है और अब तो वह आवाज भी बस ख्‍वाब ही हो गई है जिसे सीडी, डीवीडी के रास्‍ते सुना जरूर जा सकेगा, महसूस किया जा सकेगा लेकिन उस जादूगर को देखा नहीं जा सकेगा।

One thought on “Ameen Sayani Death: ख्‍वाबों सी आवाज, जादू सा असर

  1. हमारी किशोरावस्था से लेकर प्रोढा़वस्था तक बिना का सुनते रहे । शायद ही कोई कार्यक्रम इतना मशहूर हो पाया ।यूं तो रेडियो में गीत आते हैं पर बिनाका गुणमाला जिज्ञासा बहुत अलग थी वह अमीन शायनी जी आवाज़ का जादू ।गीत में यह फिल्मफेयर अवार्ड से कम नहीं था
    विनम्र श्रद्धांजलि सादर नमन

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