यादों के गलियारों में खूशबुओं का फेरा 

आज से कई दशकों पहले मैनपुरी में साल में चार-चार मेले लगा करते थे ठाकुर जैत सिंह जी और ठाकुर माधव सिंह जी (माधौ) की जमींदारी में। जैतसिंह जी की बिटिया और माधव सिंह जी की बहना हमारी अम्मा मतलब दादी मां थी। समय बीतते के संग लोग भी वैकुंठ चले गए। पीछे जो रह गया वे हैं …

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शुक्र है, आंगन का यह नीम बचा हुआ है अब तक

आपाधानी से भरे जीवन के बीच एक दिन में एक पेड़ से मिलने गया था। चित्र में जो पेड़ दिख रहा है उससे मेरा परिचय तकरीबन 25 साल पुराना है। सन् 2000 से पहले की बात है जब मैंने पहली बार इस पेड़ को देखा था। उस समय मेरे पास कैमरा भी नहीं रहता था…

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तब तुम्‍हें मारा था, मुझे दर्द अब तक होता है

निदा फाजली साहब ने क्‍या खूब कहा है, धूप में निकलो, घटाओं में नहा कर देखो, जिंदगी क्‍या है, किताबों हटा कर देखा। मुझे लगता है कि बतौर शिक्षक किसी की सफलता को सिर्फ उसकी कक्षा के परिणाम से नहीं देखना चाहिए। किसी भी शिक्षक का आकलन उसके पूरे काम से करना चाहिए…

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