बहुत शोर सुनते हैं उनके हक का, मगर संख्या महज 74
ये विडंबना ही है कि पार्टियां आधी आबादी को चुनाव में उम्मीदवार बनाने से कतराती हैं। कई जगह दिग्गजों के खिलाफ सिर्फ नाम के लिए उन्हें खड़ा कर दिया जाता है।
ये विडंबना ही है कि पार्टियां आधी आबादी को चुनाव में उम्मीदवार बनाने से कतराती हैं। कई जगह दिग्गजों के खिलाफ सिर्फ नाम के लिए उन्हें खड़ा कर दिया जाता है।
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को सर्वोच्च संवैधानिक आधार माना गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट कहता रहा है कि चुनाव करने और चुने जाने के अधिकार को समान दर्जा प्राप्त नहीं है। इसका मतलब यह है कि मतदान मौलिक अधिकार नहीं है और इसे निरस्त किया जा सकता है।
पुणे में जो घटना हुई है वह जघन्यतम अपराध है इसे किशोर न्याय के नाम पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए बल्कि किशोर न्याय अधिनियम 2015 के प्रावधानों पर फिर से विचार किया जाना चाहिए और विसंगतियों को दूर किया जाना चाहिए।
हकीकत यह है कि बहुप्रचारित नमामि गंगे कार्यक्रम पर लगभग 40,000 करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद गंगा अभी भी अंधेरी है। स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों दोनों का कहना है कि नदी ज्यादा साफ नहीं हुई है। सीवेज उपचार संयंत्र ठीक से कार्य नहीं कर रहे हैं। रेत खनन, ड्रेजिंग और अनियमित और अनुशासनहीन पर्यटन जैसी गतिविधियां नदी पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं ।
आयुर्वेद की बुनियादी विचारधाराओं का व्यापक ज्ञान, वैज्ञानिक साक्ष्य की कमी के कारण वैज्ञानिक रूप से स्वीकार्य नहीं है। एलोपैथिक और आयुर्वेदिक दवाओं के दृष्टिकोण में बहुत बड़ा अंतर है।
मार्क्सवाद केवल एक राजनीतिक या आर्थिक सिद्धांत नहीं है। यह एक दार्शनिक सिद्धांत भी है और उसी से उसके राजनीतिक और आर्थिक सिद्धांत भी निकलते हैं।
दुनिया भर के श्रमिकों ने अथक परिश्रम से जो हक हासिल किए हैं। जो सुरक्षा हासिल की है उसे छीनने के जतन आज भी जारी हैं। विश्व श्रम दिवस इस लंबे संघर्ष से प्राप्त हुए हकों को याद रखने का दिन है।
केंद्र सरकार ने तीन नये आपराधिक न्याय विधेयकों (जो अब कानून बन चुके हैं) को इस आधार पर उचित ठहराने की कोशिश की है कि मौजूदा कानून ‘औपनिवेशिक’ तो था ही, बदला गया कानून भारत विरोधी भी था। लेकिन तुलना करने पर पता चलता है कि नये कानून कहीं ज्यादा प्रतिगामी और कठोर हैं।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने देर रात बयान दर्ज करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की आलोचना की। कोर्ट ने कहा है कि ईडी सोने का अधिकार छीनकर किसी व्यक्ति का रात में बयान दर्ज नहीं कर सकती: इसके बाद राइट टू स्लीप को लेकर एक नई बहस शुरू हो गयी है।
देश में कितने जाली नोट थे यह न जानते हुए भी जाली नोट को सामने लाने के लिए नोटबंदी की गई। हकीकत यह है कि जिन दो बड़े उद्देश्यों के लिए नोटबंदी लागू की गई थी वे प्राप्त नहीं हुए हैं।