अरे प्रधानाध्‍यापक जी, आप तो रोने लगे…

यह तस्‍वीर मध्‍य प्रदेश के देवास की है। ये रोते हुए व्‍यक्ति देवास शहर के बाहरी क्षेत्र स्थित शासकीय प्राथमिक विद्यालय संजयनगर के प्रभारी प्रधानाध्यापक तिलकराज सेम हैं। स्‍कूल में रोते हुए बच्‍चों के बारे में तो सुना, देखा था लेकिन आखिर ऐसी क्‍या बात हुई कि प्राचार्य ही रोने लगे।

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नोटबंदी का काला-सफेद, काले मिला नहीं, सफेद भी काला

देश में कितने जाली नोट थे यह न जानते हुए भी जाली नोट को सामने लाने के लिए नोटबंदी की गई। हकीकत यह है कि जिन दो बड़े उद्देश्यों के लिए नोटबंदी लागू की गई थी वे प्राप्‍त नहीं हुए हैं।

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आप जो दवा खा रहे हैं वह नकली है या बेअसर!

आप जो दवा खा रहे हैं वह संभव है कि नकली हो क्‍योंकि घरेलू दवाओं में लगभग 25% का हिस्‍सा नकली दवाओं का है। इस वजह से देश में एक वर्ष में 10 लाख लोगों की मौत हो जाती है। सरकारें इस मामले पर चुप दिखाई देती हैं। इसके भी अपने कारण हो सकते हैं। वैसे, डेटा को खंगालने पर पता चला है कि 23 फार्मा कंपनियों और एक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल ने इलेक्टोरल बांड के जरिये करीब 762 करोड़ रुपए का चंदा राजनीतिक दलों को दिया है।

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बच्‍चों को बचा न पाए तो किस काम का पॉक्‍सो?

भारत में बच्चों के यौन उत्पीड़न से संबंधित जटिल और संवेदनशील मुद्दों को ध्यान में रखते हुए 14 नवंबर 2012 को पॉक्सो अधिनियम लागू किया गया था। लेकिन लाख टके का सवाल है कि क्या यह बच्चों के यौन शोषण को रोकने में सफल हुआ? जवाब होगा, नहीं।

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